सपनों से खिलवाड़ !
 
                                सपनों से खिलवाड़ !
विजय गर्ग
सब मानते और इस पर गर्व भी करते हैं कि युवा हमारे देश की सबसे बड़ी पूंजी हैं, जो आने वाले दिनों में देश को विकसित भारत बनाने में सबसे बड़ी भूमिका निभाएंगे। पर क्या हमें अपनी इस पूंजी की परवाह है।
शायद नहीं। क्योंकि यदि हम सभी को उनकी परवाह होती, तो इनके सपनों की बोली लगाने में सब एकजुट नहीं हो जाते। कोचिंग संचालकों से लेकर पीजी व किराये पर मकान उपलब्ध कराने वाले सभी को संभवतः यही लगता है कि सपनों को पूरा करने की जद्दोजहद में युवा कोई भी मोल चुका सकते हैं। पर उन्हें शायद इस बात का जरा भी अहसास नहीं है भी तो अपने स्वार्थ में उन्हें परवाह नहीं कि इन सपनों के पीछे उन युवाओं और उनके स्वजन के कितने कष्ट छिपे हैं। हर जगह सौदेबाजीः देश के दूर- दराज के गांवों, कस्बों, शहरों के युवाओं को लगता है कि यदि वे दिल्ली, कोटा जैसे शहरों में नामी गिरामी कोचिंग संस्थानों से मार्गदर्शन ले लें. तो निश्चित रूप से उनके सपने पूरे हो सकते हैं।
इसी उम्मीद में उनके स्वजन कर्ज लेकर या अपने घर, खेत, जमीन बेचकर या गिरवी रखकर भी उन्हें अपने अरमान पूरे करने के लिए दिल्ली या कोटा जैसे शहरों की महंगी कोचिंग करने भेज देते हैं। पर इसके लिए उनके जिगर के टुकड़ों को कदम- कदम पर सौदेबाजी का शिकार होना पड़ता है। किसी तरह अपनी पसंद के कोचिंग में सीट मिल भी गई, तो रहने- खाने की जबैजहद शुरू हो जाती है। जिस संतान की परवरिश माता-पिता बड़े लाड़-दुलार से करते हैं, उसी को डारमेट्री जैसे आकार-प्रकार वाले पीजी या कमरे में रहने को विवश होना पड़ता है। रहने और खाने के नाम पर उनसे मनमाने पैसे वसूल किए जाते हैं और यह सब युवा सिर्फ और सिर्फ इसलिए सह लेते हैं, क्योंकि उनकी अरबों में कामयाबी के सपने होते हैं। कौन लेगा जिम्मेदारी: दिल्ली के ओल्ड राजेंद्र नगर के कोचिंग संस्थान की दो मासूम छात्राओं और एक छात्र के बेसमेंट में सीवर का गंदा पानी भर जाने से हुई मौत की जिम्मेदारी लेने कोई आगे नहीं आया, ना तो कोचिंग संस्थान, ना इमारत का स्वामी और ना ही नगर निगम ।
बेशक केस दर्ज होने के बाद कोर्ट की तरफ से सभी को फटकार लगाई जा रही है, पर क्या इससे उन मासूमों की जिंदगे वापस आ सकेगी। उक्त घटना के बाद नाराज छात्रों द्वारा किए जा रहे धरने- प्रदर्शन में जब कोचिंग संचालकों की बुलाने की मांग की जा रही थी, तब भी उनके मालिक संवेदना शून्य बने रहते हुए अज्ञातवास में चले गए। उल्टे मोटिवेशनल गुरु के रूप में बड़ी-बड़ी बातें करने वाले एक कोचिंग संचालक ने एक तरह से सरकार की ही जवाबदेही बताते हुए इंडस्ट्री की तरह कोचिंग के लिए अलग से क्षेत्र तय करने की मांग कर डाली। कोचिंग को जबर्दस्त लाभ वाला उद्योग बना बैठे इन संचालकों की क्या युवाओं, देश और समाज के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं है?
युवाओं से हर वर्ष करोड़ों की फीस बटोरने वाले ये कोचिंग संचालक क्या कभी अपने भीतर भी झांकने की कोशिश करेंगे? क्या नगर निगम, फायर ब्रिगेड, पुलिस आदि विभाग अपनी जिम्मेदारियों को ईमानदारी से निभाने की पहल करेंगे ? यह स्थिति केवल दिल्ली, कोटा की ही नहीं, बल्कि कई बड़े शहरों की भी है।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य शैक्षिक स्तंभकार मलोट
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 







 
                                                                                                                                                     
                                                                                                                                                     
                                                                                                                                                     
                                                                                                                                                     
                                                                                                                                                     
                                                                                                                                                     
                                             
                                             
                                             
                                             
                                            