भाई-बहन का रिश्ता: प्रेम और यादों का बंधन

भाई-बहन का रिश्ता: प्रेम और यादों का बंधन
रक्षा बंधन का पर्व सिर्फ एक धागे का नहीं, बल्कि भावनाओं का पर्व है। यह धागा सिर्फ भाई की कलाई पर नहीं बंधता, बल्कि भाई के हृदय में भी स्नेह का एक अटूट बंधन बांध देता है। इस दिन बहनें अपने मायके आती हैं, लेकिन उनका उद्देश्य कोई भौतिक वस्तु पाना नहीं होता। अगर बहन लालची होती, तो शायद वह अपने पिता से अपने हिस्से का अधिकार मांगती। लेकिन वह ऐसा नहीं करती, क्योंकि उसका और उसके मायके का रिश्ता किसी संपत्ति या धन का मोहताज नहीं है।
जब एक बहन रक्षा बंधन पर अपने भाई के घर आती है, तो वह केवल एक अतिथि नहीं होती, बल्कि उस घर की एक अहम् हिस्सा होती है। वह अपने उस बचपन को दोबारा जीने आती है, जो उसने अपने भाइयों के साथ बिताया था। वह उन गलियों, कमरों और आंगन को देखने आती है, जहां उसकी हंसी-ठिठोली की गूंज आज भी सुनाई देती है। वह उस घर की दीवारों में छिपी हुई यादों को महसूस करने आती है। एक बहन के लिए उसका मायका सिर्फ एक घर नहीं, बल्कि उसकी पहचान का हिस्सा होता है। यहां उसे अपने बचपन की शरारतें, माता-पिता का प्यार और भाइयों का साथ याद आता है। जब वह राखी बांधकर भाई से कुछ लेती है, तो वह सिर्फ एक उपहार नहीं, बल्कि उस स्नेह का प्रतीक होता है, जो उन्हें बचपन से मिला है।
वह उपहार कितना भी छोटा क्यों न हो, उसके लिए उसका मूल्य अनमोल होता है। अंत में, जब बहन जाने लगती है, तो उसकी झोली में भाइयों का प्यार, भाभी का सम्मान और भतीजों का आशीर्वाद होता है। वह अपने साथ इन सब यादों को समेटकर ले जाती है। बहन का हृदय अपनी संपत्ति नहीं, बल्कि अपने रिश्तों को संजोता है। वह जानती है कि असली धन संपत्ति में नहीं, बल्कि प्यार और यादों में होता है। यही कारण है कि बहनें हमेशा अपने मायके के लिए दुआ करती हैं और हर सुख-दुख में अपने परिवार के साथ खड़ी रहती हैं। अजय किशोर पत्रकार