कान्हा की गौ चारण लीला और गौ पूजन का पवित्र दिन है गोपाष्टमी……….
कान्हा की गौ चारण लीला और गौ पूजन का पवित्र दिन है गोपाष्टमी……….
■ दया शंकर चौधरी
कार्तिक शुक्ल पक्ष अष्टमी तिथि शुभ मुहूर्त: -
पंचाग के अनुसार, कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि की शुरुआत 08 नवंबर 2024 को रात 11 बजकर 56 मिनट से होगी।वहीं, इस तिथि का समापन अगले दिन यानी 09 नवंबर 2024 को रात 10 बजकर 45 मिनट पर होगा। ऐसे में गोपाष्टमी का पर्व 09 नवंबर को मनाया जाएगा। आइये समझते हैं कि गोपाष्टमी का पर्व महत्वपूर्ण क्यों है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने गौ-चारण लीला आरम्भ की थी।
★ श्री कृष्ण की गौ-चारण लीला की प्रचलित कथा इस प्रकार है…… भगवान् श्रीकृष्ण ने जब छठे वर्ष की आयु में प्रवेश किया तब एक दिन भगवान् माता यशोदा से बोले- "मैय्या अब हम बड़े हो गए हैं” मैय्या यशोदा बोलीं–“अच्छा लल्ला, अब तुम बड़े हो गए हो तो बताओ अब क्या करें” भगवान् ने कहा–“अब हम बछड़े चराने नहीं जाएंगे, अब हम गाय चराएंगे” मैय्या ने कहा –“ठीक है बाबा से पूँछ लेना” मैय्या के इतना कहते ही झट से भगवान् नन्द बाबा से पूंछने पहुँच गए। बाबा ने कहा –“लल्ला अभी तुम बहुत छोटे हो अभी तुम बछड़े ही चाराओ” भगवान् ने कहा –“बाबा, अब हम बछड़े चराने नहीं जाएंगे, गाय ही चराऊँगा “ जब भगवान नहीं माने, तब बाबा बोले- “ठीक है लल्ला, तुम पंडित जी को बुला लाओ- वह गौ चारण का मुहुर्त देख कर बता देंगे।” बाबा की बात सुनकर भगवान् झट से पंडित जी के पास पहुंचे और बोले – “पंडित जी !
आपको बाबा ने बुलाया है, गौ चारण का महुर्त देखना है, आप आज ही का महुर्त बता देना, मैं आपको बहुत सारा माखन दूंगा” पंडित जी नन्द बाबा के पास पहुंचे और बार-बार पंचांग देख कर गणना करने लगे, तब नन्द बाबा ने पूंछा...“पंडित जी क्या बात है ? आप बार-बार क्या गणना कर रहे हैं ? पंडित जी बोले “क्या बताएं नन्दबाबा जी केवल आज का ही मुहुर्त निकल रहा है, इसके बाद तो एक वर्ष तक कोई मुहुर्त नहीं है” पंडित जी की बात सुन कर नंदबाबा ने भगवान् श्रीकृष्ण को गौ चारण की स्वीकृति दे दी। ऐसा कहा जाता है कि भगवान जिस समय कोई कार्य करें वही शुभ-मुहुर्त बन जाता है। उसी दिन भगवान ने गौ चारण आरम्भ किया और वह शुभ तिथि थी “कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष अष्टमी” भगवान के गौ-चारण आरम्भ करने के कारण यह तिथि गोपाष्टमी कहलाई। माता यशोदा ने अपने लल्ला का श्रृंगार किया और जैसे है पैरो में जूतियां पहनाने लगी तो लल्ला ने मना कर दिया और बोले “मैय्या यदि मेरी गौएँ जूतियाँ नहीं पहनती हैं तो में कैसे पहन सकता हूँ। यदि पहना सकती हो तो उन सभी को भी जूतियां पहना दो” और भगवान जब तक वृन्दावन में रहे, भगवान ने कभी पैरो में जूतियां नहीं पहनी। आगे-आगे गौएं और उनके पीछे बांसुरी बजाते भगवान, उनके पीछे बलराम और श्री कृष्ण के यश का गान करते हुए ग्वाल-गोपाल इस प्रकार से विहार करते हुए भगवान् ने उस वन में प्रवेश किया तब से भगवान् की गौ-चारण लीला का आरम्भ हुआ। जब भगवान् गौएं चराते हुए वृन्दावन जाते तब उनके चरणो से वृन्दावन की भूमी अत्यन्त पावन हो जाती, वह वन गौओं के लिए हरी-भरी घास से युक्त एवं रंग-बिरंगे पुष्पों की खान बन गया था।
★ गोपाष्टमी से जुडी एक अन्य कथा भी है जो इस प्रकार है…… गोपाष्टमी महोत्सव कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। मान्यता के अनुसार कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से लेकर सप्तमी तक भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत धारण किया था। आठवें दिन देवराज इंद्र अहंकार रहित श्रीकृष्ण की शरण में आए तथा क्षमायाचना की। भगवान श्रीकृष्ण का “गोविन्द” नाम भी गायों की रक्षा करने के कारण पडा़ था। उसके बाद कामधेनु ने भगवान श्रीकृष्ण का अभिषेक किया और उसी दिन से इन्हें "गोविन्द" के नाम से पुकारा जाने लगा। तभी से कार्तिक शुक्ल अष्टमी को गोपाष्टमी का उत्सव मनाया जा रहा है। गौ अथवा गाय भारतीय संस्कृति का प्राण मानी जाती हैं। इन्हें बहुत ही पवित्र तथा पूज्यनीय माना जाता है। हिन्दु धर्म में यह पवित्र नदियों, पवित्र ग्रंथों आदि की तरह पूज्य माना गया है। शास्त्रों के अनुसार गाय समस्त प्राणियों की माता है। इसलिए आर्य संस्कृति में पनपे सभी सम्प्रदाय के लोग उपासना तथा कर्मकाण्ड की पद्धति अलग होने पर भी गाय के प्रति आदर भाव रखते हैं। गाय को दिव्य गुणों की स्वामिनी माना गया है और पृथ्वी पर गाय साक्षात देवी के समान है।
★ गोपाष्टमी के साथ गौकल्याण की संभावनायें - इंसानों के जंगल में ना पेड़ हैं ना पौधे, ना गाय हैं ना गोबर..., तो फिर राधा और श्रीकृष्ण कहाँ होंगे। ये ऐसा युग है जहाँ चाहते हुए भी गोबरधन पूजा और गोपाष्टमी के पर्व पर गाय की पूजा नहीं की जा सकती। ऐसे में हम सभी मिलकर किसी गौशाला में चलें और गाय और गोबरधन की पूजा करने के बाद राधा और श्रीकृष्ण को याद करते हुए गाय माता को उत्तर प्रदेश में *राज्यमाता* का दरजा दिये जाने की प्रार्थना करें। ये बात अलग है कि उत्तर प्रदेश की सामाजिक संस्था लोक परमार्थ सेवा समिति *उत्तर प्रदेश में गाय को राज्यमाता का दर्जा दिये जाने के लिए "प्रार्थना ही आंदोलन"* कार्यक्रम चला रही है। समिति का मानना है कि यदि प्रदेश में गाय को राज्यमाता का दर्जा देकर गौ संरक्षण और गौ संवर्धन की योजनायें बनाई जायें तो उत्तर प्रदेश का चर्तुदिक विकास हो सकेगा और प्रदेश की आर्थिक उन्नति के साथ-साथ लोगों को स्वास्थ्य, रोजगार और आर्थिक संपन्नता प्राप्त हो सकेगी।