सच है कि…
सच है कि…
जीवन जन्म मरण के मध्य का समय है । केवल ज्ञानी या अन्य ज्ञान के धारक ही यह बता सकते है कि मध्य का समय कितना है जो वर्तमान में हमारे यहाँ सम्भव नहीं है ।
परन्तु हम अनिश्चित जीवन के समय में एक कार्य तो करे कि ज्यादा से ज्यादा जैसे जहाँ जब भी सम्भव हो धर्म करने में रत रहे । संसार में रहते हुए आसक्ति से दूर करने का प्रयास करे । अगर हमारे आसक्ति है तो कर्मों की श्रंखला भी गहरी है जो संसार भ्रमण को बढ़ाने वाली है अगर निवृत्ति है तो समझो आत्मा के कर्म हल्के होते जा रहे है । जो सत्य अटल है वो ही ध्रुव सत्य है।
आत्मा अमर है शरीर नश्वर।जैसे हम रोज़ कपड़े बदलते हैं वैसे ही आत्मा अपना समय पूरा होते ही उस शरीर से निकल कर दूसरा चोला धारण कर लेती है। मनुष्य जन्म मिला।सभी जानते हैं कि हम खाली हाथ आए हैं यह तो सब याद रखते है पर खाली हाथ ही जाना होगा अंत समय जब इस दुनियाँ से विदा होंगे तब एक फ़ुटी कोड़ी भी साथ नहीं ले जा सकते। इस बात को क्यों भूल जाते जाते हैं ।
इसीलिए तो जीवन का सही मूल्यांकन नहीं करते ।इसी विस्मृति में मोह माया के जाल में उलझ जाते है व ग़लत करने में भी हम नहीं डरते हैं । यह ध्रुव हम सब सत्य जानते हैं पर अमल नहीं करते। जो इस मर्म को समझ लिया उसे जीवन जीना आ गया। मेरे चिन्तन से रोज रात को सोने से पहले समीक्षा हो कि जो सही हुआ उसकी प्रशंसा करे,उपलब्धि माने जो ग़लत हुआ उसका पश्चात्ताप हो तथा उसे सुधारे आनेवाले कल में ना दोहराए वो ग़लतियाँ कुछ ऐसे तथ्य जोड़े जो खोदे गए ग़ड्डे को पाटकर समतल कर सके सोचे ,
हर दिन नया जन्म , हर रात नई मौत ।जीवन-मृत्यु का चक्र चलता रहता है बार-बार। हम जन्म लेते है तो देह त्यागकर मृत्यु को अपनाते है। यही जीवन का शाश्वत सत्य है जिसे कभी भी नकारा नही जा सकता हैं ।मृत्यु में भी नए जीवन का सार छिपा है यह सिलसिला यूँ ही चलता रहा है तथा यूँ ही चलता रहेगा। जब तक जीवन सम्भव है इस धरा पर।इसलिए डरें नहीं सच को स्वीकार करे । प्रदीप छाजेड़ ( बोरावड़)