अगर यही हाल रहा तो बो दिन दूर नहीं-- कि जमीन की आग जिंदा आदमी को जलाने लगे
अगर यही हाल रहा तो बो दिन दूर नहीं-- कि जमीन की आग जिंदा आदमी को जलाने लगे
हमारी सोच के शिकार नौनिहाल भी बन रहे हैं-- आज कल शिक्षा के मंदिरों मे बच्चे तरह तरह की मुसीबतों से गुजर रहे हैं ये नौनिहालों की लगातार घटनाएं सामने आ रही है कहीं जहरीला भोजन तो कहीं गर्मी से बेहोश स्कूल के बाहन आदि से लेकर से--- क्या यह सब अचानक से हो रहा है पर जब तक घटनाएं अपना मुंह नहीं खोल देती है तब-तक नजर नहीं आती है।
प्रायवेट बेट स्कूल इतने महंगें महंगे हैं पर उनका हाल देखो जाकर उमस भरी गर्मी से बेहाल बच्चों को स्कूल मे घंटों रहना पड़ता है कमरों मे लगे बीमार पंखों के नीचे जो सिर्फ दिखावे के लिए न स्पीड न हवा-और ऊपर से बरसती आग बच्चे अपनी परेशानी टीचरों से भी शेयर नहीं कर सकते हैं क्योंकि बच्चे तो बच्चे हैं जब घर आते हैं तो स्कूल बाहन मे इतने बच्चे भरे होते कि घर तक आते आते बच्चे बेहाल हो जाते हैं ।
मुंह लाल और भीगे कपड़े जैसे बच्चे बारिश मे भीगकर आए हो- कोई बचा प्रायवेट स्कूलों मे पढ़ता है तो उसके पेरेन्स सोच समझ कर ही उस स्कूल मे जाते होंगे कि उनका बच्चा हर सुविधाओं से--लेकिन सब कमाई का धंधा हो चला है आज बच्चे इतनी भीषण गर्मी मे बेहोश होकर गिर रहे हैं काश इन स्कूलों की व्यबस्थाऔं को पहले से प्रशासन या मीडिया द्वारा देखा जाता तो इतनी बड़ी संख्या मे एक के बाद एक घटनाएं कभी नहीं होती ।
कल कासगंज की घटना जिसमें मे-56-बच्चे स्कूल का मिड डे मील भोजन खाकर बेहोश हो गये भोजन मे कीड़े और कच्ची रोटियां पाई गई इतना बड़ा अपराध इन नौनिहालों के साथ क्या बनाने बाले अंधे थे जिन्हें इतनी बड़ी संख्या मे तैरते कीड़े नजर नहीं आए कच्ची रोटियां--क्या इन भोजन बनाने बालों के अपने बच्चे इसी तरह का भोजन खाते हैं--और इस तरह का राशन लाकर देना बड़े घपले का साफ साफ इशारा करता है।
इन मासूमों की जान से सीधा खिलबाड़ हुआ है-- तीसरी घटना एटा मे जब एक स्कूल के बच्चे उमस भरी गर्मी से बेहोश होने लगे तो एक स्कूल ने जो किया उसकी कल्पना करना कि--उन्होने सारे बच्चे नंगे करके पानी की बरसात कर दी ये क्या था क्या बच्चे वहां भी बेहोश हो रहे थे-- कुकुरमुत्तों की तरह हो रहे व्यापार शिक्षा के नाम पर जहां बच्चों के लिए कोई सुविधाएं तक उपलब्ध नहीं है अगर होती तो ये घटनाएं क्यों होती जो आज लगातार तार घटित हो रही है।
-- स्कूलों मे लागू किया जाना जरूरी है कि बच्चों के पेरेंट्स हर सप्ताह या चार दिन मे अपने बच्चों की सुविधाएं देखने स्कूल के अंदर तक जाने की परमीशन होनी चाहिए ताकि उनके नौनिहालों को पैसे खर्च करने के बावजूद भी इतना कष्ट न उठाना पड़े--दो या चार दिन स्कूल बंद कर देना समस्या का समाधान तो नहीं क्योंकि कोई भी मौसम महीनों की उम्र लेकर आता है और ये गर्मी का मौसम सबसे लम्बी उम्र का होता है गर्मी तो अब हर वर्ष और बढ़ेगी क्योंकि हमने जमीन जो नंगी कर दी अपने स्वार्थ के लिए पेड़ों का कटान आज भी नहीं रूका और जो पेड़ लगाए जा रहे हैं उनमें कितने पेड़ हर साल हो रहे हैं सबसे बड़ा मुद्दा तो यह है आज हम पेड़ लगाते समय एक छोटे-से अंकुर को पकड़ने मे दस बीस लोगों का सहारा लेते हैं जैसे कि ये अंकुर नहीं कोई बड़ा पेड़ उखाड़ रहे हो चेहरे दिखाने और अखबारों मे आने के बाद उस पौधे को पानी तक नशीव नहीं होता है ।
अगर यह झूंठ है तो हर साल करोड़ों रुपए के लाखों पौधे लगाए जाते हैं और कितने सुरक्षित और पेड़ बन गये उनका कोई तो हिसाब होगा-जितने पेड़ हर बर्ष लगाए जाते हैं उस हिसाब से जमीन हरियाली से लहलहा रही होती क्योंकि यह बारसिक परिया वरण पर्व मनाया जाता हैं और जमीन फिर भी नंगी की नंगी है परिणाम आज आग उगलने लगी एसा नहीं है कि हम बच जाएं इसका परिणाम हम को ही भोगना पड़ेगा अगर इसे सीरियस नहीं लिया गया तो। लेखिका पत्रकार दीप्ति चौहान।