उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद थे, गांधी गांधी युग के बहुमूल्य रत्न रूपी साहित्यकार
उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद थे, गांधी गांधी युग के बहुमूल्य रत्न रूपी साहित्यकार
कायमगंज /फर्रुखाबाद । साहित्यिक संस्था साधना निकुंज एवं अनुगूंज के संयुक्त तत्वावधान में मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर आयोजित परिचर्चा में वक्ताओं ने कथा साहित्य में उनके योगदान पर चर्चा की। प्रोफे. रामबाबू मिश्र ‘रत्नेश’ ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद ने अपने कथा साहित्य में मूक वंचित समाज की आवाज उठाई ।
समाज की सोयी चेतना को झकझोरा और संवेदनाओं को जगाया। उनकी भाषा में उर्दू की मिठास और हिंदी की रवानगी है। उनकी तुलना विश्व विख्यात कथाकार मैक्सिम गोर्की से की जाती है। वे गांधी युग के बहुमूल्य रत्न थे। गीतकार पवन बाथम ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद के कथा साहित्य पर साम्यवाद की झलक तो दिखती है। लेकिन वे असल में मानवतावादी साहित्यकार थे।
उन्होंने नग्न यथार्थ एवं कोरे आदर्श को नहीं माना वल्कि यथार्थ और आदर्श का समन्वय किया ।गबन और गोदान उनकी अमर कृतियां हैं। प्रधानाचार्य शिव कांत शुक्ला ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद विश्व के सर्वश्रेष्ठ कथाकारों में शुमार किए जाते हैं।
वी .एस. तिवारी,अनुपम अनुग्रह ,जेपी दुबे ,मनीष गौड़ आदि ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद ने अपने कथा साहित्य में प्रश्न उठाए, उनके उत्तर नहीं दिए। जो समस्याएं प्रस्तुत कीं, उनके निदान नहीं सुझाए। शायद उन्होंने ऐसा इसलिए किया होगा। क्योंकि प्रस्तुत समस्याओं का समाधान करना मानव समाज का ही दायित्व होता है । इसलिए उन्होंने प्रस्तुत प्रश्नों के उत्तर मानव समाज पर ही छोड़ रखे।