सुखी, सुन्दर जीवन
सुखी, सुन्दर जीवन
सुखी सुन्दर जीवन का सही से यह रास्ता होता है कि दूसरे किसी की पंचायती से हमेशा दूर रहे या यो कहु कि जब तक कोई दूसरा नहीं बोले काम का तब तक कुछ बोले करे कुछ नहीं न ध्यान दे । किसी ने एक छोटी भूल की और हम ने वो याद रखकर उससे बड़ी भूल की है । होता है कभी -कभी पर यही सही में मानव का स्वभाव हैं ।
जहाँ मेरी भूल बताओगे वहाँ होली हो जाएगी और जहाँ पर दूसरों की भूल बताई वहाँ दिवाली जाएगी। क्योंकि आज प्रत्येक व्यक्ति चाहता है की में दूसरों पर हर समय हुकूमत करूँ दूसरे सब मेरे नियंत्रण में रहे । मेरा शासन हर एक व्यक्ति पर चले। इस मनोवृत्ति का परिणाम यह होता हैं की मनुष्य स्वयं को भूल बैठता हैं।
अपने भीतर की परख छोड़कर बहिर्जगत में देखना शुरू कर देता और उस ओर बढ़ता चला जाता हैं। यह सही से जानने की कोशिश भी नही की कि स्वयं के जीवन की धारा किधर जा रही है।परिणाम यह होता हैं की मनुष्य उन्नति की अपेक्षा अवनति की ओर चला जाता हैं । पर यदि स्वभाव में परिवर्तन हो जाए तो क्या बात हो । आशा की डोर में पिरोये अरमानों के महकते फूल उम्मीदों पर कोई खरा ना भी उतरे तो ग़म नही । कम से कम सही से महसूस तो करे अपनी भूल ।
यदि मनुष्य को सही रूप में सुख और शांति की प्यास होगी तो आत्म-बोधित होने में बिलकुल वक़्त नही लगेगा। किसी पर उँगली उठाने से पहले यह सोचे की एक उँगली उनकी ग़लती और इशारा कर रही हैं तो तीन उँगली अपनी तरफ़ हैं। कौन क्या कर रहा है? जो कर रहा है वह कैसे कर रहा है? जैसे कर रहा है वैसे क्यों कर रहा है? आदि - आदि से हमको दूर रहना हैं ।तभी सुखी सुन्दर जीवन हमारा होगा । प्रदीप छाजेड़ ( बोरावड़ )