क्या यही है तरक्की
क्या यही है तरक्की
कहने में हम कह देते है की हमने तरक्की कि है हजारों मील बैठे इन्सान को भी देख व सुन सकते है पर हम चारों तरफ नजर घुमा कर देखते हैं तो हमारा ऐसा पतन हुआ है कि हम पास बैठे इन्सान का भी दुःख-दर्द आदि भी समझ नहीं सकते हैं ।क्या यह तरक्की है ? जीवन पथ पर आगे बढ़ने के लिए हिम्मत के पंख व हौसलों की उड़ान जरूरी है ।संस्कृत की एक कहावत है उद्यमेन ही सिध्यंति कार्याणि न मनोरथे: ।
अर्थात उद्यम ( जैसे अनुकूल हो ) या प्रयास करने से ही कार्य में सफलता मिलती है केवल इच्छा रखने या सपने देखने से नहीं।जिन्होंने खुद को सर्द रातों में और तपती धूप में तपाया ,उन्नति कर इतिहास भी उन्होंने ही रचाया है ।तरक्की की राह में सबसे बड़ी रुकावट है तो हमारी सोच का चिन्तन सही नहीं होना । तरक्की के लिए जरूरी है सदैव संघर्षशीलता, सरलता ,संयमशील, अनुशासन और निरंतर चिंतनशील होना व सकारात्मक सोच आदि का होना। एक प्यारी सी मुस्कान व हाथ जोड़कर अपनापन से किसी को कहने पर पराए भी अपने बन जाते हैं।सब जीवो के प्रति दया भाव रखे तो हमारा मन शांत रहता है ।मधुर वचन है औषधि, कटु वचन है तीर, इसलिए वाणी संयमित, कर्णप्रिय होनी चाहिए।
किसी से कुछ अपेक्षा ना रखें ,मन सदा रहे खुश। ज्ञानार्जन के लिए कोई आयु सीमा नहीं है अतः जहां से भी मिले सदैव नम्रता पूर्वक ग्रहण करें ।हमेशा दूसरों की मदद के लिए तैयार रहें । मन में यही सोचो कि जब हमारी स्वयं की पाँचों अंगुलियाँ बराबर नहीं होती तो हम दूसरे से तुलना क्यों करें। बस यह बात हमेशा दिमाग़ में रखें कि होश में रहते हुए कोई ग़लत कार्य ना करें और अपने सामर्थ्य के अनुसार सत्कर्म अर्जित करें। अंत में अगर सुखी रहना है तो इस सोच के साथ जियें कि जो भाग्य में मिला है वो बहुत है और किसी भी वस्तु की सीमा नहीं होती।जो पास में है वो पर्याप्त है। प्रदीप छाजेड़ ( बोरावड़)