मदद का बदला मदद से
मदद का बदला मदद से
नवंबर का महीना था । शीत ऋतु का कुछ कुछ प्रकोप हो चलाथा .। शाम का समय था। बाजार में चहल-पहल कम होने लगी थी। घड़ी शाम के 6:00 बजे होना बता रही थी। घड़ी में समय को देखकर 46 वर्षीय रविकांत उर्फ रमाकांत अपनी किशोर इलेक्ट्रिक की दुकानबंद करने को सोच ही तभी एक युवती दुकान पर आकर दुकान मालिक से बोली--मेरी प्रेस को देख लीजिए काम नहीं कर रही । इसे ठीक कर दीजिए । दुकानदार ने युवती से प्रेस को लिया और पेचकस से खोलने ही जा रहा था ।तभीअचानक बिजली चली गई ।दुकानदार युवती से बोला - मैं तो दुकान बंद करने ही जा रहा था।. तभी तुम आ गई ।बिजली होती तो प्रेस को ठीक कर देता। अब तुम कल किसी समय आ जाना। तुम्हारी प्रेस को फौरन ठीक कर दूंगा ।
दुकानदार कीओर को देखते हुए युवती बोली- मुझे स्कूल पहन कर जाने वाले कपड़ो को प्रेस करना है। दुकानदार युवती की ओर देखते हुए बोला- -ठीक है आप बैठिए । बिजली आने दीजिए । बेटी तुम किस क्लास में पढ़ती हो ?क्या स्कूल की एक ही ड्रेसहै ?युवती बोली -स्कूल की हां एक ही ड्रेस है ।बीए. फाइनल में हूं। दुकानदार ने युवती से पूछा --तुम्हारे माता -पिता क्या करते हैं? उदास चेहरे से युवती बोली-- मेरे पिता बच्चों के स्कूलों के सामने गुब्बारा बेचते हैं।. मां एक पड़ोसी के यहां खाना बनाने का काम करती है ।मैं छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ा देती हूं ।उससे कुछ पैसा मिल जाता है। इसी से पढ़ाई का खर्चा तथा मां बाप की कमाई से मे परिवार का पालन पोषण होता है। दुकानदार ने जब युवती की दुख भरी बातों को सुला तो दुकानदार द्रवित हो गया और युवती से बोला -ठीक है इस प्रेस यही छोड़ जाइए और यह ठीक हुई प्रेस ले जाइए ।उससे अपना काम चलाइए ।कल किसी समय आकर अपनी प्रेस ले जाइए। मैं इसे ठीक कर दूंगा ।युवती जब दुकानदार द्वारा दी गई प्रेस को लेकर जब चलने लगी तो दुकानदार ने युवती से उसका नाम मोबाइल नंबर पूछा। जिससे उसकी प्रेस ठीक होने पर उसे बता सके। युवती ने दुकानदार की डायरी पर अपना नाम और अपना मोबाइल नंबर लिख दिया ।
युवती दुकानदार द्वारा दी गई प्रेस को लेकर चली चली गई।दुकानदार ने अपनी सभी दुकान बढ़ा दी और वह दुकान के अंदर कोठी के अंदर चला गया । दूसरे दिन 4:00 बजे के करीबन जब दुकानदार ने युवती की प्रेस को को ठीक कर दिया तो उसे मोबाइल से सूचना देने के लिए डायल किया। उधर से आवाज आई मैं प्रेम कुमारी बोल रही हूं ।आपको बहुत-बहुत धन्यवाद ।मैं जल्दी आकर प्रेस ले जाऊंगी और आप की प्रेस को लौटा दूंगी ।दुकानदार बोला --कोई बात नहीं जब समय मिले तब आ जाना। दुकानदार ने मोबाइल काटदिया । दूसरे दिन दुकानदार 8 बजे के करीबन जब दुकाने बंद करने जा रहा था तभी युवती दुकानदार की प्रेस को लेकर दुकानदार से आकर बोली- देरी के लिए क्षमा कीजिए ।