बाहरी स्वच्छता से पहले आंतरिक शुद्धता जरूरी ! हिन्दू होकर हम हिंदू नहीं, फिर वो हमें हिंदू क्यों मानें

बाहरी स्वच्छता से पहले आंतरिक शुद्धता जरूरी ! हिन्दू होकर हम हिंदू नहीं, फिर वो हमें हिंदू क्यों मानें !
■ सुशील कुमार 'नवीन
पहलगाम में आतंकियों द्वारा 26 पर्यटकों की हत्या की घटना इन दिनों अन्तर्राष्ट्रीय स्तर तक चर्चा में है। इस घटना के परिणाम भविष्य में क्या रहेंगे। इस बारे में अभी कुछ कहा नहीं जा सकता। इस मामले में भारत सरकार का क्या रुख रहेगा? अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत को इस बारे में किस प्रकार का समर्थन मिलेगा। यह सब वक्त और हालात पर निर्भर रहेगा। हम सब को भी इस बात का पूर्ण भान है कि कई बार दोस्ती और समर्थन का दंभ भरने वाले मौके पर दूसरे पाले में खड़े मिलते है। दो लोगों की लड़ाई में निपटान करने वालों से लड़ाई का रसास्वादन करने वालों की संख्या कई गुणा होती है।
ऐसे में कोई भी कदम उठाने से पहले पॉजीटिव और निगेटिव का गहराई तक आंकलन जरूरी है। पर्यटक, वो भी हिन्दू पर्यटकों की हत्या करना एक घटना नहीं सुनियोजित साजिश है। इस साजिश की तह तक जाना बहुत जरूरी है। स्वाभाविक है जांच सिरे तक पहुंची तो हत्याकांड के तार दूर-दूर तक मिलेंगे। पहलगाम में जो हुआ वो किसी भी रूप में सही नहीं है। देश हमारा है, राज्य हमारा है। यही हम सुरक्षित नहीं। तो ये हमारे लिए किसी शर्मनाक स्थिति से कम नहीं। ये स्थिति बन क्यों रही है? इस पर भी विचार जरूरी है। परिंदा हो चाहे इंसान। उसे अपने घर अपने क्षेत्र, अपने राष्ट्र से सुरक्षित कोई जगह नहीं लगती है। यही सुरक्षा की भावना उसे पर्यटन के लिए भी आकर्षित करती है। भागदौड़ की आज की जिंदगी में फुर्सत के लम्हों को ऐसी जगह गुजारने का मन होता है जो उसे मानसिक स्फूर्ति और ताजगी से पूर्ण कर दें।
गर्मी की शुरुआत हुई है। ऐसे में इन दिनों पर्वतीय क्षेत्र पहली पसंद है। जम्मू और कश्मीर को ' धरती का स्वर्ग ऐसे ही नहीं कहा जाता है। बर्फ से ढके पहाड़, प्राकृतिक वनस्पतियों की भरमार , देखने योग्य मिनी स्विट्जरलैंड जैसे अनेकों स्थान, खान पान स्थानीय शिल्पकला के क्या कहने। ऐसे में पर्यटन के लिए ये राज्य सबको अपनी ओर अनायास आकर्षित करता है। यही आकर्षण 22 अप्रैल को पहलगाम में आतंकियों का शिकार बने नौसेना लेफ्टिनेंट विनय नरवाल जैसे अनेकों को वहां खींचकर ले गया था। उन्हें इस बात का अंदाजा थोड़े ही था कि जिस आनंद की अनुभूति करने के लिए परिवार समेत वो वहां आएं हैं वो न केवल उनकी जान लेगा वहीं परिवार को कभी न भूले जाने वाला दर्द भी दे देगा। घटना कितनी भयावह है, इस बात से हर कोई परिचित है। अपनों के खोने को ग़म अपनों को ज्यादा होता है। शेष के लिए तो कुछ समय ही याद रहने वाली एक घटना ही रहती है। फिलहाल इस घटना से हर भारतीय को दुख है। ऐसा नहीं है कि इस तरह की घटना पहली बार हुई हो। आतंकियों को जब भी मौका मिला है निर्दोषों को निशाना बनाया गया है। इस बार भी ऐसा ही हुआ, फर्क बस इतना कि आतंकियों का निशाना सिर्फ हिंदू रहे। पर्यटकों में से सिर्फ हिंदू छांटना, उनसे कलमा पढ़ने की कहना और जो न पढ़ पाए उसे उसी समय उसके परिवार के सामने निर्दयीयता पूर्वक गोली से उड़ा देना।
यह बहुत बड़ा विषय है। आखिर हिन्दू ही निशाने पर क्यों? घटना के बाद बहुत सी जगह पढ़ने और सुनने को मिला कि कलमा पढ़ लेते तो जान बच जाती। अब बात ये भी है कि हर किसी को कलमा याद थोड़े ही होगा। फिर हिन्दू कलमा पढ़े भी क्यों? जिसे कलमा याद नहीं वो काफिर हो गया। क्या इसलिए उसे मार देना उचित है। वैसे देखा जाए तो अपने धर्म के प्रति हम भी कौनसे ईमानदार है। दूसरों को तो कुछ कहने का मौका हम देते ही नहीं। हम ही उसकी कमियां आलोचना करने में काफी है। जब हिन्दू होकर हम स्वयं को हिंदू नहीं मानते तो दूसरे क्यों इसकी महत्ता स्वीकारेंगे। हमारी इसी बात का फायदा दूसरे उठाते हैं। खैर जो हुआ उसे वापिस तो नहीं किया जा सकता। पर ये घटना केवल एक घटना नहीं है। इस पर चिंतन भी किया जाना जरूरी है। इतिहास गवाह है कि अपनों की दगाबाजी के बिना दूसरों की इतनी हिम्मत नहीं की कोई आपके घर में घुसकर आपको मार दे। अपनों की शह तो इसमें जरूर मिलेगी। जरूरी नहीं ये अपने वहीं के हो। वे तो दूर बैठे भी हो सकते हैं। ऐसे में किसी भी बड़े कदम को उठाए जाने से पहले अपनी आंतरिक स्थिति का आंकलन और शुद्धता बहुत जरूरी है। जड़ मजबूत होगी तो मजबूती शिखर तक रहेगी।