वरिष्ठ पत्रकार असलम सलीमी के कैमरे की फोटो और शायरी - युवा पीढ़ी के लिए अनुभव

Jul 29, 2024 - 16:13
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वरिष्ठ पत्रकार असलम सलीमी के कैमरे की फोटो और  शायरी - युवा पीढ़ी के लिए  अनुभव
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वरिष्ठ पत्रकार असलम सलीमी के कैमरे की फोटो और शायरी - युवा पीढ़ी के लिए अनुभव

साहिर लुधियानवी ‘ जिन्हें बार बार याद किये जाने की तम्मना रहती है’ताज नगरी’ में --‘हारमनी ग्रुप’ ने ‘शरोज हैंग आऊट’ को साहिर की गजलों से किया गुंजायमान आगरा: गंगा जमुनी तहजीब को आगरा में हमेशा प्रचारित करने का काम किया जाता रहा है, संगोष्ठियां,कवि सम्मेलन,मुशायरे और गजल अक्सर इसके लिये प्रचलित माध्यम हैं। ऐसा ही एक अवसर था साहिर लुधयानवी की स्मृति में आयोजित आयोजित "सेलीबेरटिंग साहिर लुधियानवी (Celebrating Sahir Ludhianvi) के आयोजन का। ‘अब्दुल हयी’ और तखल्लुस (कलमी नाम)’ साहिर’ नाम से पहचान रखने वाले ‘साहिर लुधियानवी’ केवल वालीवुड या पंजाब में ही नहीं,पाकिस्तान,बंगला देश, तजाकिस्तान और इंग्लैंड में भी उनके कद्र दां हैं।उनका हर नगमा वर्षों बाद भी ताजा और अचेतन को नई चेतना देने वाला लगता है। -

-आई जी जोन को पसंद है विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान साहिर साहब की यादें ताज करवाने वाला आयोजन अमृत विद्या एजुकेशन फार इम्मोर्टालिटी और छांव फाउंडेशन के संयुक्त तत्वधान में 12जुलाई को आयोजित किया गया था। प्रख्यात ‘हारमनी ग्रुप’ के (श्री सुधीर नारायण और उनकी टीम) ने "शीरोज हैंग आउट कैफ़े में की थीं संगीतमय प्रस्तुतियां। तमाम संगीत प्रेमियों के बीच ही सुधी श्रोताओं के बीच मौजूद थे आगरा जोन के आई जी दीपक कुमार भी।दीपक जी मानते हैं कि सहिर 2० सदी के प्रगतिशील शायर थे,और उन्होंने अपना मुकाम गीतों से बनाया,उनकी वजह से गानों के साथ गीतकार का भी नाम लिया जाने लगा। आगरा से साहिर का नाता -अपनी प्रसिद्ध कविता "ताजमहल" के द्वारा रहा है, जिस में उन्होंने स्मारकों की भव्यता और उन्हें बनाने वाले आम लोगों की पीड़ा के बीच स्पष्ट अंतर की आलोचना की है-

 "ये चमनज़ार ये जमुना का किनारा ये महल "। आगरा का मिजाज जानने वाले ‘असलम सलीमी ‘ इसी मौके पर मौजूद थे आगरा के उर्दू लिट्रेचर अपनी विशिष्ट पहचान रखने वाले जनाब असलम सलीमी भी ,पेशागत तौर पर फोटो जर्नलिस्ट के रूप में शहरवासियों में ज्यादा जाने जाते हैं।मौके पर मौजूद ‘दैनिक जागरण के आगरा संस्करण के एडीटर रहे आनंद शर्मा ने आगरा की बात चलते ही आई जी साहब से असलम सलीमी का परिचय करवाया। बस फिर शुरू हो गया बातचीत का एक सिलिसला।गालिब,नजीर,आलम फतेहपुरी,आगरा में रही उर्दू की समृद्ध परंपरा न जाने किन किन मुद्दो पर चर्चा हुई।

असलम भाई इस मुलाकात से बेहद खुश है और उन्हें इत्मीनान है कि लंबे समय के बाद ही सही कोई ऐसा अधिकारी आगरा वालों के बीच मौजूद है,जिसे गजल और लिट्रेचर से जुडी स्थानीय परंपराओं की समझ है। वैसे असलम भाई अपन आप में कलम,कैमरा और लिट्रेचर के माध्यम से स्थानीय विशिष्ठ पहचान हैं।मजहवी फासलों को पाटना और शहरवासियों की दुश्वारियों को अपने अंदाज में दूरकरते रहने वालों में अपने आप में वह एक मिसाल हैं।

◆ - ‘गंगा -जमुनी तहजीब बरकरार है,मेरे शहर आगरा में ‘ असलम भाई कहते हैं कि , ‘

 यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो ये नए मिज़ाज का शहर है ज़रा फ़ासले से मिला करो ”◆

बशीर भद्र की रेख़्ता( Rekhta) में लिखी शायरी आगरा के मिजाज में कहां से और कब आकर रचबस गयी,जैसे ही इसका अहसास हुआ अच्छा नहीं लगा। बाकी लोगों के बारे में तो कुछ भी नहीं कहता कितु मुझे माहौल का यह बदलाव बेहद नागवार लगा था।यह कहना है प्रख्यात फोटो जर्नलिस्ट असलम सलीमी का,उन्होंने तय कर लिया आगरा की फिंजा को फिर से उस गंगा जमुनी तहजीब सरोबर करने का।बाबरी मस्जिद और राम मन्दिर आंदोलन का दौर था तब,आये दिन अलीगढ,मथुरा की फिजां बिगडती रहती थी,आगरा में भी न दिन का चैन था और नहीं रातों में सुकून ।

