सावधान! एटा में आज भी सबकुछ माफिया के हवाले

Jul 18, 2023 - 08:01
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सावधान! एटा में आज भी सबकुछ माफिया के हवाले
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सावधान! एटा में आज भी सबकुछ माफिया के हवाले सत्ताधारी नेताओं प्रशासनिक अधिकारियों और पुलिस की मिलीभगत से लुट रही है जनता -मदन गोपाल शर्मा एटा।

 एटा जनपद में आज भी सब कुछ माफियाओं के हवाले है शिक्षा और चिकित्सा ही नहीं प्रशासनिक व्यवस्था भी पंगु बनी हुई है। सत्ताधारी सांसद, विधायक, प्रशासनिक अधिकारी और पुलिस की मिलीभगत से जनता को हर काम के लिए लुटना पड़ रहा है। जनता सांसद-विधायकों के दरबार में अपनी समस्याओं को लेकर जाती है तो उनका एक ही जवाब होता है कि माननीय मुख्यमंत्री जी की व्यवस्थाओं के कारण प्रशासनिक अधिकारी और पुलिस हमारी नहीं सुनती, जबकि अक्सर यह देखने में आता है कि सांसद-विधायकों के प्रतिनिधि प्रशासनिक अधिकारियों और पुलिस से गलबहियां किए हुए हैं।

सांसद- विधायकों, पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों की मिलीभगत के कारण ही जिस प्रकार सपा शासन में जनता असहाय हो रही थी प्रदेश की भाजपा सरकार में भी कमोबेश वही स्थिति उत्पन्न हो गई है। अधिकारी और पुलिस अपनी मनमानी पर उतर आए हैं जो जनता को दौड़ा-दौड़ा कर थका देते हैं लेकिन काम फिर भी नहीं होता तब मजबूरन गांधी छाप कागज का सहारा लेना पड़ता है।

 भले ही भू माफिया के नाम पर जनपद में कुछ कार्यवाही हुई है लेकिन विकास के नाम पर स्थिति जस की तस है। लोग वर्तमान में मौजूद प्रशासनिक अधिकारी जो स्थानांतरण से बचे हुए हैं यदि उनका स्थानांतरण नहीं होता है तो जनता का योगी सरकार से मोहभंग होना लाजमी है।

जनता अब कहने लगी है कि वर्तमान के अधिकारी सांसद और विधायकों के अधिकारी हैं जो जनता की सुनवाई नहीं करते। चिकित्सा माफियाओं की बात करें तो वर्तमान मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने एटा नगर ही नहीं पूरे जिले में बिना डॉक्टरों के हॉस्पिटलों का जाल बिछवा दिया है। इन हॉस्पिटलों को अस्पताल न कह कर मरीजों को मौत के घाट उतारने वाले जल्लादों का स्थान कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

 वर्तमान सीएमओ उमेश चंद्र त्रिपाठी के रहते हुए कई दर्जनों प्रसूताओं, पुरुषों और बच्चों को थैला छाप डॉक्टरों और अवैध हॉस्पिटलों ने मौत के मुंह में धकेल दिया है। एटा जनपद में खुले अनेकों अल्ट्रासाउंड सेंटर भ्रूण हत्या के दोषी हैं इन अल्ट्रासाउंड सेंटरों पर बाहरी जनपदों से दलाल किस्म के लोग गर्भवती महिलाओं को अल्ट्रासाउंड कराने के लिए लेकर आते हैं। अल्ट्रासाउंड सेंटरों की पोल तब खुलती है जब एक अल्ट्रासाउंड सेंटर के बजाय 2 अल्ट्रासाउंड सेंटरों पर अल्ट्रासाउंड कराया जाता है तो देखने को मिलता है कि एटा में किए गए अल्ट्रासाउंड की रिपोर्ट आगरा, दिल्ली, कानपुर, अलीगढ़ में कराए गए अल्ट्रासाउंड से बिल्कुल भी नहीं मिलती, जिसका कारण है अल्ट्रासाउंड सेंटरों को प्रभावशाली लोगों ने चिकित्सा विभाग से मेलजोल बढ़ाकर खोल रखा है और इन सेंटरों पर कोई भी प्रशिक्षित व्यक्ति अल्ट्रासाउंड नहीं करता बल्कि 8 से ₹10000 में ऐसे व्यक्तियों को अल्ट्रासाउंड करने के लिए रख लिया जाता है जो अल्ट्रासाउंड करने के विषय में एबीसीडी तक नहीं जानते।

