नसीहत का तरीका
नसीहत का तरीका
आरंभ हो और अंत न हो | मन इतना भी स्वतंत्र न हो | व्यथित हो और शब्द न हो | मन इतना भी परतंत्र न हो | कहते है कि किसी में दोष दिख जाये तो सबके सामने कहने से वह अपमानित महसूस करेगा । इसलिये किसी की कमी उसे एकान्त में सही से बता दे जिससे किसी को दुःख भी नहीं हो , बात भी रह जाये और काम भी हो । आज के ज़माने में तेज़-तर्रार कोई किसी कीं नही सुनता हैं । हमें सख़्ती की जगह शांति व नरमी से बात रखनी आनी चाहिए।
क्योंकि तमाम लहजों में लहजा वही जो प्यार का है। तभी तो नसीहत मीठे एवं नरम शब्दों में ही अच्छी लगती है । कडवे एवं चीख कर कहे शब्दों का मतलब गलती को ठीक करना नही बल्कि व्यक्ति को गलत सिद्ध करना होता है।इसलिए कहिए मगर प्यार से कर्म ही दण्डित करे कर्म ही करे पुरस्कृत ।
मनुष्य को उसका कर्म ही दण्डित या पुरस्कृत करते है । इस सृष्टि का आधार ही कर्म है ।कोउ न काहु सुख दुःख कर दाता । निज कृत करम भोग सुनु भ्राता । कर्म के उत्तराधिकारी हम स्वयं ही होते है ।इसे हम किसी ओर पर दोष देकर छूट नही सकते।कर्म भूमि की दुनिया में,श्रम अपने को करना है भगवान सिर्फ लकीरें देता है,रंग हमें ही भरना है ।
इसलिए दंड या पुरस्कार अपने अपने कर्म पर निर्भर है। तभी तो फलों का राजा होकर भी आम किलो के भाव बिकता है ।जब कि श्री फल संख्या के हिसाब से । सबका अपना कर्म-अपना गर्व।तभी तो कहा हैं की जिन्दगी कदम कदम पर नसीहतों का पिटारा है।कोई लेने वाला चाहिए। पूरी जिन्दगी में तो वह पिटारा न जाने कितना सारा है। प्रदीप छाजेड़ ( बोरावड़ )