आबकारी टीम पर हमला, दबंग बेखौफ – पुलिस कार्रवाई से अब तक दूर
आबकारी टीम पर हमला, दबंग बेखौफ – पुलिस कार्रवाई से अब तक दूर
आगरा। आगरा में आबकारी विभाग की टीम पर हुए हमले के कई दिन बीतने के बावजूद भी हमलावर अब तक पुलिस की पकड़ से बाहर हैं। वीडियो में साफ तौर पर देखा जा सकता है कि किस तरह लाठी-डंडों से लैस दर्जनों दबंग, विभाग की टीम पर दिनदहाड़े हमला कर रहे हैं। महिला आबकारी इंस्पेक्टर चीखती-चिल्लाती नजर आती हैं, लेकिन मौके पर कोई मदद को नहीं पहुंचता। यह पूरी घटना इस बात की पुष्टि करती है कि शराब माफिया और उनसे जुड़े लोग न सिर्फ संगठित हैं, बल्कि अब वे कानून व्यवस्था को भी खुली चुनौती देने लगे हैं।
सवाल यह भी उठता है कि यदि पुलिस और प्रशासन ऐसे मामलों में भी निष्क्रिय रहेंगे, तो कानून का डर किसके मन में बचेगा? आबकारी विभाग की टीम शराब माफियाओं पर कार्रवाई करती है, लेकिन उनके पास आत्मरक्षा के कोई साधन नहीं होते। न दिन में, न रात में। किसी सुदूर गांव या जंगल में अगर टीम पर हमला हो जाए, तो उनके पास न तो हथियार होते हैं, न ही सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम। यह चिंता का विषय है कि ऐसी परिस्थितियों में अधिकारी और सिपाही अपनी जान कैसे बचाएं? सूत्रों की मानें तो आबकारी विभाग अक्सर स्थानीय पुलिस को सूचना दिए बिना कार्रवाई करता है। इसका कारण विभाग के कुछ कर्मचारियों द्वारा ठेकों से कथित 'महीनेदारी' वसूली भी बताया जा रहा है। यदि यह सच है, तो यह न सिर्फ भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है, बल्कि टीम की सुरक्षा को भी गंभीर खतरे में डालता है।
शहर हो या देहात, कई शराब ठेकों पर 24 घंटे शराब बिकती है। रात्रि के समय शराब की कीमतें बढ़ जाती हैं, लेकिन किसी भी स्तर पर इसकी निगरानी या कार्रवाई नहीं हो रही। आए दिन सोशल मीडिया पर ऐसे वीडियो वायरल होते हैं, मगर उन पर कोई कार्यवाही नहीं होती। ऐसा माना जा रहा है कि यह सब 'सिस्टम' की मिलीभगत से हो रहा है। कुछ स्थानीय पत्रकार भी इस व्यवस्था का हिस्सा बताए जा रहे हैं, जो कथित रूप से ठेकेदारों से 'समझौता' कर लेते हैं। खबर दिखाने के बजाय दबाव बनाकर वीडियो हटवा दिए जाते हैं। यदि यह सच है तो यह लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है।
हमले के दौरान एक महिला आबकारी इंस्पेक्टर पर भी खतरा मंडरा रहा था। वे सड़क पर मदद के लिए चिल्लाती रहीं, लेकिन गनीमत रही कि उनके साथ कोई बड़ी अनहोनी नहीं हुई। अगर कुछ होता, तो इसका जिम्मेदार कौन होता? कई शराब ठेकों के बाहर बने दुकानों या शटर के नीचे से रात्रि में अवैध रूप से शराब बेची जाती है। सुबह 4 बजे से ही शराब लेने वालों की लाइन लग जाती है। इसके बावजूद प्रशासन आंखें मूंदे बैठा है। हमने इस मामले में आबकारी इंस्पेक्टर सुमन सिसोदिया से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन उनका फोन नहीं उठ सका। कई बार प्रयास के बावजूद उनसे बात नहीं हो पाई।
ऐसे में यह सवाल और गहरा होता जा रहा है कि अगर टीम पर फिर से हमला हो, तो वे अपनी जान की रक्षा कैसे करेंगी? आबकारी विभाग के सिपाही निहत्थे और असहाय हैं। शराब माफिया मजबूत और बेखौफ हो चुके हैं। पुलिस कार्रवाई नदारद है, और अगर यह हालात यूं ही रहे, तो कानून का डर खत्म होते देर नहीं लगेगी। यह सिर्फ एक विभाग का संकट नहीं है, बल्कि पूरे शासन-प्रशासन की जवाबदेही पर प्रश्नचिन्ह है।





