दलदल में धँसा ‘विकास’ पिथनपुर में बच्चे स्कूल जाने से पहले गिरते हैं, संभलते हैं, और फिर चलते हैं…
दलदल में धँसा ‘विकास’ पिथनपुर में बच्चे स्कूल जाने से पहले गिरते हैं, संभलते हैं, और फिर चलते हैं…
एटा (उत्तर प्रदेश) जब देश अंतरिक्ष में नई ऊँचाइयाँ छू रहा है, जब भारत चाँद पर पहुँच चुका है – तब उत्तर प्रदेश के एटा जनपद के मारहरा ब्लॉक का पिथनपुर गाँव आज भी ज़मीन पर धँसा हुआ है। यह दलदल सिर्फ मिट्टी और पानी का नहीं, बल्कि उस विकास मॉडल का आइना है, जिसमें गाँवों की तस्वीरें बस चुनावी घोषणाओं में चमकती हैं, हकीकत में नहीं। पिथनपुर का मुख्य रास्ता अब मौत का रास्ता बनता जा रहा है। स्कूल जाने वाले छोटे-छोटे बच्चे इसी कीचड़ से होकर रोज़ गुजरते हैं। कोई साइकिल से, कोई पैदल – लेकिन हर रोज़ कोई न कोई बच्चा इस दलदल में गिरता है, कपड़े गंदे करता है, चोट खाता है।
कई बार तो बच्चे डर के मारे स्कूल ही नहीं जाते। किसी की साइकिल फँसी, किसी की चप्पल गुम हो गई – यह अब गाँव की रोज़मर्रा की कहानी बन चुकी है। ग्रामीण बताते हैं कि इस रास्ते पर एम्बुलेंस तक नहीं पहुँच पाती। कई बार मरीज समय पर अस्पताल नहीं पहुँच पाए। सोचने वाली बात है – अगर किसी दिन कोई बड़ा हादसा हो गया, तो क्या प्रशासन तब जागेगा? गाँव के लोगों का कहना है कि उन्होंने कई बार अधिकारियों से शिकायत की। बार-बार मिन्नतें कीं। अधिकारी आए, देखा, तस्वीरें लीं और फाइलों में रास्ता “सुधार के लिए प्रस्तावित” कर के चलते बने। लेकिन आज तक ज़मीनी हकीकत नहीं बदली। कीचड़ वही है, दलदल वही है, और उसमें धँसता हुआ मासूम बचपन भी वही है। क्या यह वही भारत है जहाँ हर बच्चे को शिक्षा का अधिकार है? क्या यह वही उत्तर प्रदेश है जहाँ हर गाँव तक सड़क पहुँचाने का दावा किया जाता है? अगर हाँ, तो फिर पिथनपुर क्यों पीछे छूट गया? गाँव के लोग पूछ रहे हैं – क्या उनके बच्चों की जान और भविष्य की कोई क़ीमत नहीं? क्या उनकी आवाज़ें सिर्फ़ चुनावों तक ही सीमित हैं? क्या सिस्टम सिर्फ़ तब जागेगा जब कोई मासूम इस दलदल में अपनी जान गँवा देगा? पिथनपुर की तस्वीरें न सिर्फ विकास की पोल खोलती हैं, बल्कि यह भी दिखाती हैं कि योजनाओं और ज़मीन के बीच कितनी खाई है।
वक्त आ गया है कि सिर्फ़ घोषणाओं से नहीं, बल्कि ठोस काम से भरोसा बनाया जाए। गाँव की सड़क बने, बच्चे सुरक्षित स्कूल जाएँ – यही सबसे बुनियादी ज़रूरत है। जब देश चाँद पर है, तो पिथनपुर अब भी दलदल में क्यों? यह सवाल सिर्फ एक गाँव का नहीं, पूरे सिस्टम की ज़िम्मेदारी का है। अब जवाबदेही चाहिए – तस्वीरें और आश्वासन नहीं।





