बढ़ता तापमान: अब भी नहीं जागे तो बहुत देर हो जाएगी
बढ़ता तापमान: अब भी नहीं जागे तो बहुत देर हो जाएगी

धरती का पारा हर साल थोड़ा और चढ़ता जा रहा है, और हम अब भी इसे नजरअंदाज कर रहे हैं। कभी यह केवल वैज्ञानिकों की चेतावनी लगती थी, लेकिन अब यह सच्चाई बन चुकी है- हर शहर, हर गांव, हर इंसान इसे महसूस कर रहा है। तापमान में यह बढ़ोतरी केवल मौसम की एक घटना नहीं है, बल्कि यह हमारे समय की सबसे गंभीर पर्यावरणीय चुनौती बन चुकी है।
गर्मी का मौसम अब बस गर्म नहीं रहता, बल्कि जानलेवा हो चला है। हीटवेव, सूखा, जल संकट, और बीमारियाँ... यह सब बढ़ते तापमान की चेतावनी हैं। दिल्ली, लखनऊ, जयपुर, नागपुर-देश के लगभग हर कोने में तापमान 45 के पार जा पहुंचा है। यह केवल रिकॉर्ड तोड़ आँकड़े नहीं हैं, बल्कि आने वाले खतरे की घंटी हैं। क्या हम सच में अब भी इसे हल्के में ले सकते हैं?
पृथ्वी का बढ़ता तापमान सिर्फ वातावरण को गर्म नहीं कर रहा, यह हमारे स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था और भविष्य को भी जला रहा है। किसानों की फसलें सूख रही हैं, बच्चों की पढ़ाई गर्मी की छुट्टियों में उलझ रही है, और मजदूर तपती दोपहर में ज़िंदगी की जंग लड़ रहे हैं। इस मौसम की बढ़ती गर्मी के चलते स्वास्थ्य समस्याएँ भी बढ़ रही हैं, जैसे हीट स्ट्रोक, डिहाइड्रेशन और हृदय संबंधी बीमारियाँ। घरों में एयर कंडीशनर्स की बढ़ती संख्या और गाड़ियों की प्रदूषण बढ़ाने वाली फैक्ट्री कॉलोनियाँ इसके संकेत हैं कि हमें सचमुच जलवायु परिवर्तन की ओर गंभीरता से सोचना चाहिए।
इसका सबसे बड़ा कारण है-मानव गतिविधियाँ। जंगलों की कटाई, तेज़ी से बढ़ता शहरीकरण, अनियंत्रित गाड़ियों की संख्या, और फैक्ट्रियों से निकलने वाला धुआँ-सब मिलकर धरती को बुखार दे रहे हैं। प्रदूषण, कार्बन उत्सर्जन, और प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन हमारे ग्रह को नष्ट कर रहा है। अब तो ये स्थिति बहुत गंभीर हो चुकी है कि हम अपनी गलती को समझने के बजाय हमेशा किसी और को जिम्मेदार ठहराते हैं। हम क्या कर रहे हैं? क्या हम अपने भविष्य को खतरे में डालने के लिए तैयार हैं?
लेकिन दुख की बात यह है कि इलाज की बात कम होती है और अनदेखी ज़्यादा। पर्यावरण को बचाने के उपायों के बारे में सरकारें और संगठन समय-समय पर चर्चा करते हैं, लेकिन वास्तविक बदलाव के लिए जब तक हम नागरिक जागरूक नहीं होंगे, तब तक कोई खास असर नहीं होगा। हमे ये समझना होगा कि पर्यावरणीय संकट को केवल सरकार और संगठनों की जिम्मेदारी नहीं ठहराया जा सकता। अगर आम लोग अपनी आदतों में बदलाव लाएं तो इसका सकारात्मक असर जरूर पड़ेगा।
अब समय आ गया है कि हम पर्यावरण को प्राथमिकता दें, न कि केवल विकास की अंधी दौड़ में भागें। सौर ऊर्जा, पब्लिक ट्रांसपोर्ट, वृक्षारोपण जैसे उपाय कोई ‘विकल्प’ नहीं, बल्कि ‘ज़रूरत’ बन चुके हैं। शहरीकरण की ओर बढ़ते हुए हमें स्मार्ट सिटी के तहत पर्यावरण की रक्षा करने के उपायों को भी लागू करना होगा। हमें ऊर्जा के विकल्पों को बदलने के लिए नई तकनीकी और नीतियों को अपनाने की आवश्यकता है।
हमें इस खतरे से बचने के लिए अब से ही कार्रवाई शुरू करनी होगी। हमें अपनी आदतों को बदलने की दिशा में पहला कदम उठाना होगा। कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए वाहनों के प्रयोग में कमी लानी होगी, प्लास्टिक का उपयोग कम करना होगा और पानी का बचाव करना होगा। सरकारी योजनाओं के साथ-साथ हम खुद भी जागरूकता फैलाकर पर्यावरण को बचाने की दिशा में कदम उठा सकते हैं।
सरकार की नीतियाँ तभी सफल होंगी जब हम नागरिक भी जागरूक बनें। हर घर, हर मोहल्ला, हर स्कूल, हर ऑफिस को पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनाना होगा। छोटी-छोटी आदतें-जैसे पानी की बचत, प्लास्टिक का कम प्रयोग, और हर साल एक पेड़ लगाना-बड़ी क्रांति ला सकती हैं। जब हम अपने रोज़मर्रा के जीवन में छोटे-छोटे कदम उठाएंगे, तो न केवल पर्यावरण की रक्षा करेंगे, बल्कि आने वाली पीढ़ी को भी एक स्वस्थ और सुरक्षित धरती देंगे।
बढ़ता तापमान केवल मौसम की समस्या नहीं है, यह जीवन की समस्या है। और इसका समाधान हम सबके हाथों में है। अगर हम अब नहीं जागे, तो बहुत देर हो जाएगी। हमें यह समझना होगा कि यह केवल पर्यावरण की चिंता नहीं है, बल्कि यह हमारी सुरक्षा और भविष्य की चिंता भी है। एकजुट होकर और ठान कर ही हम इस संकट से बाहर निकल सकते हैं। हमें अपनी ज़िम्मेदारी निभानी होगी, नहीं तो आने वाली पीढ़ियाँ हमें माफ नहीं करेंगी।