वाह! रे आदमी
वाह! रे आदमी
हमने पूर्व जन्म में कोई अच्छे सुकर्म किए है तभी हमको दुर्लभ यह मानव भव मिला हैं । परन्तु अफसोस हम मनुष्य जन्म पा तो लेते हैं परन्तु जिन्दगी भर comfort के पीछे भागते रहते हैं ।
आत्मा अमर है शरीर नश्वर है ।सुख-दुख,लाभ-हानि,विजय-पराजय सभी कर्मो की माया है । मनुष्य ना तो मरता है और ना जन्म लेता है ।आत्मा अमर है नष्ट तो सिर्फ शरीर होता है ।वायु, अग्नि और जल शरीर मात्र को ही नुकसान पहुंचा सकते हैं यह आत्मा को नहीं ।
हमें यह विदित रहें की हमें एक दिन इस संसार को अलविदा कर के जाना है ।अतः हम भौतिकवाद से दूर रहकर आध्यात्मिक की और अग्रसर होकर त्याग, तपस्या साधना आदि द्वारा धर्म का टिफिन तैयार रखें ।जिससे जब भी हमारा आयुष्य का बंध हों इस दुर्लभतम मनुष्य जीवन को सार्थक करते हुवें हम अपने परम् लक्ष्य की और अग्रसर हों।
क्योंकि मनुष्य जन्म मिले न मिले फिर आगे अपनी बिगड़ी अभी सुधार लो । मुक्ति की राह हमारी सदैव रहे । सिद्धत्व मिले या न मिले इस भव में पर गति अधो न हो ।करे गतिमान हम चरण अधर्म से धर्म , भोग से योग , आज्ञा (महावीर) धर्म अनाज्ञा अधर्म ,निर्वद्य दान /दया धर्म, न करना लौकिक /लोकोत्तर धर्म मिश्र दोनों है अलग अलग ।राज पथ जीवन का यही हैं ।
अफ़सोस विरले ही सोचते हैं कि यह जन्म ऐशो-आराम के लिए नहीं है आगे का भव सही से सुधारने के लिए हैं ।तभी तो कहा हैं कि अंत में जब जाता है मानव इह लोक छोड़कर तो परिवार वाले लाते हैं दो बाँस के लंबे लठ व कुछ छोटे-छोटे डंडे उन्हीं से उसकी अंतिम सवारी बनाते हैं जिस पर उसका अंतिम सफर होता है । सारा धन वैभव,शानो-शौकत यहाँ धरी की धरी रह जाती है । यहाँ पर चाहे हो अच्छा से अच्छा घर गाड़ी या फर्नीचर आदि । इसलिये कहा हैं वाह रे नादान आदमी ! क्या इसीलिए बिताई तूने यह दुर्लभ जिन्दगी खट-खट कर उम्र भर।
प्रदीप छाजेड़ ( बोरावड़ )