जाति अभी ज़िंदा है - मार्मिक कविताएँ

जाति अभी जिन्दा है शीर्षक से प्रकाशित ‘श्री आर. एस. आघात’ का यह संकलन अपने नाम से ही एक संवेदनशील कृति का आभास दिला देता है l इस संकलन में कुल मिलाकर 48 कवितायेँ संकलित हैं l संकलन को पढना शुरू किया तो लेखक की आत्माभिव्यक्ति ‘मेरी बात’ के अतिरिक्त दलित साहित्य के नामचीन साहित्यकारों आदरणीय श्री जयप्रकाश कर्दम - नई दिल्ली, श्री दामोदर मोरे - ठाणे, डॉ संतोष पटेल - नई दिल्ली, एवं डॉ विजेंद्र प्रताप सिंह - अलीगढ़ द्वारा लिखी भूमिकाएँ पढने को मिली l इन विद्वान साहित्यकारों द्वारा इस पुस्तक के विषय में लिखी गयी भूमिका/प्रस्तावना/विवेचन/समीक्षा पढ़ लेने के बाद मुझे लगा कि अब मैं कुछ भी लिखूंगा तो वह ‘सूर्य को दीया’ दिखाने जैसा दुस्साहस ही होगा किन्तु आघात जी के विनम्र अनुरोध का अनुपालन नहीं करने के अपराधबोध के वशीभूत इस संकलन पर यह टिप्पणी लिखने का प्रयास कर रहा हूँ l
इस संकलन के शीर्षक को देख कर मेरे मन-मस्तिष्क में कई प्रश्न कौंधे, कि जाति का जन्म कहाँ से हुआ ? इसको पोषित करने वाले कौन हैं ? और जाति ज़िंदा है तो इसकी आवश्यकता ही क्या है ? आप सभी जानते हैं कि 'जाति' शब्द अंग्रेजी के कास्ट शब्द का पर्यायवाची शब्द है। 'कास्ट' शब्द का जन्म पुर्तगाली भाषा के कास्टा से हुआ है, जिसका अर्थ है नस्ल, प्रजाति अथवा प्रजातीय भेद । कास्ट शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम 1563 में ग्रेसियों डी ओरटा ने यह लिखकर किया था कि, "एक ही व्यवसाय का करने वाले सभी लोगों की जाति एक समान होती है या एक ही होती है l" जाति व्यवहारिक रूप से एक सामाजिक समूह है, एक ऐसा सामाजिक समूह जिसकी सदस्यता जन्म से निर्धारित होती है।
इस विषय पर अध्ययन से एक निष्कर्ष यह भी निकला है कि ‘जाति’ भारतीय समाज में एक मानसिक विकृति है और जिसका कोई इलाज़ नहीं है l ‘जाति’ आज के समाज में सामाजिक व्यवहार का एक पैमाना बन गया है l यह पैमाना ही आपके व्यवहारों की सीमा तय करता है l आपकी मित्रता, आपका प्रेम, आपका विवाह, आपका विकास, आपकी उन्नति और आपका वह, हर एक व्यवहार जो आप अपने घर से बाहर ही नहीं बल्कि अपने घर के भीतर भी करते हैं यह जाति नामक पैमाना ही तय करता है l
"जाति अभी जिन्दा है" (कविता संकलन) वर्ष 2024 में क़लमकार पब्लिशर्स, प्रा० लि० द्वारा प्रकाशित आर. एस. आघात की यह छटी कृति है l दलित साहित्य जगत में ‘आर. एस. आघात’ कोई नए हस्ताक्षर नहीं हैं l इससे पूर्व भी इनके दो अन्य कविता संकलन ‘नग़में उनकी यादों के’ और ‘सफ़र हर दर पर’ प्रकाशित हो चुके हैं l इनके अतिरिक्त इनके सम्पादन में ‘प्रवासी मजदूर और उनकी संवेदनाएं, शोषण के विरुद्ध भाग -१ एवं भाग -२ कविता संकलन भी प्रकाशित हो चुके हैं l
"जाति अभी जिन्दा है" में संकलित सभी 48 कविताएँ आघात जी के अपने समाज के प्रति सम्बद्धता, प्रेम, लगाव, प्रवाह, चिंता, और संवेदनशीलता के सजीव दस्तावेज़ हैं l उनकी पैनी दृष्टि और सक्रिय कलम की धार समाज में घटित होने वाली छोटी-बड़ी सभी घटनाओं, समस्याओं और क्लिष्ट्ताओं को न केवल देखती हैं बल्कि उन्हें शब्द देकर कविता के रूप में हम सभी के सम्मुख ला रखती हैं और पाठक को सोचने पर विवश करती हैं कि आधुनिकता, विकासशीलता और आदर्शवाद का लबादा ओढ़े इस भारतीय समाज में ‘जाति’ क्यों ज़िंदा है ?
इस संकलन की पहली कविता ‘जाति अभी जिन्दा है’, इस संकलन की शीर्षक कविता है l इस कविता में जातिगत विषमता की टीस कवि हृदय को सालती है, कचोटती है और राजतंत्र की अनदेखी, निष्क्रियता, वर्गवाद और पंगुता पर विवशता के खूनी आँसू रोती दीखती है l ‘कब तक’, ‘धिक्कार है धिक्कार है’, ‘धर्म का काम’, ‘भावनाएं’, ‘हे शिल्पकार तू’, ‘सियार’, ‘छोटू’, ‘अनसुलझे सवाल’, और ‘जातिवाद का चक्कर’ कुछ ऐसी संवेदनशील कविताएँ हैं जिन्होंने मुझे बहुत प्रभावित किया है l
क़लमकार पब्लिशर्स, प्रा० लि०, नई दिल्ली से प्रकाशित आघात जी के इस संकलन का कवर बहुत ही संदर्भित एवं आकर्षक है l कविताओं की प्रूफ रीडिंग में पर्याप्त सावधानी रखी गयी है l व्याकरण की दृष्टि से बेशक इन कविताओं पर सुविग्य पाठक कुछ टिप्पणी कर सकते हैं पर भावना प्रधान कविताएँ होने के कारण व्याकरण पक्ष कविताओं पर हावी नहीं है l
‘जाति अभी जिन्दा है’ संकलन, त्यागमूर्ति माता रमाबाई अम्बेडकर एवं महामानव बोधिसत्व डॉ भीमराव अम्बेडकर के चरणों में समर्पित है l 118 पृष्ठों, का यह संकलन कोरे उपदेशों से विलग व्यक्तिगत अनुभवों पर आधारित उनके जूनून एवं संघर्षों का जीवंत संकलन है l इस संकलन में प्रकाशित ये कविताएँ, जाति व्यवस्था आधारित समाज में तिरस्कार से जूझते एक विशाल जनसमुदाय की मनोदशा को एक सशक्त अभिव्यक्ति दे रही हैं l यह संकलन "जाति अभी जिन्दा है" पठनीय है, संग्रहणीय है, और हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए आइओपेनर (आँखें खोल देने वाला) का कार्य करेगा l
कवि श्री आर.एस. आघात जी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं कि आपकी लेखनी समाजोपयोगी साहित्य सृजन में यूँ ही संलग्न रहे l
■ कवि –आर. एस. आघात
"जाति अभी जिन्दा है" ( कविताएँ )
क़लमकार पब्लिशर्स, प्रा० लि०
■ कश्मीर सिंह
ओवरसीज अपार्टमेंट्स, आर. ए. पुरम, चेन्नई,
तमिलनाडु, पिन - 600 028