विषय आमंत्रित रचना -सच्चाई

Nov 20, 2023 - 21:22
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विषय आमंत्रित रचना -सच्चाई

जीवन की क्षण भंगुरता सच्चाई है | नियति योग है तो वैसे ही सांसारिक लोगो की मोह ग्रस्तता भी सच्चाई है।न भगवान बुलाने से आते है । न ही मनाने से आते है । यदि मन में हो सच्चाई के भाव तो वे हमारे साथ घुलमिल जाते है ।

 हमारे अंतस्थल से निकली यथार्थ आवाज ही उसका सही पास वर्ड है ।और अपने साथ उन्हें मिलाने का तथा उनके साथ मिलने का यही सही पास वर्ड है । रोशनी इतनी भी ज्यादा ना हो की हमारे आंखें चुंधिया जाये । मन को हम इतना मलीन भी ना बनायें की हमें सच्चाई भी नजर ही ना आये । जीवन में संतुलन के बिना अच्छे से अच्छे व्यंजन का भी स्वाद बिगड़ जाता है ।

इसलिए रिश्तों को हम सच्चाई से ऐसे सहेजें की उनकी मिठास खो ना पायें । जितना कम सामान रहेगा ।उतना सफर आसान रहेगा । गठरी जितनी भारी होगी । उतना तूं हैरान रहेगा ।दूसरी बात इस शेर में सामान का अर्थ राग द्वेष समझें तो इस शेर में बहुत बड़ी आध्यात्मिक सच्चाई भी छुपी है । राग द्वेष हमारे जितने कम होंगे जिंदगी उतनी आसान रहेगी । तीसरी बात विकसित देशों में आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न कुछ व्यक्ति minimalist life style की तरफ आकर्षित हो रहे हैं ।

 जापान तथा डेनमार्क में minimalist की संख्या बढ़ रही है । उन सब का मुख्य अनुभव यही पढ़ने में आया है कि minimalist life style में वस्तुओं की सार सम्भाल नहीं करनी पड़ती है इसलिए अब उन्हें जिंदगी अच्छी तरह जीने का समय मिलता है । श्रावक के 12 व्रतों में अपरिग्रह अणुव्रत, अनर्थ दण्ड, उपभोग परिभोग परिमाण ये सब सामान कम करने के प्रेरक एवं राग द्वेष कम करने के सहयोगी हैं । इसी सन्दर्भ में किसी ने कहा की रखता हूँ में बांध के, सच्चाई से अपना सब सामान, कब खाली करना पड़े, भाड़े का मकान ।

मौत से ज्यादा भयभीत है दुनियां, मौत की आहट से। वर्तमान की समस्या से अधिक चिंतित है आने वाले कल से। कमोबेश हर प्राणी की यही कहानी है यही हकीकत है । हम सच्चाई को आत्मसात कर सकें इसकी बङी जरूरत है। जो समय का मूल्य नहीं जानते उनके सपने कभी भी अधूरे ही रह जाते है।फिर भी इस सच्चाई को हम समय रहते कहाँ समझ पाते हैं?

टीवी हो या मोबाइल जकङे हुए हैं हम अत्याधिक इनके मकड़जाल मे इसीलिए नैसर्गिक-आनन्द पाने को हम तरसते ही रह जाते हैं। जीवन का प्रयोजन आज का तो ऐसा ही लग रहा है कि बचपन बित्यों बातां में , नींद से काढ़ी रातां में ,आदमी पहले धन कमाने के लिए स्वास्थ्य गँवाता है । आगे फिर स्वास्थ्य प्राप्ति के किए धन ख़र्च करता है।और अंततः दोनों गँवा लेता है। शांति और सेहत का कहीं दूर - दूर तक ठिकाना नही अरे जब तक शरीर में सामर्थ्य है । हमारी इंद्रियाँ परिपूर्ण हैं ।

मन ऊर्जा से भरा हैं तब तक चित्त से युवा धर्म को साधे यही जीवन की सम्पदा हैं । पर जाने क्यों यह हर पीढ़ी को सोचना है की पैसा ही सब कुछ पर एक सच्चाई यह भी हैं की शोहरतों का पैमाना सिर्फ पैसा नहीं होता है । जो सुख -शांति से जिए वो भी मशहूर होता है । इस व्यस्त जीवन की आपा धापी में जो तनाव ग्रस्त नही होकर अपने मन पर विवेक की लगाम हाथ में रखता है । वह हजारों माईल चलकर भी कभी नहीं थकता है ।

क्योंकि वह इस जीवन की हर चाल को बड़े गौर से निरख कर इस जीवन की हर सच्चाई को जागरुकता के साथ परखता है । सितारे टूटते हैं पर उनके वियोग मे आसमान कब रोता है? आत्मा के सिवाय दूसरा कोई भी अपना सगा नहीं होता है? स्वार्थ की कमजोर दीवारों पर टिके हुए हैं सारे रिश्ते इस सच्चाई के साथ जीने वाला हताशा का भार नहीं ढोता है। अपने सुख-दुःख के लिए हम स्वयं ही उत्तरदायी है। आप्त पुरूषों ने हमें यह बात हमेशा ही समझायी है। हमारी ज्ञान चेतना आवृत है कर्मों के सघन आवरण से इसलिए हम देख नहीं पाते उसे जो यथार्थ है सच्चाई है। जो भीड़ मे भी स्वयं मे रहने की कला जानता है ।

 वही सच्चाई को गहराई के साथ पहचानता है । अंधेरा दस्तक नही देता है उसके घर आंगन मे जो खुद चिराग बन करके जलना जानता है । जो स्वयं के लिए जले वो दुनिया को भी रोशन कर गये । अनुभव की स्याही से इतिहास मे नूतन प्राण भर गये ।जो भीड़ मे केवल भीड़ का हिस्सा बन कर जीये वो तिनको की तरह अपना वजूद मिटा कर बिखर गये ।सच्चाई हमारे जीवन की अमूल्य धरोहर है । विषय आमंत्रित रचना - सच्चाई - अंजू संकलेचा - सूरत - ( गुजरात)। प्रदीप छाजेड़