कृतज्ञता भाव
कृतज्ञता भाव
हम कृतज्ञता ज्ञापित करें की हमे यह दुर्लभ मानव भव मिला है। आर्यक्षेत्र,उत्तमकुल और परिपूर्ण अंगों युक्त सुन्दर सा तन मिला है। वीतराग वाणी तथा सम्यक् दर्शन की उपलब्धि अनमोल है कृतज्ञता ज्ञापित करें की हमे अनन्त भवों के बाद ये सुअवसर मिला है ।
कृतज्ञता भाव के साथ कृतज्ञता दिल से ज्ञापित करना मुश्किल होता है और औपचारिक कृतज्ञता ज्ञापित करना सरल होता हैं ।कृतज्ञता एक महान गुण है। कृतज्ञता का अर्थ है अपने प्रति की हुई श्रेष्ठ और उत्कृष्ट सहायता व उपकार आदि के लिए श्रद्धावान होकर दूसरे व्यक्ति के समक्ष ससम्मानपूर्वक ह्रदय की गहराई से भावों को प्रदर्शन करना हैं ।
हम अपने प्रति कभी भी और किसी भी रूप में की गई सहायता सेवा आदि के लिए आभार प्रकट करते हैं और कहते हैं कि 'हम आप के प्रति कृतज्ञ हैं और इसके बदले हमें जब भी कभी अवसर आएगा, अवश्य ही सेवा करेंगे।' कृतज्ञता मानवता की सर्वोत्कृष्ट विशेषता है। यह हमें आभास कराती है कि प्रत्यक्ष और परोक्ष किसी भी रूप में और कभी भी यदि किसी व्यक्ति ने कोई सहयोग और सहायता प्रदान की है, तो उसके लिए यदि कुछ न कर सके, तो हृदय से आभार अवश्य प्रकट करें। कृतज्ञता दिव्य प्रकाश है।
यह प्रकाश जहां होता है, वहां देवताओं का वास माना जाता है। कृतज्ञता दी हुई सहायता व उपकार के प्रति आभार प्रकट करने का, श्रद्धा के अर्पण का भाव है। जो दिया है, हम उसके ऋणी हैं, इसकी अभिव्यक्ति ही कृतज्ञता है और अवसर आने पर उसे समुचित रूप से लौटा देना, इस गुण का मूलमंत्र है।
इसी एक गुण के बल पर समाज और इंसान में एक सहज संबंध विकसित हो सकता है, भावना और संवेदना का जीवंत वातावरण निर्मित हो सकता है। हम तुम से, तुम हम से, हम सब एक दूजे से हैं ।कृतज्ञता का भाव अपने आप में आत्मतोष है ।जो कृतज्ञ बनता है उसका अपने आप का जीवन सुंदर अनुभव है और किसी भी कार्य के पश्चात जो प्रसन्नता होती है वह ख़ुशियों की चाबी है ।
हमारे जीवन मे किस प्रकार इसका समावेश हो और कैसे हम अपने जीवन को इसके अनुरूप ढाल सके यह अधिक आव्यशक हैं।यह केवल आयोजनात्मक नही प्रयोजनात्मक हो,मूलभूत सारगर्भित शिक्षा जीवन में उतरें। ताकि जीवन की जटिल परिस्थितियाँ एवं समस्याओं का समाधान हम कर सके ।
यह एक ऐसा ज्ञान-गुण-शिक्षा है जो कभी किताबों में नही बल्कि जीवन व्यवहार में घर-परिवार-पाठशाला-दोस्तों-रिश्तों आदि से मिलता है और मिला तो ऐसा मिले की ताउम्र हम इसको निभा सके और अपने जीवन में रचा बसा सके। प्रदीप छाजेड़ (बोरावड़)