धूल में छिपा धीमा जहर

Jan 29, 2025 - 13:52
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धूल में छिपा धीमा जहर
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धूल में छिपा धीमा जहर

देश के कुछ हिस्सों में सिलिकोसिस की समस्या इतनी आम हो गई है कि इसे लगभग स्वाभाविक मान लिया गया है। राजस्थान, गुजरात और अन्य क्षेत्रों में खदानों और फैक्ट्रियों में काम करने वाले लोग इसके सबसे ज्यादा शिकार हैं। हर दिन धूल से ढकी जिंदगियां एक अदृश्य खतरे में डूबी रहती हैं। इन कामगारों का संघर्ष केवल मेहनत तक सीमित नहीं होता। वे हर सांस के साथ उस धूल को अंदर ले रहे होते हैं, जो उनकी सेहत के लिए घातक है। यह समस्या केवल शारीरिक दर्द तक सीमित नहीं है। यह उनकी आर्थिक स्थिति, परिवार के भविष्य और समाज की स्थिरता को भी प्रभावित करती है।

यह बीमारी अचानक नहीं फैलती । यह उन जगहों पर पनपती है, जहां श्रमिक सुरक्षा नियम या तो लागू नहीं होते या फिर उनका पालन नहीं किया जाता। निर्माण स्थलों, पत्थर काटने वाली फैक्ट्रियों और खदानों में काम करने वालों के लिए यह बीमारी एक ऐसी छाया की तरह है, जो हमेशा उनके साथ रहती है, लेकिन उस पर कम ध्यान दिया जाता है। इस रोग का सबसे खतरनाक पहलू यह है कि यह अकेले नहीं आता। यह अक्सर टीबी जैसी बीमारियों को भी साथ लेकर आता है। फेफड़ों की कमजोर स्थिति टीबी जीवाणुओं के लिए उपयुक्त वातावरण बनाती है। जब ये दोनों बीमारियां एक साथ होती हैं, तो पीड़ित का जीवन और भी कठिन हो जाता है। सिलिकोसिस की बीमारी पूरी तरह से रोकी जा सकती है। यह उन बीमारियों में से एक है, जिनसे बचाव के उपाय बेहद सरल हैं। कार्यस्थलों पर धूल को नियंत्रित करना, सुरक्षा उपकरणों का उपयोग सुनिश्चित करना और नियमित स्वास्थ्य जांच जैसे उपाय इस बीमारी को रोक सकते हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि इन उपायों को अपनाने में गंभीर लापरवाही होती है। श्रमिकों को मास्क या सुरक्षात्मक उपकरण नहीं दिए जाते। कार्यस्थलों पर धूल नियंत्रण के उपाय अक्सर लागू ही नहीं होते। कई बार आर्थिक दबाव या नियमों की अनदेखी से यह स्थिति और भी गंभीर हो जाती है। नतीजतन सिलिकोसिस से पीड़ित व्यक्ति की काम करने की क्षमता धीरे- धीरे खत्म हो जाती है। परिवार की आय का मुख्य स्रोत खत्म हो जाता है और आर्थिक बोझ बढ़ जाता है। इसके अलावा यह बीमारी परिवार के अन्य सदस्यों पर भी मानसिक और आर्थिक दबाव डालती है ।

 इलाज के लिए लंबी प्रक्रिया और सीमित संसाधन इसे और भी चुनौतीपूर्ण बना देते हैं। बहरहाल इस जानलेवा बीमारी के रोकथाम के लिए ऐसे उपकरण और तकनीकें विकसित की जा रही हैं, जो शुरुआती चरण में ही बीमारी का पता लगा सकती हैं। इससे समय पर इलाज और रोकथाम संभव हो सकती है, लेकिन तकनीक के साथ-साथ इस समस्या को लेकर मानसिकता में बदलाव लाना भी उतना ही जरूरी है।

 विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार गली कौर चंद मलोट