फर्रुखाबाद से दिल्ली: लक्जरी बसों में अवैध माल की तस्करी, जिम्मेदार विभागों की मिलीभगत से भ्रष्टाचार का गढ़ बना ट्रांसपोर्ट नेटवर्क
फर्रुखाबाद से दिल्ली: लक्जरी बसों में अवैध माल की तस्करी, जिम्मेदार विभागों की मिलीभगत से भ्रष्टाचार का गढ़ बना ट्रांसपोर्ट नेटवर्क

फर्रुखाबाद से दिल्ली: लक्जरी बसों में अवैध माल की तस्करी, जिम्मेदार विभागों की मिलीभगत से भ्रष्टाचार का गढ़ बना ट्रांसपोर्ट नेटवर्क
■ रामप्रसाद माथुर
फर्रुखाबाद। उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले से राजधानी दिल्ली तक चलने वाली प्राइवेट लक्जरी बसें इन दिनों तम्बाकू, सूखी आम की खटाई और अन्य अवैध सामानों की तस्करी का प्रमुख माध्यम बन चुकी हैं। कायमनगंज तहसील और इसके आसपास के व्यापारिक गोदामों से हर रात भारी मात्रा में माल इन बसों में लादा जाता है, जिसे बिना किसी रोक-टोक के दिल्ली और NCR के विभिन्न हिस्सों तक पहुँचाया जाता है। हैरानी की बात यह है कि यह पूरा अवैध कारोबार जिम्मेदार सरकारी विभागों की मिलीभगत और भ्रष्टाचार की खुली छत्रछाया में फल-फूल रहा है।
★ अवैध धंधों का अड्डा बनी लक्जरी बसें
इन डबल डेकर लक्जरी बसों को देखने पर कोई नहीं कह सकता कि ये सार्वजनिक परिवहन का माध्यम हैं या तस्करी का जरिया। कुछ बसें तो पूरी तरह मालवाहक वाहन बन चुकी हैं—सवारियों के नाम पर सिर्फ 2-4 लोग दिखते हैं, और बाकी बस में बड़े-बड़े बैग, बोरियां और गत्ते भरे होते हैं। स्थानीय सूत्रों के अनुसार, रात 9 बजे के बाद कायमनगंज, शमसाबाद और नवाबगंज के कुछ गोदामों से सीधे इन बसों में माल लादा जाता है।
★ बिना परमिट की बसें, रिश्वत के सहारे सड़कों पर दौड़तीं
जांच में पता चला कि दिल्ली जाने वाली कई बसें बिना वैध परमिट के चल रही हैं। इनमें से कई बसों के फर्जी कागजात बनवाए गए हैं या फिर पुराने कागजों को बार-बार अपडेट कर दिखाया जाता है। इसके बावजूद ये बसें बेरोकटोक फर्रुखाबाद से कन्नौज/बेबर, फर्रुखाबाद से अलीगंज/एटा होते हुए दिल्ली पहुंचती हैं। सूत्रों का दावा है कि हर बस के परिचालन के एवज में स्थानीय पुलिस, आरटीओ, जीएसटी और खाद्य सुरक्षा विभाग के अधिकारियों को मोटी रकम रिश्वत के तौर पर दी जाती है।
★ मंडी सचिव और व्यापार मंडल की भूमिका संदिग्ध
मंडी समिति के सचिवों और व्यापार मंडल से जुड़े अधिकारियों की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। व्यापारियों द्वारा गोदामों में बिना बिल के माल स्टॉक करना और फिर उसे बसों के जरिए बिना टैक्स अदा किए बाहर भेजना सिर्फ तभी संभव है जब मंडी में मौजूद अधिकारियों की आँखें मूंद ली गई हों, या फिर जानबूझ कर अनदेखा किया जा रहा हो। सूत्रों के मुताबिक, कुछ व्यापारियों ने मंडी में 'गुप्त समझौते' कर रखे हैं, जिसके तहत हर रात कुछ निश्चित बसें माल ले जाने के लिए तैयार खड़ी रहती हैं और संबंधित अफसरों को उनका हिस्सा मिल जाता है। पुलिस और परिवहन विभाग की चुप्पी स्थानीय थाना क्षेत्रों के पुलिस अधिकारियों से जब इस मुद्दे पर सवाल किया गया तो उन्होंने कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया। कुछ ने कहा कि यह मामला RTO और जीएसटी विभाग से जुड़ा है। वहीं RTO कार्यालय से संपर्क करने पर वहाँ से बताया गया कि उनके पास पर्याप्त स्टाफ नहीं है जिससे हर बस की जांच संभव हो सके। ऐसा प्रतीत होता है कि इस पूरी व्यवस्था में ‘मौन स्वीकृति’ नाम की एक परंपरा चल रही है, जिसमें सभी जिम्मेदार विभाग जानते हुए भी जानबूझकर चुप हैं।