शिक्षा विभाग की बात करें तो प्रत्येक स्ववित्त पोषित स्कूल कॉलेज में प्रशिक्षित अध्यापक ही नहीं रखे जाते। इंटर के बाद के कॉलेजों में क्लासें नहीं लगाई जातीं सिर्फ एडमिशन करने के लिए 1-2 बाबू रखे जाते हैं जिनका कार्य एडमिशन करा कर विद्यालय-कॉलेज के प्रबंधकों की जेबें भर देना होता है। स्ववित्तपोषित कॉलेज एडमिशन, प्रैक्टिकल और प्रवेश पत्र देने का साधन भर बनकर रह गए हैं, शिक्षा देना उनका कोई उद्देश्य नहीं रहा है। जनपद में विद्यालय- कॉलेज जो वित्त पोषित हैं वे आज भी शिक्षा की दुर्गति कर रहे हैं। लोगों का धन लूट रहे हैं यूनिवर्सिटी से सांठगांठ कर धंधे को अंजाम दे रहे हैं।

 जनपद में इन अव्यवस्थाओं के प्रति आक्रोश बढ़ता जा रहा है लेकिन स्थानीय सांसद-विधायक, प्रशासनिक अधिकारी सभी मौन साधे हुए बैठे हैं। कोई दुर्व्यवस्थाओं को सुधारने हेतु कार्य करने को तैयार नहीं है। शिक्षा विभाग के जितने भी वरिष्ठ अधिकारी हैं वे अपने दफ्तरों में बैठकर ही अपनी गतिविधियों को संचालित रखते हैं। स्कूल कॉलेजों द्वारा छात्रों और अभिभावकों की होने वाली लूट की शिकायतों पर वह अपनी आंखों पर पट्टी बांधे रहते हैं। प्रशासनिक अधिकारियों की बात करें तो एक अधिकारी तो ऐसे हैं कि वे समाचार पत्रों के कार्यों को वर्षों तक लटकाए रखने में महारत हासिल किए हुए हैं।

सूचना विभाग से रिपोर्ट मांगते हैं रिपोर्ट आ जाती है तो शासनादेश मांगने लगते हैं। भारत के समाचार पत्रों के पंजीयक (रजिस्ट्रार न्यूज पेपर आफ इण्डिया) ने समाचार पत्रों के घोषणा पत्रों के कार्यों को जिला स्तर पर ही निपटाये जाने हेतु जिलाधिकारी को अधिकार दिया है।

प्रकाशकों द्वारा प्रस्तुत समाचार पत्रों के घोषणा पत्रों पर जिलाधिकारी एटा द्वारा नामित अब तक के किसी प्रभारी अधिकारी (प्रेस) ने बिना वजह अवरोध पैदा नहीं किया। लेकिन वर्तमान में प्रभार संभालने वाले अधिकारी चर्चा का विषय बने हुए हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि चाहे कुछ हो जाए वह यूं ही अपनी कलम नहीं चलाते। सम्बन्धित प्रकाशक ने रजिस्ट्रार न्यूज पेपर आफ इण्डिया को पत्र लिखकर आग्रह किया है कि वर्तमान के प्रभारी अधिकारी प्रेस आपके द्वारा समाचार पत्रों के प्रकाशकों के लिए निर्देशिका में वर्णित नियमों को नहीं मानते उनके लिए शासनादेश बनाकर प्रेषित करें ताकि जनपद में समाचार पत्रों के घोषणा पत्रों पर स्वीकृति मिल सके। जिलाधिकारी महोदय से भी अपेक्षा है कि प्रभारी अधिकारी (प्रेस) का प्रभार ऐसे अधिकारी को दिया जाए जो बिना किसी लालच के घोषणा पत्रों पर स्वीकृति देने में कोताही न बरतें। इस तरह के कृत्य से पूरी प्रशासनिक व्यवस्था बदनाम हो रही है।