मानव की मानसिकता

May 1, 2024 - 11:29
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मानव की मानसिकता
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मानव की मानसिकता

मानव गलत करेगा तो उसको भय होगा ही होगा । आज के दौर में दूसरों की सराहना प्रशंसा करने का रिवाज घटते जा रहा है।दुसरो शब्दों में कहें तो दूसरे की तारीफ करने में स्वार्थ - वश ख़ुद की जुबान पर ताला लगने का रिवाज बढ़ते जा रहा है। वैसे में मिलनसारिता की मिसाल/ प्रमोद भावना व्यक्त करने वाले कूछ विरले ही होते हैं ।

ऐसे में अद्भुत है वो, जो मान और सम्मान , प्यार - अपनापन - प्रमोद भावना की एक साक्षात् मिसाल होते है। फिर चाहे फ़ासलें कितने ही लम्बे हो,विचारों का मेल, कथनी - करनी की समानता , अपनापन सारी दुरियाँ दूर कर देता है। उनकी आत्मीयता नम्रता , भितर से बिना गाँठ आदि का नग़मा लिए प्यार की सुरीली मीठी बयांर के साथ जीवन में सतरंगी छटा बिखेरे एक नीले प्रांगण की ह्रदय विभोर की बरखा सी लगती हैं।

तभी तो अपनापन गर दिल में वह मानव मिसाल है जग में, प्रीति की सुर-सरिता निरन्तर बहे उसके तो रग-रग में। जिस मनुष्य के हृदय में सच्ची मानवता हैं उसकी सोच हमेशा यही होगी कि मुझे मिला हुआ दुःख किसी को नही मिले और मुझे मिला हुआ सुख सबको मिले । उस का यही स्वभाव उसकी मानवता दर्शाता है ।

वह हर दम मस्त हाल में कंही महल कंही कुटिया खस्ताहाल में जीवन शैली अजब चेहरे पे मुस्कान गजब मानवता का पाठ पढ़ाता साथ चलते रहता है । कभी भी वह नहीं थकता है मस्त होता उसका आलम जहां मिली जगह वहां जमा दी जाजम ।तभी तो कहा है कि बहुत से मानव है जिनकी जिन्दगी बिना किसी भी अपेक्षा के ही भगवद् गुणगान में ही बीत रही हैं । प्रदीप छाजेड़