एटा में व्यापारी ही कराते हैं बाल श्रम
एटा में व्यापारी ही कराते हैं बाल श्रम
एटा में व्यापारी ही कराते हैं बाल श्रम
शहर में चाय की दुकानों पर ब्रेकरियों पर परचूनियों की दुकानों पर मिठाई की दुकानों पर कपड़ों की दुकानों पर लोहा पीटने वालों की दुकानों पर सब्जी मंडी में जनरल स्टोर की दुकानों पर आदि जगहों पर कम पैसों में बाल मजदूरों से कराई जा रही है मजदूरी का सारा दोस बाल श्रम अधिकारियों का ही होता है ।
लेकिन व्यापारी अपने मनवाने तरीके से उनसे कराते हैं अगर विभाग अभियान चलाकर इन बच्चों को पकड़ने की कोशिश करता है तो यह व्यापारी एक दूसरे को फोन करके बताते हैं कि छापा पड़ रहा है अपने यहां से बच्चों को हटा दिया जाए अगर किसी बच्चे को पकड़ भी लिया जाता है तो शाम को छोड़ दिया जाता है यह बात किसी से छुपी नहीं है जग जाहिर है। सभी लोग जानते हैं सब एक दूसरे के पूरक हैं अगर किसी दुकान का चालान कर दिया जाए तो व्यापारी अपने संगठन के द्वारा उस अधिकारी को वहीं घटना स्थल पर ही घेर लेते हैं और बवाल करना शुरू कर देते हैं।
उससे पहले ही अधिकारी को वहां से वापस जाना पड़ता है जिससे कोई कार्रवाई नहीं हो पाती है बाल श्रम धड़ले से जा रही है। विभाग अधिकारी भी डाक के तीन पास साबित हो रहे हैं वह कार्रवाई करने से बचते हैं व्यापारी उन्हें कोर्ट तक घसीटने की धमकी देते हैं उनके खिलाफ आंदोलन करने की धमकी देते हैं । अगर देखा जाए तो जितनी जो भी चाय की दुकान है उन पर छोटू ही चाय देने उनके ऑफिस में जाता है जिसके चलते अधिकारी उनके छोटे छोटे हाथों से चाय बनवा कर पीते हैं कार्रवाई के नाम पर डाक के तीन पात ना कोई कार्रवाई न उनके लिए कोई भरण पोषण के लिए कुछ देखा जाता है।
नहीं विभाग इसकी चिंता करता है सरकार को ठेका दिखते ही देखे जा सकते हैं बच्चों के हित में तमाम योजनाएं चल रही है। सरकार के महत्वा कांक्षी योजनाओं को अधिकारी दवाये रहते हैं उनका लाभ नहीं मिल पाता है अपात्र लाभ उठाते हैं लाभार्थी इधर-उधर भटके रहते हैं। विभाग ने अभी तक कोई बाल श्रम को लेकर सकारात्मक कदम नहीं उठाया है।
कोई बच्चा कहीं से पकड़ा जाता है तो उसे घर गृहस्थी का हवाला देकर मौके से छुड़वाया जाता है। बन्दी वाले दिन भी व्यापार मंडल के पदाधिकारी अपने प्रतिष्ठान को धड़ल्ले से खोलते हैं खुलेआम उलंघन करते देखे जा सकते हैं। विभाग डर के आगे चालान नहीं काट सकते हैं।