उपरोक्त चिंतन और विस्मृत सी हो गई स्मृतियों को ताजा करने का अवसर था ,वरिष्ठ पत्रकार और दैनिक जागरण के आगरा एडीशन के पूर्व संपादक श्री आनंद शर्मा के द्वारा आई जी पुलिस दीपक कुमार जी से मुलाकात करवाने का। आनंद जी मूल रुप से क्राइम रिपोर्टर रहे हैं फलस्वरूप बतौर फोटोग्राफर उनके साथ घटनाओं को कबरेज करने के भरपूर मौके रहे। श्री सलीमी कहते हैं कि उन्माद भरे माहौल में ‘सही -गलत’ अधिक प्रासंगिक नहीं था,पुलिस को छकाने का दौर चल रहा था।लेकिन मैंने भी तय कर लिया कि मौहोल भले ही नहीं बदल पाऊं ,पर इसके लिये पूरे दम खम से कोशिश जरूर करूंगा।इसी नेक इरादे को लेकर जुट गया शहर की सही तस्बीर नागरिकों के बीच पहुंचाने को।वैसे ‘दैनिक जागरण’ के फोटोग्रफर के नाते मेरी पेशागत जिम्मेदारी भी यही थी।

--तब मोबाइल था ही नहीं आगरा में मोबाइल प्रचलित नहीं हुआ था,लैड लाइन ‘ का जमाना था, कार से पत्रकारिता रुतबे वाली मानी जाती थी , इक्का दुक्का बार मैंने भी मोटर गाडी की सवारी की किंतु ज्यादातर कवरेज उस ‘मोपेड ‘ से ही किया जिसे कई साथी ‘आऊट डेटिड ‘ तक कहने लगे थे।पुलिस,पॅलिटिकल नेता ,पंडित,ईमाम,ग्रंथी,फादर -पास्टरों के बीच ‘मोपिड ‘खूब लोकप्रिय हुई ।श्री सलीमी याद कर बताते हैं कि जहां कुछ को फोटो बेहद माफिक लगते थे,वहीं कई को अगले दिन खुद शौक के साथ खिचवाये यही बेहद अखरते थे।दरअसल उस दौर की कई बडी कार्रवाहियां इन्हीं फोटुओं और साथ में छपी रिपोर्टिंग के आधार पर ही हुईं।

 --कैमरा बेकसूरों की ढाल मुझे याद है कि कांग्रेस नेता स्व. निहाल सिंहजी जो कि उस समय सांसद थे,को मेरे कुछ फोटुओं से बेहद राहत मिली थी।दरअसल उनपर कुछ राजनैतिक प्रतिद्वन्दियों ने घर की छत पर चढकर गोली चलाने का आरोप लगा डाला था,जबकि वह एक अत्यंत सौम्य स्वभाव,अहिंस में विश्वास रखने वाले व्यक्ति थे। मेरा कैमरा बता रहा था कि जिस समय गोलीकांड हुआ था निहाल सिंह जी के मकान की छत पर कोई था ही नहीं। जहां दंगे कई दर्द दे जाते हैं,वहीं कुछ अच्छी शुरूआतों का आधार भी बनते हैं।सदभावना के प्रयासों का दौर शुरू करवाने के लिये राजनेताओं के अलाव प्रत्रकारों के साथ भी बैठके प्रशासनिक अधिकारियों की बैठकें हुईं।

 इन्हीं में से एक बैठक में ताजमहोत्सव शुरू करवाने का विचार बना और अगले ही दिन उस पर क्रियान्वयन शुरू हो गया। --ताज महोत्सव की शुरूआत तत्कालीन एडीएम (वी आई पी) ए के उपाध्याय के कलैक्ट्रेट स्थित कक्ष में ये शुरूआती बैठके हुई। इनको कवर करने जाता तो फोटोग्राफर के रूप में ही था ,लेकिन मौका मिलते ही भरपूर भागीदारी करता।शिल्पग्राम के मुक्त आकाशीय मंच मंच पर मुशयरा करवान को दिया सुझाव कलका सा ही तो लगता है। --शिल्ग्राम में मुशायरे की शुरूआत धन की कमी के कारण निशुल्क प्रस्तुतियां दे कर मुशयरा सजासकने वालों के नाम और पते बताने के साथ शायद मेरा काम खत्म हो चुका था।बडे बडे दिग्गज नामचीन आयोजन में दखलदार हो गये।एक बात जरूर कहना चाहूंगा कि पत्रकार साथी अशोक अग्निहोत्री ‘ताऊ’ ने ही तो आयोजन का नाम ‘ताज महोत्सव ‘ रखना सुझाया था,जो अब तक चला आ रहा है।

 उल्लेखनीय है कि श्री सलीमी की यह मुलाकात फतेहाबाद रोड होटल कांप्लैक्स में एसिड पीडिताओं के द्वारा संचालित ‘शीरोज हैंगआऊट’ रैस्टोरेंट में आयोजित प्रख्यात गजल गायक श्री सुधीर नारायण के कार्यक्रम के दौरान हुई।अमृत विद्या एजूकेशन फार इमोर्लिटी के सैकेट्री ।श्री अनिल शर्मा और छांव फाऊंडेशन के आशीष शुक्ला सयुक्त मेजवान के रूप में आभार जताया। अनिल शर्मा