हाथरस सत्संग हादसा: कोर्ट ने सभी 11 आरोपियों पर तय किए आरोप, अगली सुनवाई 18 अगस्त को

हाथरस सत्संग हादसा: कोर्ट ने सभी 11 आरोपियों पर तय किए आरोप, अगली सुनवाई 18 अगस्त को
हाथरस जिले के सिकंदराराऊ में हुए भीषण सत्संग हादसे के एक साल बाद अब न्यायिक प्रक्रिया ने रफ्तार पकड़ ली है। जिले की अपर सत्र न्यायालय संख्या एक के एडीजे महेंद्र श्रीवास्तव की अदालत ने बुधवार को 121 श्रद्धालुओं की मौत के मामले में सभी 11 आरोपियों के खिलाफ आरोप तय कर दिए। कोर्ट ने इस बहुचर्चित मामले में अगली सुनवाई की तारीख 18 अगस्त निर्धारित की है। जिन आरोपियों के खिलाफ चार्ज तय हुए हैं, उनमें प्रमुख आयोजक देव प्रकाश मधुकर समेत मुकेश कुमार, मंजू यादव, मंजू देवी, राम लड़ैते, उपेंद्र सिंह यादव, मेघ सिंह, संजू कुमार, राम प्रसाद शाक्य, दुर्वेश कुमार और दलवीर सिंह शामिल हैं। सभी आरोपी इस दौरान कोर्ट में उपस्थित थे और इन्हें पहले ही जमानत मिल चुकी है।
मामले की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पुलिस ने 3200 पन्नों का आरोप पत्र दाखिल किया है, जिसमें कुल 676 लोगों को गवाह बनाया गया है। आरोप पत्र में जिन धाराओं के तहत केस दर्ज किया गया है, उनमें धारा 105, 110, 126(2), 223, 238, 121(1), 132, 61(2) और क्रिमिनल लॉ अमेंडमेंट एक्ट की धारा-7 शामिल हैं। बचाव पक्ष ने पुलिस पर गंभीर आरोप लगाए हैं। बचाव पक्ष के अधिवक्ता का कहना है कि पुलिस ने अपनी लापरवाही छिपाने के लिए झूठी कहानी गढ़ी है और असली जिम्मेदारों को बचाने की कोशिश की जा रही है। ### क्या हुआ था उस दिन? 2 जुलाई 2024 को सिकंदराराऊ के मुगल गढ़ी गांव में स्वयंभू संत सूरज पाल उर्फ भोले बाबा के सत्संग में भारी भीड़ उमड़ पड़ी थी। प्रशासन से मिली अनुमति सिर्फ 80,000 श्रद्धालुओं के लिए थी, लेकिन आयोजन स्थल पर करीब ढाई लाख लोग एकत्र हो गए।
कार्यक्रम के समापन पर अफरा-तफरी उस समय मच गई, जब श्रद्धालु बाबा के वाहन और उनके पैरों की धूल छूने के लिए दौड़ पड़े। मैदान गीला और फिसलन भरा था। देखते ही देखते भगदड़ मच गई, जिसमें 121 श्रद्धालुओं की दर्दनाक मौत हो गई, जिनमें बड़ी संख्या में महिलाएं और बच्चे शामिल थे। इस दिल दहला देने वाली घटना के बाद पूरे प्रदेश में हड़कंप मच गया था। जांच में गंभीर खामियां और आयोजन में भारी अव्यवस्था सामने आई थी। अब जब आरोप तय हो चुके हैं, सभी की निगाहें 18 अगस्त की अगली सुनवाई पर टिकी हैं। सवाल है — क्या न्याय की राह इतनी आसान होगी?