★ जीएसटी चोरी: राज्य और केंद्र दोनों को राजस्व का नुकसान
इन अवैध बसों में लदे सामानों पर न कोई जीएसटी बिल होता है और न ही उनके खिलाफ कोई ई-वे बिल। इसका सीधा असर राज्य और केंद्र सरकार के राजस्व पर पड़ता है। टैक्स चोरी के इस धंधे में स्थानीय कारोबारी, ट्रांसपोर्ट संचालक और सरकारी विभागों के अधिकारी तीनों शामिल हैं। एक अनुमान के अनुसार, हर महीने करोड़ों रुपये का नुकसान सरकारी खजाने को हो रहा है।
★स्वास्थ्य के लिए भी खतरा: खाद्य सामग्री बिना जाँच के कुछ बसों में भेजे जाने वाले माल में खाद्य पदार्थ—जैसे कि सूखी आम की खटाई, मसाले और तम्बाकू—भी शामिल होते हैं। खाद्य सुरक्षा विभाग की तरफ से न तो कोई गुणवत्ता जांच होती है, न ही इन सामानों की निगरानी। यह न केवल उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य के लिए खतरा है बल्कि खाद्य मानकों की धज्जियाँ उड़ाने जैसा है।
★ सूत्र: “हर रात चलता है माल लोडिंग का गुप्त ऑपरेशन” एक गोपनीय सूत्र के अनुसार, “रात लगभग 10 बजे से 1 बजे तक कायमनगंज में कुछ गली-कूचों में लक्जरी बसें आकर रुकती हैं। वहाँ पर पहले से स्टाफ खड़ा रहता है जो माल लोड करता है। यह सब इतने सुनियोजित ढंग से होता है कि किसी को शक तक नहीं होता।”
★ जनता और स्थानीय नेता मौन, क्यों?
स्थानीय जनप्रतिनिधि, नगर पालिका और क्षेत्रीय विधायकों तक को इस अवैध गतिविधि की खबर होने के बावजूद वे मौन हैं। शायद कारण यही है कि इस पूरे खेल में आर्थिक लेन-देन की एक मजबूत कड़ी है, जो नीचे से ऊपर तक जुड़ी हुई है।
★ कब जागेगा शासन प्रशासन?
फर्रुखाबाद जैसे संवेदनशील जिले में इस तरह का खुला भ्रष्टाचार न केवल शासन की नाकामी को दर्शाता है बल्कि आम जनता का विश्वास भी खत्म करता है।
आम आदमी पूछता है— * जब सड़कों पर बिना परमिट की बसें सरेआम दौड़ रही हैं, तब RTO क्या कर रहा है?
जब बिना टैक्स के माल जा रहा है, तब जीएसटी अधिकारी कहाँ हैं?
जब बिना जांच के खाद्य पदार्थ भेजे जा रहे हैं, तब खाद्य सुरक्षा विभाग सो रहा है क्या?
★ आवश्यक कदम और समाधान 1. **स्पेशल टीम का गठन:** शासन को चाहिए कि वह एक विशेष जांच टीम (SIT) का गठन करे जो इन बसों की मॉनिटरिंग, गोदामों की जांच और जुड़े अधिकारियों की भूमिका की जाँच करे।
2. **RTO और मंडी अधिकारियों का ऑडिट:** पिछले छह महीनों का रिकॉर्ड खंगाल कर पता लगाया जाए कि किन-किन बसों ने कितनी बार परमिट लिया और कितने मामलों में जांच की गई।
3. **डिजिटल निगरानी:** बस अड्डों और प्रमुख मार्गों पर CCTV कैमरों से निगरानी बढ़ाई जाए।
4. **जन भागीदारी:** आम लोगों और जागरूक नागरिकों को भी इस विषय पर खुलकर सामने आने की जरूरत है।
★ निष्कर्ष: भ्रष्टाचार की इस बस यात्रा का अंत कब? जब तक जिम्मेदार विभागों में बैठे अधिकारी अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाएंगे और जब तक जनता इस भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज नहीं उठाएगी, तब तक फर्रुखाबाद से दिल्ली जाने वाली ये लक्जरी बसें तस्करी की रफ्तार से दौड़ती रहेंगी। यह रिपोर्ट न सिर्फ एक कड़वी सच्चाई को उजागर करती है, बल्कि एक चेतावनी भी देती है कि अगर अभी नहीं चेते, तो यह समस्या एक सामाजिक और आर्थिक महामारी का रूप ले सकती है।