वायु प्रदूषण रोकने के लिए उठाने होंगे सख्त कदम
 
                                वायु प्रदूषण रोकने के लिए उठाने होंगे सख्त कदम
उत्तर भारत सर्दी के साथ उच्च वायु प्रदूषण के एक और सीजन में पहुंच गया है। मध्य नवंबर से वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 400 से ऊपर पहुंच जाने के कारण, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में स्कूलों को बंद करने और निजी क्षेत्र के आधे कर्मचारियों को वर्क फ्राम होम देने जैसे कई आपातकालीन उपाय लागू किए गए हैं। भले ही वायु प्रदूषण की चर्चाओं के केंद्र में दिल्ली रहती हो, लेकिन यह उत्तर भारत के दूसरे हिस्सों के लिए उतना ही महत्वपूर्ण संकट है। पिछले सप्ताह कई उत्तर भारतीय शहरों ने बहुत खराब एयर क्वालिटी दर्ज की है। उच्च वायु प्रदूषण से बच्चे, गर्भवती महिलाएं और बुजुर्गों के स्वास्थ्य को विशेष तौर पर खतरा है।
इससे सांस संबंधी गंभीर संक्रमण और हृदय रोगों सहित कई स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। लेकिन हर बार सर्दियां आते ही उत्तर भारत धुंध या स्माग में क्यों घिर जाता है ? धुंध या स्माग एक तरह का वायु प्रदूषण है, जो धुंए, कोहरे और अन्य प्रदूषकों का मिश्रण होता है। ऐसा इस क्षेत्र की खराब वायु गुणवत्ता के कारण होता है, जिसमें स्थानीय और क्षेत्रीय दोनों स्त्रोतों से आने वाला प्रदूषण शामिल है। कच्चे रास्तों और निर्माण गतिविधियों की धूल, वाहनों और खुले में कूड़ा जलाने के धुएं जैसे स्थानीय स्त्रोत प्रदूषण बढ़ाते हैं। लेकिन सर्दी के महीनों में पराली जलाने जैसे कुछ मौसमी स्त्रोत और उत्तर-पश्चिमी हवाएं चलने, हवा की रफ्तार घटने और तापमान गिरने जैसी प्रतिकूल मौसमी परिस्थितियों के कारण हालात और भी बदतर हो जाते हैं। इसलिए, वायु प्रदूषण के समाधान के लिए पूरे वर्ष ऐसे लक्षित कदम उठाने की जरूरत है, जो धुंध के मूल कारणों और इसके समाधानों पर केंद्रित हों। सबसे पहले, उत्तर भारत के शहरों को धुंध वाले दिनों को घटाने के लिए पूर्वानुमान आधारित निवारक उपायों को अपनाना चाहिए।
अब कई शहरों में अत्याधुनिक एयर क्वालिटी डिसीजन सपोर्ट सिस्टम (एडीएसएस), जो पूर्वानुमान और माडलिंग के आंकड़ों का उपयोग करता हैं। काउंसिल आन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर (सीईईडब्ल्यू) का आकलन है कि पूर्व सक्रियता के साथ लागू किए गए पूर्वानुमान आधारित आपातकालीन उपायों ने दिल्ली जैसे शहरों में गंभीर वायु प्रदूषण वाले दिनों की संख्या घटाई है। अब ऐसे पूर्वानुमान अमृतसर, भिवानी, गुरुग्राम और पटना सहित 45 अन्य शहरों के लिए भी उपलब्ध हैं, ताकि प्रदूषण का उच्च स्तर सामने आने के बाद कदम उठाने की जगह पर पूर्व सक्रियता के साथ स्वच्छ वायु नियोजन किया जा सके। महाराष्ट्र के ठाणे जैसे कुछ शहर तो अवैध निर्माण व विध्वंस अपशिष्ट फेंकने जैसे वायु प्रदूषण स्त्रोतों पर कार्रवाई करने के लिए एक्यूडीएसएस का उपयोग कर रहे हैं, जो शहरों में प्रदूषण का एक प्रमुख स्त्रोत है। उत्तर भारत के ज्यादा से ज्यादा शहरों को ऐसे उपायों पर विचार करना चाहिए। दूसरा, उत्तर भारत में किसानों को धान की पराली के बेहतर प्रबंधन के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। पराली जलने को लेकर दोषारोपण के बजाए इसके इन सीटू और एक्स - सीटू प्रबंधन विकल्पों के लिए, जमीनी सुविधाएं सुधारने पर ध्यान देने की जरूरत है।
सीईईडब्ल्यू के एक अध्ययन के अनुसार, सरकारी प्रयासों ने पंजाब में पराली प्रबंधन मशीनों की उपलब्धता बढ़ाई है, और लगभग 58 प्रतिशत से अधिक किसानों ने इनका उपयोग करने की जानकारी दी है। किसानों को यह जानकारी देने के लिए जागरूकता अभियान पूरे वर्ष चलाना चाहिए कि पराली न जलाने के विकल्पों को अपनाने से उर्वरकों का खर्च और पानी का उपयोग घट सकता है और मिट्टी की सेहत सुधर सकती है। तीसरा, सर्दियों में तापमान गिरने के साथ उत्तर भारत में शहरी प्राधिकरणों को पर्याप्त गर्म आश्रय स्थल बनाने की तैयारी करनी चाहिए और सुरक्षा गार्डों को हीटर उपलब्ध कराने का आदेश देना चाहिए। रात के समय काम करने वाले व्यक्ति और बेघर लोग अक्सर गर्मी के लिए बायोमास जलाते हैं, जिससे शहरी वायु प्रदूषण में आवधिक वृद्धि ( अलग-अलग समय में वृद्धि होती है। चौथा, पूरे वर्ष प्रदूषण में योगदान देने वाले निर्माण और परिवहन जैसे स्त्रोतों को सुधारने के लिए प्रणालीगत सुधार लाना चाहिए। उदाहरण के लिए, निर्माण स्थलों के लिए निर्धारित शर्तों के अनुपालन के बारे में सिर्फ सर्दी के महीनों में ध्यान दिया जाता है।
इस सीमित सक्रियता को बदलने की जरूरत है। परिवहन के मामले में, शहर मौजूदा मोबिलिटी पालिसी और सरकारी योजनाओं का लाभ लेते हुए पुराने वाहनों को चरणबद्ध रूप से हटाने और सार्वजनिक परिवहन सहित इलेक्ट्रिक बसों बेड़े की दिशा में बदलाव तेज कर सकते हैं। इसके साथ, शहरों को सार्वजनिक परिवहन की लास्ट माइल कनेक्टिविटी, समयबद्धता और सेवा गुणवत्ता में सुधार लाते हुए इसके इस्तेमाल के लिए अधिक से अधिक यात्रियों को आकर्षित करने पर ध्यान देना चाहिए। अंत में, स्वच्छ वायु से जुड़े प्रयासों में नागरिकों को भी शामिल करना होगा।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कौर चंद एमएचआर मलोट पंजाब
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 







 
                                                                                                                                                     
                                                                                                                                                     
                                                                                                                                                     
                                                                                                                                                     
                                                                                                                                                     
                                             
                                             
                                             
                                             
                                            