"पुलिस मित्र या जल्लाद?" – एटा में पुलिस की बर्बरता ने उड़ा दिए होश!
"पुलिस मित्र या जल्लाद?" – एटा में पुलिस की बर्बरता ने उड़ा दिए होश!
 
                                "पुलिस मित्र या जल्लाद?" – एटा में पुलिस की बर्बरता ने उड़ा दिए होश!
राज्य के डीजीपी के आदेशों को ठेंगा दिखा रही जैथरा पुलिस, खंभे से बांध युवक को बेरहमी से पीटा गया
एटा। “पुलिस को मित्र बनाएं” – उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक राजीव कृष्ण की यह नीति ज़मीन पर कितनी साकार हो रही है, इसका जीता-जागता शर्मनाक उदाहरण एटा जिले से सामने आया है। जैथरा थाना क्षेत्र में पुलिस की दरिंदगी का ताज़ा मामला सामने आया है, जहां कठिगरा गांव निवासी संतोष नामक युवक को खंभे से बांधकर बुरी तरह पीटा गया। इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो चुका है, जिससे पुलिस की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।
★ थाने में रातभर बंद, पट्टे से पीटने का वीडियो वायरल
संतोष ने बताया कि उनके और भाई के बीच ज़मीन विवाद को लेकर चौकी इंचार्ज ने उन्हें थाने बुलाया था। पहले तो चौकी में दिनभर बैठाकर रखा गया और फिर जैथरा थाने भेजकर पूरी रात बंद कर दिया गया। संतोष का आरोप है कि उन्हें खंभे से बांधकर पट्टे से बेरहमी से पीटा गया, जबकि वे लगातार मामले को आपसी सहमति से सुलझाने की बात कहते रहे।
★ एसएसपी से की शिकायत, लेकिन कार्रवाई नदारद
पीड़ित ने थाने से छूटने के बाद वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) एटा श्याम नारायण सिंह को शिकायत दी है। हालांकि एसएसपी ने कार्रवाई का आश्वासन दिया है, लेकिन अब तक किसी भी दोषी पुलिसकर्मी पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है। इससे लोगों में गहरा आक्रोश और अविश्वास फैल रहा है।
★ CO अलीगंज ने दिया जांच का भरोसा
क्षेत्राधिकारी अलीगंज नीतीश गर्ग ने मामले को गंभीरता से लेते हुए जांच की बात कही है और दोषियों पर सख्त कार्रवाई का वादा किया है। लेकिन जैथरा थाना प्रभारी शंभू नाथ सिंह से जब संपर्क करने की कोशिश की गई, तो उन्होंने फोन तक नहीं उठाया।
★ कानून और मानवाधिकारों की खुली अवहेलना
*एडवोकेट के अनुसार, यह घटना भारतीय दंड संहिता की धारा 323 और 330 के तहत **स्पष्ट अपराध है। सुप्रीम कोर्ट भी बार-बार हिरासत में हिंसा को मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन** मान चुका है। ऐसे मामलों में दोषियों पर कठोर दंड अनिवार्य है।
★ जनता में उबाल,
प्रशासन पर सवाल स्थानीय नागरिकों और सामाजिक संगठनों ने इस कृत्य की तीव्र निंदा की है और दोषियों को बर्खास्त कर जनहित में मिसाल कायम करने की मांग की है।
★ क्या डीजीपी की “पुलिस मित्र” नीति कागज़ों तक ही सीमित रह जाएगी?
? आपकी राय भी हमारे लिए ज़रूरी है! क्या पुलिस को इस मामले में बख्शा जाना चाहिए? अपनी राय भेजें
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 







 
                                                                                                                                                     
                                                                                                                                                     
                                                                                                                                                     
                                                                                                                                                     
                                                                                                                                                     
                                                                                                                                                     
                                             
                                             
                                             
                                             
                                            