जिएँ हरदम वर्तमान में
जिएँ हरदम वर्तमान में
कल का दिन किसने देखा है आज के दिन को खोयें क्यों ? जिन धड़ियों में हंस सकते हैं उन घड़ियों में रोये क्यों ? हम अतीत को याद कर व आने वाले भविष्य को सोच कर खुशी, प्रसन्नता, सुख, आनंद आदि का रसपान नहीं कर सकते है ।यदि रसपान करना है तो उसका मूल मंत्र हर दिन, हर वक्त वर्तमान में जीना है । इसके लिए जरूरी है सदा उड़न घोड़े पर सवार रहने वाले मन को नियंत्रण में रखना क्योंकि इस सृष्टि में मन से अधिक चंचल और चलायमान कुछ भी नहीं हैं , जो इस पल यहाँ, उस पल वहाँ, अगले पल न जाने और कहॉं होता हैं । जो बीत गया वो अतीत था जो आएगा वो भविष्य काल होगा और जिन क्षणों में हम जी रहें हैं वो हमारा वर्तमान है।
बीता हुवा पल कभी वापिस लौट कर नहीं आता और भविष्य की हम नाना प्रकार की कल्पनाएँ करते हैं पर इस बात की कोई गारंटी नहीं कि हमारा अगला पल आएगा या नहीं।इसलिए वर्तमान में जीते हुए अपने समय का सदुपयोग करो,अपना समय अच्छे कार्यों में लगाओ और वर्तमान के हर पल को भरपूर आनंद से जियो।क्योंकि जैसे ही वर्तमान बीतेगा वो अतीत बन जाएगा और वो वापिस कभी नहीं लोटेगा।हम आने वाले दिनो की कल्पनाएँ ज़रूर करे पर जिस समय वर्तमान में जी रहे है उन्हें साकार करने का प्रयास जरुर करते रहे । हम जीवन में कभी ग़म नहीं करे कि जो सपने मैंने अतीत में देखे थे वो पूरे नहीं हुए , रोना धोना छोड़कर वर्तमान का भरपूर आनंद ले । रोने से ना सपने पूरे होंगे और हमारा वर्तमान भी सही बन पाएगा ।अतः ज़िंदगी हमारी ऐसी हो की सफलता क़दम चुमें । हमारी सोच हमारे अपने ज्ञान पर निर्भर होती है ।
अपेक्षा हमेशा दुःख देती हैं इसलिए जैसा हम सोचेंगे वैसा पाएँगे ,वास्तविकता को स्वीकार-नकारात्मकता को रोके तो हर परिस्थिति में आनंद अपार होगा ,सकारात्मक विचार ऊर्जा से भरे होंगे । बीते कल का अफ़सोस,वर्तमान की चिंता, आनेवाला कल कैसा इस बात का अफ़सोस कभी भी नही करना है जिससे हमारा आत्मविश्वास नही डगमग़ायेग़ा । इसको सही से जीवन में प्रवाहमान करने के लिये हम अभी से सदा वर्तमान में जिएँ जिससे हमारी ज़िंदगी ख़ुशनुमा बन सके । प्रदीप छाजेड़ ( बोरावड़)