आज की तस्वीर
आज की तस्वीर
यह आज की सबसे बड़ी समस्या हैं कि लोगों की रोग प्रतिरोगात्मक क्षमता खत्म हो रही है । थोड़ा सा कुछ हुआ कि तुरन्त रोकथाम । इस तरह मैं कहु कि मानव असहिष्णु हो गया हैं तो गलत नहीं होगा । अगर जीवन में बढ़ाना हो आगे तो दर्द भी सहना आना चाहिये।
पर विडमबना है कि कुछ दशक पहले परिवार संयुक्त और बड़े होते थे।घर में एसो-आराम और नौकर चाकर की इतनीव्यवस्था भी नहीं होती थी।घर की माताएँ अपने बच्चों को ऐसे ही छोड़ देती और घर के काम में व्यस्त रहती थी ।बच्चे गिरते,चोट लगती आदि पर कोई पूछने वाला नहीं होता।थोड़ी देर दर्द सहन करके अपने जीवन में मस्त हो जाता।वो दर्द सहना ही उनके भावी जीवन में आने वाली समस्याओं की ताक़त होती थी। आज के माहौल ठीक उसके विपरीत है।
एकल परिवार,एक या दो बच्चों का परिवार।जब बच्चे कम होते हैं तो उनकी देखभाल इस तरह की जाती है कि जैसे वो कोई पौधे के फूल हों।उनके अगर छींक भी आये तो दवाइयों का ढेर लग जाता है।वो ऐसे पाले जाते हैं जैसे किसी राज्य के राजकुमार।एक तो वो दर्द समझ नहीं पाते और दूसरा किसी का टोका हुआ उनको बर्दाश्त नहीं होगा।
जब कभी उन बच्चों के जीवन में अति विषम परिस्तिथियों का सामना होता है तो वो उसे झेल नहीं पाते और कोई भी ख़तरनाक निर्णय लेने में संकोच नहीं करते।चाहे बाद में उसका परिणाम कुछ भी हो। इसलिए अगर आप अपने बच्चों का भविष्य उज्जवल और हर परिस्तिथि में जीवन जीने के लायक़ बनाना चाहते हो तो उनको थोड़ा रफ़-टफ़ होने दो।
जब जीवन में दर्द सहना सीख जाएँगे तो जीवन में हर परिस्तिथि में जीवन जीना सीख जाएँगे। बस आज की दुनिया की यही है रीत को सही से हमे समझना हैं । प्रदीप छाजेड़ ( बोरावड़)
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