विषय आमंत्रित रचना -बच्चों को प्रेरणा
विषय आमंत्रित रचना -बच्चों को प्रेरणा ।
बच्चों को जीवन में विकास के लिये ज्ञान सीखने की भूख सदैव जागृत रखनी चाहिये । ज्ञान प्राप्त करने की मन की चाह भरती है जानने का नया उत्साह।ज्ञान प्राप्ति की पिपासा यही तो होती है जिज्ञासा।अपने अधूरेपन का अनुमान जगाता है ज्ञान प्राप्ति का भान ।जहां नहीं होती कुछ पाने की चाह समझो वही मर जाता है जीवन का उत्साह । जहां ज्ञान का प्रकाश होता है वहीं इस जीवन का विकास होता है।
जिज्ञासा की खिडकियों से ज्ञान रश्मियों के दर्शन होते हैं।दरवाजे बंद रखने वाले अज्ञान तिमिर के साये मे सोते हैं।केवल एक ढ़रे पर चलते रहने का नाम नहीं है जिन्दगी । कुछ नया वे ही कर पाते हैं जो जीवन में जिज्ञासा के साथ नये स्वप्न संजोते हैं।जिज्ञासी होगी तभी हम किसी काम को सीख सकते हैं या लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं।
हां, उन्होंने सच ही कहा है कि सफलता के द्वार पर दस्तक देने के लिए जिज्ञासा संजीवनी की तरह काम करता है। गुरुवाणी में भी यही बातें कही गई हैं कि केवल पढने से नहीं जिज्ञासा के साथ पढने से ही बात बनती है। यानी जिज्ञासा जगाओ और बूझो , फिर जगाओ और फिर बूझो। दरअसल हमारे भीतर का जो अनहद नाद है, उसे समझो।और उसे समझने के लिए जिज्ञासा रूपी खिडकी को खोल कर रखना होगा।
देखा जाए तो इनसान की दुनिया क्यों, कैसे, क्या, कब और कहां जैसे सवालों से भरी हुई है। दरअसल किसी भी घटना के पीछे इन्हीं सवालों का जवाब होता है। इनके जवाब ढूंढने की प्रक्रिया को ही उत्सुकता का नाम दिया जाता है। यही उत्सुकता ज्ञान का रास्ता दिखाती है । जो आगे सफलता हासिल करने में सहायता करती है। यदि यह कहें कि ज्ञान और जिज्ञासा सफलता के खजाने तक पहुंचने के मूल और महत्वपूर्ण रास्ते हैं तो शायद गलत नहीं होगा।
वैसे एक सर्वे में भी यह बात सामने आई है कि हर सफल व्यक्ति जिज्ञासु प्रवृत्ति का होता है । क्योंकि हर छोटी-बडी चीज को जानने, समझने और उस पर विचार करने की कोशिश ही उन्हें सफलता के मायने समझाती है। वैसे यह भी एक सच्चाई है कि विचारों का यही मंथन इंसान को न केवल ज्ञान के नए-नए स्वरूप से परिचय कराता है बल्कि कामयाबी की नई-नई राहें भी आगे दिखलाता है। जिज्ञासा के लिए हम नमन करते है भगवान महावीर के अंतेवासी शिष्य गणधर गौतम को। उनके माध्यम से ही ज्ञान का भंडार हमे उपलब्ध है। आगम संपदा में विशाल भगवती प्रश्नोत्तर शैली में ही निर्माण हुआ है ।
और जिज्ञासा के माध्यम से अध्यात्म, विज्ञान, भौतिक शास्त्र, लोक, परमाणु, पूर्वजन्म , पुनर्जन्म आदि जैसे कितने ही विषयो का गहन ज्ञान हमे प्राप्त हो गया। स्वाध्याय के पांच प्रकार में प्रच्छना को भी रखा गया है। प्रच्छना यानी जिज्ञासा । जिज्ञासा हैं तभी तो अविच्छिन्न-अक्षय निधियों का ज्ञान है । जो बार -बार मन में उठ रहे उफान को शांत कर अनगिन अद्दभूत अनुभव सा सिन्धु बनता हैं ।जिज्ञासा रही तभी तो दूध से मक्खन निकला व इसका ज्ञान अनुभव जिज्ञासा से आता है ।
इसी प्रकार जीवन के हर क्षेत्र में सार होता है सबको पता है लेकिन जीवन का सार हर कोई नहीं निकाल पाता है क्योंकि जिज्ञासा और अनुभव का अभाव है।हमारी अज्ञानता ज्ञान गंगा रूपी जीवन में प्रवाहित होती रहे और हमारी जिज्ञासा बनी रहे । जिज्ञासा से ज्ञान को बढाने की बनी रह्ती इच्छा। विषय को समझने की पैदा होती उत्सुकता।आगे से आगे जानने की सजगता रहती है ।ज्ञान असीम और अनंत है। जिज्ञासा उस और चलने का पथ है। जिज्ञासा दिमाग की कसरत है व सफलता की और बढ़ते चरण है। जीवन मे बनी रहेगी कभी जिज्ञासा। तो कभी पैदा नहीं होगी उदासीनता।
उम्र भी कभी नही करेगी बुढापे का तकाजा। मन भी सदा हमारा रहेगा बच्चों की तरह ताजा। जितने भी महान और सफल बने है। उसमें जिज्ञासा को बनाये रखना ही उसका रहस्य रहा है। इतिहास मे महाभारत काल के दौरान एकलव्य मे जो धनुर्विद्या जिज्ञासा का उदहारण। असम्भव को भी सम्भव बनाने की घटना। ऐसे अनेकहै संसार में प्रतिभाओं और योग्यताओं के वर्गीकरण हैं । बनी रहे जिज्ञासा एक न एक दिन सफल और साकार होगें सजोये हुए सारे स्वप्न। अत: बनी रहे जिज्ञासा । प्रदीप छाजेड़ ( बोरावड़ )