ट्यूशन पढ़ाने में कुछ देर हो गई है। दुकानदार बोला- कोई बात नहीं ,आप अंदर आकर बैठिए। आप की प्रेस बिल्कुल ठीक हो गई । प्रेस को लेते हुए युवती दुकानदार से बोली -आपके कितने पैसे हुए ?दुकानदार मुस्कुराया और बोला- बस थैंक यूकह दीजिए और अपनी प्रेस ले जाइए ।मुझे अब कुछ नहीं चाहिए । मुझे आप जैसी होनहार लड़कियों की मदद करना मेरा फर्ज बनता है । इतना कह कर दुकानदार ने गोलक से 2 हजार रुपया 500 के चार नोट नोट निकालकर युवती को देते हुए कहा- संकोच मत करिए ले लीजिए। मैं भी तुम्हारी तरह बहुत गरीब घर का लड़का था। मेरा बाप रिक्शा चलाता था और मेरी जवान मां पड़ोसियों के घर में जाकर बर्तन माजती थी। मेरे मां-बाप ने इस गरीबी में मुझे पढ़ा लिखा कर मुझे इस लायक बना दिया ।लेकिन एमए करने के बाद नौकरी तलाश करने लगा ।लेकिन इस महंगाई भ्रष्टाचार के युग में जब मुझे कभी नौकरी नहीं मिली और मैं काफी परेशान हताश हो रहा था औरकभी-कभी आत्महत्या की बात भी सोच रहा था। तभी एक दिन अचानक मुझे मेरे इंटर कॉलेज के रिटायर्ड प्रिंसिपल डॉ महेंद्र प्रताप मिल गए।
उन्होंने मेरा हाल चाल पूछा ।जब मैंने उन्हें अपनी बेकार होने की बात बताई तो वो बोले -घबराने की कोई बात नहीं है ।मैं आजकल अपने बड़े लड़के डॉ सुरेंद्र के साथ अमेरिका जा रहा हूं। मैं 10 दिन के बाद अमेरिका से लौट आऊंगा ।जब मैं दोबारा अमेरिका जाऊंगा।तुम मेरे साथ अमेरिका चलना। मैं तुम्हारी वहां अच्छी सी नौकरी लगवा दूंगा। मैं आजकल अमेरिका में ही रहता हूं ।मैंने तभी प्रिंसिपल साहब से कहा मेरे गरीब मां-बाप का यह क्या होगा? वह अमेरिका जाने के लिए तैयार भी नहीं होगे ।मेरी बातों को सुनकर सोचते हुए प्रिंसिपल ने कहा ठीक है तुम 10 दिन बाद मेरी कोठे पर आ जाना। मेरी 3 दुकान और कोठीसभी खाली पड़ी हुई है। उन दुकानों में आकर अपना इलेक्ट्रिक सामान की दुकान खोल लेना मैं पैसा भी लगा दूंगा ।तुम किसी बात की चिंता मत करना ।मैं तुमसे किराया ब्याज भी नहीं लूंगा ।मैं तुम जैसे अपने होनहार विद्यार्थी की मदद करना चाहता हूं ।मैंने अपने गुरुदेव के पैर छुए और 10 दिन बाद आने की बात कह चला आया। जब मैं 10 दिन बाद कोठी पर जब पहुंचा मैं तो उन्होंने अपनी तीनों दुकानें दिखाई और उनदुकानों में मुझे किशोर इलेक्ट्रिक फार्म तथा शोरूम के साथ इलेक्ट्रिक की दुकान खुलवा दी और मेरे काम में अपना पूरा पैसा लगादिया।
