हिट युवा फिट युवा
हिट युवा फिट युवा
मनुष्य जानते हुए भी अनजान है। यह बड़ी अजीब बात है। दिन के बाद रात और रात के बाद दिन है । फिर भी समय मेरी मर्ज़ी से चलता है । कहता यह बेपरवाह दिल है । बांधा हुआ आयुष्य बीता जा रहा है। फिर भी अमर रहने की नामुमकिन आस है । यह बड़ी अजीब बात है । ऊर्जावान युवा सोच के साथ शुभ भविष्य है । जिससे सदा मुस्कराता रहे जीवन और गतिशील क़दम है । तूफ़ानो को चीर और दुर्जनो को हरा है । ऐसा साहसी जज़्बा पर आगे बढ़ नहीं रहा मन है । यह बड़ी अजीब बात है। तोड़ गिरायें ज़ंजीरे कर्मों की । दुःखों का होगा अंत । सिद्धशिला में होगा वास ।
इस स्वप्न का आभास है । पर हक़ीक़त में नहीं विश्वास। यह अजीब बात है। युवा के ऊर्जावान जीवन के लिये आवश्यक है मनः शांति ,आत्मा की शान्ति , प्रसन्नता या हास्य की खुराक भी। यह ऐसे महत्वपूर्ण तत्व है जो मानव को हर समय ऊर्जावान रखते है । जिसकी बुद्धि जागृत होती है । वह हमेशा विवेक शील होता है । दिल होता उसका शालीन हैं । कब,कहाँ , कैसे , क्या करना ? कितना बोलना ? उसका दिमाग रहता संतुलित हैं । शान्ति रहती उसके करीब हैं । ऐसे पुरुष ही स्वस्थ होने के काबिल होते है। मन-मस्तिष्क जिसका शान्त होता हैं । कलह और विरोध में वह परेशान नहीं होता हैं । उचित समय में उचित निर्णय लेना जिसकी पहचान होती है । कीचङ में खिले कमल समान । स्वस्थ रहकर सही जीवन वह जी पाता है । आज की यह समस्या है की हम अपने आप पर नियंत्रण नहीं रख पाते हैं ।
जैन धर्म में संयम का बहुत महत्व हैं । युवा पीढ़ी को बदलते समय के अनुसार जीने की छूट देती है ।बुढ़ापा हमारे ज़माने में ऐसा था की रट लगाता है । और वरिष्ठता बदलते समय से अपना नाता जोड़ लेती है उसे अपना लेती है। बुढ़ापा नई पीढ़ी पर अपनी राय लादता है,थोपता है और वरिष्ठता तरुण पीढ़ी की राय को समझने का प्रयास करती है।बुढ़ापा जीवन की शाम में अपना अंत ढूंढ़ता है मगर वरिष्ठता वह तो जीवन की शाम में भी एक नए सवेरे का इंतजार करती है ।युवाओं की स्फूर्ति से प्रेरित होती है । वरिष्ठता और बुढ़ापे के बीच के अंतर को हम गम्भीरतापूर्वक समझकर, जीवन का आनंद पूर्ण रूप से लेने में सक्षम बनिए। कई डॉक्टर पूछते हैं मरीज को ,की आप अपने परिवार के साथ रोजाना कितना समय देते हो व अपना सुख - दुःख आपस में कितना आदान -प्रदान करते हो ,आदि - आदि । ज्यादातर मरीज डॉक्टर को सही उतर दे नहीं पाते हैं । डॉक्टरों का यह कहना काफी हद तक सही भी प्रतीत होता हैं की कई मरीज अपनी बीमारी से ज्यादा पारिवारिक व गलत दैनिक चर्या आदि से ग्रस्त हैं ,जिससे उनकी वास्तविक बीमारी सही होने के बजाय बढ़ती रहती हैं क्यूँकि उनको जो सही से मानसिक प्रसन्नतता होनी चाहिये वह नहीं रहती हैं ।
यह वर्तमान स्थिति चिंतनीय है । वैसे जीवन में पूर्ण शांति व प्रसन्नता के लिये तो पूर्ण विवेक, पूर्ण समझ व साधनामय चर्या की होती है जरूरत है ।थोड़ा विवेक,थोड़ी समझ से भी यदि की जाएंशुरूआत , तो भी देखी जा सकती है जीवन की बदलती सूरत।वे छोटी -छोटी बातें हैंअगर कोई काम न लगे सही तो उसे न करें उसे कतई। उसी तरह यदि कोई बात न लगे सच तो उसे न कहें कभी।बस इतनी सी समझ भी रख लें दैनिक व्यवहार में हम ,तो हो सकता है जीवनआनंदमय इस संसार में।ये दो बातें है छोटी -छोटी,पर है जीवन निर्माण के शुरुआत की खरी कसौटी। बचपन बीता, किशोरावस्था भी गई। युवावस्था आई, फिर वृद्धावस्था और समयानुसार जिन्दगी पूरी हुई। पर इस सतत गतिमान जीवन की अवधि में हमने जिस उद्देश्य से जन्म लिया हैं, उसकी सुध-बुध हमने कहाँ ली। बचपन में समय ही समय है पर समझ नहीं। किशोरावस्था भी बचपन की नांई निष्फिक्र ,मौज-मस्ती में गई।आई युवावस्था इसमें शक्ति है ,9शुभ संयोग से मन में भक्ति भी है। पर दिनचर्या ऐसी कि पारिवारिक जिम्मेदारियों में ही पूरी बीत जाती है।
अब आ गई वृद्धावस्था ,जिसमें कुछ कर सकते नहींखास, रही ऐसी शारीरिक अवस्था तो कैसे हो भगवद् भक्ति की व्यवस्था। इस तरह हर अवस्था में अवस्थानुसार समझ , नासमझ, ज़िम्मेदारियाँ आदि तो रहेंगी ही अत: समझ पकड़ने के बाद दैनिक समय सारणी में एक निश्चित अवधि रहे सुरक्षित करने को आध्यात्मिक चर्या में सतत वृद्धि तब हो सकती हैं जीवन लक्ष्य की ओर प्रस्थान की गति में अनवरत प्रगति । संक्षिप्त में यह सही क्रम यदि अपना लेंगे तो हम सदा स्वस्थ व स्फूर्त रहेंगे ।
प्रदीप छाजेड़ ( बोरावड़)