दो मोती, बेशक़ीमती
दो मोती, बेशक़ीमती
जिन्दगी में बहुत बार परिस्थिति आती है कि कभी भी कोई काम करने के बारे में असमंजस में हों जाते है कि कार्य यह करूँ कि न करूँ तो ऐसी स्थिति में क्या किया जाये ।
इसका उतर मेरे चिन्तन से होगा कि कार्य करने में काल भाव की अगर अनुकूलता नहीं हो तो छोड़ दे । कार्य करना सुगम हो तो स्वयं के विवेक से कार्य के प्रति चिन्तन करे किसी दूसरे के कहने से नहीं । इस तरह आगे बढ़ा जा सकता है । आत्म-सम्मान को अनुशासन के धागे से बाँधते रहे । बौद्धिकता के साथ नम्रता,सहन शीलता आदि जागे ।
आत्म-सम्मान और बढ़े अगर दृढ़ता हो तो जिद नहीं बहादुरी हो, जल्दबाजी नहीं दया हो, हमारी कमजोरी नहीं ज्ञान हो, अहंकार नहीं करूणा हो, प्रतिशोध नहीं सही से कार्य के प्रति निर्णायकता हो असमंजस नहीं हो ।इतिहास साक्षी है जब-जब सत्य व तथ्य से जुड़े समाज व देश के नव-निर्माण में प्रयत्नशील होकर सृजन के बहुआयामी चित्र उकेरे हैं तब-तब अंतर्मन का उद्वेलन और अनुभूतियों की टकराहत मन की संवेदनाओं को जगाकर स्वयं के स्वाभिमान को एक ओर सुरक्षित व सँवर्धित करता आया हैं।
तो बस चलते रहे हम अपनी मस्ती में उर में लेकर हरपल एक जोश नया। ना परवाह करे इनअंधियारों की जलाये आत्म-सम्मान का मजबूत दीया। जीवन में मुश्किलें हमको तराशने आती हैं ।
मैं तो कहता हूँ कि मुश्किल नहीं आये तो जीवन ही क्या । क्योंकि मुश्किल ही हमको जीवन जीना सही से सिखाती हैं । हमको इससे डरना नहीं हमें जीवन को संवेरना है ।क्यों हटें पीछे ,क्यों थमें बीच राह में ? आगे मंज़िल पुकार रही है ।खड़े रहें और अड़े रहें हमें हर मुश्किल का मुक़ाबला करना है ।
अनथक ,अनवरत आगे बढ़ना है ।हर रजनी के बाद आयेगा दिवाकर , स्मित मुख से स्वागत उसका करना है ।जीवन के संघर्षों में समय-समय पर कुछ-कुछ मुश्किलें आएँ जिन्हें हम हल कर पाएँ तभी तो जीवन का आनन्द आयेगा कि हम कुछ कर पाए। सहर्ष प्रवाहमान रहने जिन्दगी में सब कुछ आसानी से मिलता जाए तो जिया किसलिए जाए। प्रदीप छाजेड़ ( बोरावड़)