दुकान का उद्घाटन करके पांच-छह दिन कोठी में रहकर वह अमेरिका चले गए। अपनी कोठी भी मेरे देखरेख में छोड़ गए। चलते समय यह कहा मेरा यह पुराना हेतराम नौकर अपनी बुढी पत्नी के साथ कोठी के एक हिस्से में रह रहा है । उसे अपना गार्जियन बनाकर तुम भी अपने मां बाप के साथ कोठी के दूसरे हिस्से मे रहना। मेरे पुराने नौकर को किसी प्रकार की परेशानी नहीं होना चाहिए। मैं 8 महीने के बाद फिर अमेरिका से आऊंगा और तुम्हारे कारोबार को देखूंगा । 8 महीने के बाद रिटायर्ड प्रिंसिपल साहब अमेरिका से आए और एक महीना कोठी में ठहरे ।हम हमारे पिता माताजी प्रिंसिपल साहब की खूब सेवा की ।रिटायर्ड प्रिंसिपल साहब मेरे कारोबार को देखकर और मेरे व्यवहार से इतने खुश हुए कि मुझे हमेशा के लिए कोठी में रहने के लिए कह दिया। मैंने गुरुदेव का बाद में एक-एक पैसा चुकता कर दिया। मेरी ईमानदारी को देखकर मेरे गुरुदेव ने मेरे नाम तीनों दुकानों और कोठी के एक हिस्से का बैनामा कर दिया। गुरुदेव की कृपा से आज में बहुत बड़ा व्यापारी बन गया हूं ।प्रिंसिपल साहब अपने बड़े लड़के के पास अमेरिका में रह रहे हैं। उनकी कोठी तथा उनके पुराने नौकर की देखभाल मैं ही करता हूं ।प्रिंसिपल साहब तथा ईश्वर की दया से रिक्शा चलाने वाले मेरे पिता और पड़ोसी के घरों में सफाई करने वाली मेरी मां अब इसी कोठी में रह रहे हैं ।यह सब भगवान तथा प्रिंसिपल की दया है। यह सब अपने जीवन की कहानी मैंने तुम्हें इसलिए सुनाई है कि हर गरीब व्यक्ति रईस हो जाए तो उसे अपनी पुरानी औकात को नहीं भूलना चाहिए ।हमेशा गरीबों की मदद करना चाहिए ।इसीलिए मैं तुम्हारी सहायता कर रहा हूं ।
किसी समय मेरी भी किसी ने इसी प्रकार से सहायता की थी। अब तुम हर महीना मुझसे ₹2000 लेती रहना जिससे तुम अपनी पढ़ाई करके एक उच्च अधिकारी बन सको। अपने पिताजी से कहना कि कल से वह गुब्बारा बेचने का काम बंद करें और मेरी दुकान पर आकर बैठे और मेरे कारोबार को देखें।मैं उन्हें 30,000 हर महीना वेतन दूंगा ।मैंने गरीबी के दिन देखे है ।इसी लिए मुझे गरीबों से हमदर्दी है। युवती को ले जाकर जब दुकानदार ने अपनी दुकान कोठी कारोबार को दिखाया है । तो युवती दुकान कारोबार को देखकर चौक गई और बोली -फिर आप इस छोटी सी दुकान पर बैठ कर खुद काम क्यों करते हैं ?जब कि आप के तमाम नौकर चाकर है। दुकानदार हंसा और हंसते हुए बोला -जब आदमी रहीस होने लगे तो उसे अपनी औकात नहीं भूलना चाहिए। श्रम मेहनत ईमानदारी को देखकर ही लक्ष्मी देवी खुश होती है ।सबकुछ देती है। अरे तुम्हें बातों में लगाए हुए रात के 9:00 बज रहे हैं ।अब तुम अकेली कैसे जाओगी ?मैं यह सब दुकानें बंद करा कर तुम्हें छोड़ना चलूंगा। थोड़ी देर के बाद सभी दुकानें बंद करा कर दुकानदार ने कोठी से अपनी इंपाला गाड़ी निकाली। युवती को इंपाला गाड़ी में बैठा कर उसे घर पर छोड़ आया।
