खुशी का विज्ञान
खुशी का विज्ञान
खुशी का भी एक वैज्ञानिक आधार हैं ।उसी आधार पर खुशी के कुछ प्रकार हैं । डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णनन महान दार्शनिक व शिक्षक और हमारे पूर्व राष्ट्रपति कहते हैं कि प्रसन्नता, खुशी, आनन्द हमारे मानव होने की स्वाभाविक वृत्ति हैं । इसी आधार पर हम कह सकते हैं कि खुश न रहना हमारे स्वभाव की विकृति है ।
एक अन्य विद्वान की उक्ति है मुस्कान(Smile) आन्तरिक प्रसन्नता की बाह्य अभिव्यक्ति है । जैसे मकान को साफ नहीं करने से बेमतलब के सामान व कचरा भर जाता है| वैसे ही मन को साफ नहीं रखेंगे तो गलतफहमियां, ईर्ष्या द्वेष व क्रोध भर जाता है|तन के साथ मन को भी सरल व साफ रखें| मन में भर के मत जीओ मन भर के जीओ| खुद भी जिन्दादिल व खुश रहेंगे दूसरों को भी खुशी दे सकेगे। ज़िन्दगी रेत सी फिसलती जा रही हैं । इसे चाह कर भी कोई रोक नहीं पा रहे हैं ।
ख़ुशी मिले जो राह में उसको हासिल करलो क्योंकि ये सफर न जाने कब ख़त्म हो जाए । रात सुबह का इंतज़ार नहीं करती हैं । खुशबु मौसम का इंतज़ार नहीं करती हैं जो भी ख़ुशी मिले उसका आनंद लिया करो क्योंकि जिंदगी वक़्त का इंतज़ार नहीं करती हैं । ख़ुशी का साथ सबको भाता हैं इसको हर कोई इसे पल-पल चाहता हैं । जीवन में सबके गम की बैला आती हैं तो इससे ही खुशियों का मोल सजता हैं ।क्योंकि सर्दी का सूर्य उदित होना सुहाता हैं वही गर्मी की तेज़ धूप में आँख की किरकिरी बन जाता हैं।
बारिश की बूँदें भले ही छोटी हों लेकिन उनका लगातार बरसना बड़ी नदियों का बहाव बन जाता है तो परिवर्तन प्रकृति का नियम हैं इसमें सम रहना समझदारी हैं। ख़ुद के वास्तविक स्वरूप को नकारना समय की परिवर्तनशीलता को अस्वीकारना हैं । इसलिये प्रसन्नता या खुशी का यह गणित हैं कि खुशी जब बांटी जाती है तो वो द्विगुणित हो जाती हैं । आओ हम सब अपने स्वभाव से अपने व्यवहार से सदा प्रसन्न रहे और सबको सदा प्रसन्न रखने का प्रयत्न करे । प्रदीप छाजेड़