वोटर लिस्ट विवाद: तीन साल बाद भी अधूरा जवाब, अखिलेश यादव ने उठाए चुनाव आयोग पर सवाल

Aug 22, 2025 - 08:48
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वोटर लिस्ट विवाद: तीन साल बाद भी अधूरा जवाब, अखिलेश यादव ने उठाए चुनाव आयोग पर सवाल

वोटर लिस्ट विवाद: तीन साल बाद भी अधूरा जवाब, अखिलेश यादव ने उठाए चुनाव आयोग पर सवाल

लखनऊ। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 के दौरान वोटर लिस्ट से नाम हटाने के आरोप एक बार फिर चर्चा में हैं। समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रमुख अखिलेश यादव ने दावा किया है कि उनकी पार्टी द्वारा सौंपे गए **18,000 हलफनामों में से केवल 14 का ही जवाब** अब तक प्राप्त हुआ है। यह मामला चुनाव आयोग और जिलाधिकारी व्यवस्था की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़ा कर रहा है।

★आयोग बनाम प्रशासन: किसकी बात सही?** शुरुआत में चुनाव आयोग ने यह दावा किया था कि उसे ऐसे कोई हलफनामे नहीं मिले हैं। लेकिन अब **कुछ जिलाधिकारियों की ओर से जवाब मिलना शुरू हो गया है**, जिससे इस कथन पर संदेह गहराता जा रहा है। अखिलेश यादव ने कहा, *"अगर जिलाधिकारी जवाब दे रहे हैं, तो आयोग ने हलफनामे नहीं मिलने का झूठ क्यों बोला?"* उन्होंने इसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भारी गड़बड़ी का प्रमाण बताया।

★वोट की ‘डकैती’ का आरोप** अखिलेश यादव ने भाजपा पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि पार्टी ने **मौर्य, राजभर, कुर्मी, पाल और बेनीवंशी** समाज के वोट कटवा कर चुनावी नतीजों को प्रभावित किया। मडियाहूं सीट का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा, *“यह सीट केवल 1206 वोट से हारी गई। अगर वोटरों के नाम न काटे गए होते, तो परिणाम अलग होता।”*

★जिलाधिकारियों की सफाई** जौनपुर के जिलाधिकारी ने कहा कि जिन पांच मामलों की जांच की गई, वे सभी मृतक थे और नियमानुसार नाम हटाया गया। लेकिन सपा का दावा है कि उन्होंने **300 से अधिक शिकायतें** की थीं और सिर्फ पांच का जवाब देना **खानापूरी मात्र** है।

★‘17986 का जवाब अब भी बाकी’** सोशल मीडिया पर सक्रिय रहते हुए अखिलेश यादव ने लिखा: *"यह हक का गणित है, जहां 17986 हलफनामों का जवाब अब भी बाकी है। यह मामला अब अदालत का है, ताकि लोकतंत्र की सच्चाई सबके सामने आ सके।"*

★ चुनाव आयोग की साख पर असर** राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह विवाद सिर्फ एक पार्टी का विरोध नहीं, बल्कि **लोकतांत्रिक व्यवस्था की पारदर्शिता पर सीधा प्रश्नचिन्ह** है। अगर इतने बड़े स्तर पर वोटरों के नाम काटे गए और उनकी जांच लंबित रही, तो यह चुनावी प्रक्रिया की वैधता पर गंभीर असर डाल सकता है।

★ निष्कर्ष:** उत्तर प्रदेश की राजनीति में यह मामला एक बार फिर गरमाने लगा है। सपा जहां इसे 2027 की रणनीति का केंद्र बना रही है, वहीं भाजपा और प्रशासन को अपनी निष्पक्षता साबित करने की चुनौती है। क्या अदालत इस पर संज्ञान लेगी? और क्या चुनाव आयोग पारदर्शिता की परीक्षा में खरा उतर पाएगा? यह देखना बाकी है।