दौलत
दौलत
माना कि दौलत मानव के मरते समय तक बहुत बहुत काम आती है परन्तु आगे साथ में हमारे कर्म जाते है । तन की दौलत ढलती छाया मन का धन अनमोल ।तन के कारण मन के धन को मिट्टी में ना रोल ।खड़े हैं दोराहा में एक तरफ़ पैसे का बोलबाला !
दूसरी तरफ़ नैतिकता का ! जाएं तो किधर जाएं ? पैसों की हवस से कमाई । ऐशो आराम और ख़ुशियों का जहां रह जाएगा धरा यहाँ का यहाँ और नैतिकता की दौलत जाएगी साथ मिल जाएगा आनंद शाश्वत फिर न होगा घात ।
तीन महीने के बच्चे को दाई के पास रखकर जॉब पर जाने वाली माँ को दाई ने पूछा कि कुछ रह तो नहीं गया पर्स, चाबी आदि सब ले लिया ना ।अब वो कैसे हाँ कहे...पैसे के पीछे भागते भागते... सब कुछ पाने की ख्वाईश में वो जिसके लिये सब कुछ कर रही है वह ही रह गया है ।यह कितनी अजीब बात है ना दुनिया तो एक ही है फिर भी सबकी अलग है ।
नश्वर धन-दौलत है माया नश्वर है ये काया राजा चक़्री चाहे कोई साथ नही ले पाया है ।एक बार हम समय निकालकर सोचें शायद पुराना समय याद आ जाए आंखें भर आएं और आज को जी भर जीने का मकसद मिल जाए ।क्या पता कब इस जीवन की शाम हो जाये| सहेज ले समेट ले ताकि कुछ छूट न जाये | शरीरांत पर दौलत की एक पाई भी साथ नहीं जाएगी | सारी की सारी यहीं पर रह जाएगी। यह सच्चाई प्रायः सब भूल जाते हैं और अन्धाधुन्ध पैसे के पीछे भागते हैं। प्रदीप छाजेड़ ( बोरावड )