"थाने के दलाल"
★★ "थाने के दलाल" ★★
थाना बना है अब मंडी कोई,
जहाँ बोली लगती है इंसाफ की।
सिपाही नहीं, सौदागर बैठे,
करते हैं नीलामी हर ख्वाब की।
एसएसपी साहब दे दें आदेश,
पर कार्रवाई होती नहीं खास।
बड़े धंधों पर मौन हैं सब,
छोटों पर चल जाए बंदूक़-का-नाच।
गुंडे-बदमाश मिलते जेल में,
सिस्टम कहे "हमने कर दिया काम।"
पर असली शिकारी जो खेल रचें,
वो तो पीते हैं सिस्टम का जाम।
थाना बिके, वर्दी बिके,
हर जिले में है यही हाल।
नेता-पुलिस और दलालों का,
अब बन गया है नया दलाल-जाल।
पत्रकार भी अब टेबल से उठ,
धंधे की गोटी चलाने लगे।
सच की जगह, चाटुकारिता के,
कहानी रोज़ सुनाने लगे।
*"वरिष्ठ पत्रकार"* फ़ेसबुक पे,
Breaking News चिल्लाते हैं।
कभी जो कलम थे क्रांति की,
अब पैसे में बिक जाते हैं।
जनता देखे, पढ़े, सुने —
पर सवाल न कोई उठाए।
क्योंकि हर आवाज़ जो उठे,
वो सिस्टम कुचल कर जाए।
राम प्रसाद माथुर
सीनियर चीफ रिपोर्टर (एटा)