युवती प्रेम कुमारी ने घर के अंदर चलने के लिए कहा लेकिन रविकांत प्रेम कुमारी को घर के बाहरी छोड़ कर चला आया। प्रेम कुमारी ने जब अपने मां-बाप को बहुत बड़े व्यवसाय दुकानदार रविकांत के विषय में बताया तो उसकी मां सोचते हुए बोली -यह बड़े लोग बड़े ऊंचे बहरूपिया होते हैं। पहले मुर्गी को दाना डालते हैं और अपने प्रेम जाल में फंसा लेते हैं। फिर रूप सौंदर्य का शोषण करके उसकी हत्या कर देते हैं। इसलिए इन रईसजादा से तुम दूर रहो। उसके पास ज्यादा आना जाना मत करना। प्रेम कुमारी ने मां से कहा - मैं ऐसा ही करूंगी ।लेकिन कल पिताजी को उनकी दुकान पर अवश्य ले जाऊंगी। मां तुम हर एक पर शक करती हो। हर एक पर अविश्वास करना भी ठीक नहीं है ।दूसरे दिन प्रेम कुमारी पिता को लेकर रविकांत के दुकान पर पहुंची और पिता का परिचय कराया । फिरदुकानदार रविकांत से बोली -कल से यह गुब्बारा नहीं बेचे गे ।आप जो उन्हें काम बताएंगे वही करेंगे ।पिता को रविकांत के यहां छोड़ कर प्रेम कुमारी अपने घर चली आई । सेठ रविकांत ने प्रेम कुमारी के पिता गोवर्धन लाल को शोरूम में ले जाकर बताया तुम शोरूम के इंचार्ज हो । तुम्हें यहां के नौकरों तथा शोरूम की देखभाल करना है। एक महीना काम करने के बाद गोवर्धन लाल को रविकांत ने जब 30 हजार का वेतन दिया है तो गोवर्धन लाल खुशी से फूला नहीं समाया।
जब गोवर्धन लाल ने रविकांत के पैर छूना चाहा तो रविकांत ने गोवर्धन लाल के हाथ पकड़ लिए और रविकांत ने कहा -तुम बुजुर्ग मेरे पिता के समान हो ।कभी भी अपने को नौकर मत समझना ।यहां सभी बराबर हैं ।यहां कोई नौकर नहीं है। सभी अपना दायित्व समझ कर ईमानदारी से काम कर रहे हैं ।गोवर्धन लाल जब शाम के समय घर आया तो उसने अपनी पत्नी और अपनी पुत्री को रविकांत के व्यवहार के संबंध में सब कुछ बताया। प्रेम कुमारी बोली मां तुम्हें सब पर शक करने की आदत है ।मैं पहले ही जानती थी रविकांत एक बहुत ऊंचे विचार के आदमी हैं ।बहुत बड़े व्यवसाई होने के बाद भी सभी दुकानों शोरूम को नौकरों पर छोड़ रखा है। खुद एक छोटी सी दुकान पर बैठकर खुद कार्य करते हैं ।रमाकांत के बहुत ऊंचे आदर्श विचार है । इसीलिए वह दिन पर दिन तरक्की कर रहे हैं। प्रेम कुमारी पिता जब सेठ रविकांत के यहां नौकरी करने लगे तो उनकी आर्थिक दशा सुधर गई और उनका परिवार खुशहाल हो गया। प्रेम कुमारी भी पढ़ लिखकर .एमए फर्स्ट क्लास से पास हो गई ।इस की पढ़ाई करने के बाद आईएएसकी तैयारी करने लगी। उसकी मेहनत से ऊसका आई ए एस में पांचवा स्थान रहा। जिलाधिकारी होने के बाद प्रेम कुमारी को ट्रेनिंग करने के लिए इसी जनपद में चार्ज मिल गया प्रेम कुमारी ने चार्ज लेते ही एक दिन तमाम फोर्स के साथ रविकांत दुकानदार की दुकान पर आई और उनका आभार प्रकट किया। दुकानदार ने प्रेम कुमारी से कहा बेटी जिस तरह से मैं तुम्हारी सहायता की है ।तुम भी उसी तरह से गरीब कमजोर वर्ग हॉनर छात्र छात्राओं की मदद करती रहना। बेटी मुझे तुमसे यही आशा है मदद का बदला मदद से देना निशा है किसी की सहायता प्रेम कुमारी बोली मैं आपकी इस शिक्षा का जिंदगी भर पालन करूंगी ।आपने मेरी मदद की है मैं जिंदगी भर दूसरों की मदद करूंगी।
बृजकिशोर सक्सेना किशोर इटावी कचहरी रोड मैनपुरी