Maha Kumbh 2025: मकर संक्रांति पर संगम में श्रद्धालुओं ने लगाई आस्था की डुबकी, देखिये तस्वीरें

Mahakumbh 2025: Devotees Take a Holy Dip at Sangam on Makar Sankranti, Witness the Divine Spectacle

Jan 15, 2025 - 09:33
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Maha Kumbh 2025: मकर संक्रांति पर संगम में श्रद्धालुओं ने लगाई आस्था की डुबकी, देखिये तस्वीरें
Mahakumbh 2025
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मकर संक्रांति के शुभ मौके पर महाकुंभ 2025 का पहला अमृत स्नान बड़े ही भक्ति और उल्लास के साथ शुरू हुआ। लाखों श्रद्धालुओं और संतों ने कड़कती ठंड की परवाह किए बिना गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के पवित्र संगम में डुबकी लगाई। कल्पना कीजिए, तीन करोड़ पचास लाख से ज्यादा भक्तों ने संगम में स्नान किया, और पहले दो दिनों में ही कुल श्रद्धालुओं की संख्या पांच करोड़ को पार कर गई।

यह दृश्य केवल एक स्नान का नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और परंपरा की गहराई को समझने का था। श्रद्धालु स्नान करते हुए भगवान सूर्य को अर्घ्य दे रहे थे, पुण्य और मोक्ष की कामना कर रहे थे। मकर संक्रांति, जो सूर्य देव को समर्पित है, भक्तों के लिए शुद्धि और नई ऊर्जा का प्रतीक बन गई।

संगम का अद्भुत नज़ारा
सोचिए, जब ब्रह्म मुहूर्त में सूर्य की पहली किरण संगम को छूती है, तो हजारों श्रद्धालु वहां उमड़ पड़ते हैं। सभी का मकसद एक—आत्मशुद्धि और आशीर्वाद। ठंड के बावजूद, आस्था और भक्ति का ऐसा माहौल बना कि ठंड मानो गायब ही हो गई हो।

संतों के अखाड़ों का शाही स्नान इस पर्व का एक और खास पहलू था। नागा साधु अपने भालों, त्रिशूलों और तलवारों के साथ जब संगम की ओर बढ़े तो ऐसा लगा जैसे कोई भव्य जुलूस निकल रहा हो। घोड़ों और रथों पर सवार इन साधुओं ने संगम के तट पर आध्यात्मिक ऊर्जा बिखेर दी। उनके भजनों और जयकारों से पूरा माहौल दिव्यता से भर गया।

आस्था के रंगों में सजे परिवार
यह सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि परिवारों के साथ आस्था का उत्सव भी था। कोई अपने बच्चों को कंधों पर बैठाकर संगम की पहली झलक दिखा रहा था, तो कोई अपने बुजुर्ग माता-पिता को घाटों पर सुरक्षित स्नान कराने की कोशिश कर रहा था। यह दृश्य भारतीय संस्कृति की अनमोल परंपराओं और आपसी प्रेम का जीवंत उदाहरण था।

दुनिया भर से आए भक्त
संगम पर हर तरफ एकता और विविधता का अनोखा संगम देखने को मिला। अलग-अलग भाषा, परिधान और परंपराओं वाले लोग यहां इकट्ठा हुए। कैलिफोर्निया से आए भारतीय-अमेरिकी श्री सुदर्शन ने कहा, "महाकुंभ में आना मेरे लिए ऊर्जा से जुड़ने का खास अनुभव है। यह पर्व मेरे जीवन को एक नई दिशा देने में मदद करता है।"

प्रशासन और स्वयंसेवकों का समर्पण
प्रशासन ने इस आयोजन को सफल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। संगम जाने वाले हर रास्ते पर सुरक्षा के इंतजाम किए गए थे। स्वयंसेवकों ने श्रद्धालुओं को सहर्ष रास्ता दिखाया और उनकी मदद की। यह सब इस मेले को सुव्यवस्थित और शांतिपूर्ण बनाने में अहम भूमिका निभा रहा था।

महाकुंभ का अनुभव: जीवन का सार
महाकुंभ सिर्फ एक मेला नहीं, बल्कि भव्य रूप में शाही स्नान के लिए निकले। उनके जुलूस ने मानो किसी राजसी आगमन का दृश्य पेश किया। भाले, त्रिशूल और तलवारों से सजे ये नागा साधु रथों और घोड़ों पर सवार होकर संगम तट पर पहुंचे। उनके तपस्वी रूप और भक्ति ने उपस्थित जनसमूह को मंत्रमुग्ध कर दिया। उनके साथ भजन मंडलियों की स्वरलहरियां और भक्तों के "हर हर महादेव" और "जय श्री राम" के उद्घोष ने माहौल को पूरी तरह आध्यात्मिक बना दिया।

परिवारों का समर्पण और भारतीय संस्कृति का दर्शन
संगम पर परिवारों की आस्था का भी अनोखा रूप देखने को मिला। कोई पिता अपने बच्चों को कंधे पर बिठाकर संगम की पहली झलक दिखा रहा था, तो कहीं बेटे अपने बुजुर्ग माता-पिता को पवित्र स्नान के लिए घाट तक ले जा रहे थे। यह दृश्य भारतीय संस्कृति के उन चिरस्थायी मूल्यों की झलक थी, जो श्रद्धा, कर्तव्य और एकता को दर्शाते हैं।

श्रद्धालुओं की विविधता
संगम तट पर केवल भारतीय ही नहीं, बल्कि विदेशों से आए श्रद्धालुओं की भी बड़ी संख्या थी। अलग-अलग भाषाएं बोलते, विविध पारंपरिक पोशाक पहनते और अनूठी सांस्कृतिक परंपराओं का पालन करते हुए ये लोग एक अद्भुत नज़ारा पेश कर रहे थे। विविधता में एकता का ऐसा सुंदर उदाहरण शायद ही कहीं और देखने को मिले।

प्रशासन की चुस्ती और सुरक्षा का प्रबंधन
महाकुंभ को सुव्यवस्थित और शांतिपूर्ण बनाए रखने के लिए प्रशासन ने कड़ी मेहनत की। हर सड़क पर अवरोधक लगाए गए, सुरक्षा के सख्त इंतजाम किए गए और स्वयंसेवक श्रद्धालुओं को सहायता प्रदान करते दिखे। पुलिस और सुरक्षाबल चौकसी के साथ मेला क्षेत्र में गश्त कर रहे थे।

तीर्थयात्रियों की निष्ठा और भक्ति
कई श्रद्धालु मीलों पैदल चलकर संगम पहुंचे, अपनी गठरियां सिर पर उठाए हुए। कुछ ने तो रात में ही तारों भरे आसमान के नीचे ठंडे पानी में स्नान शुरू कर दिया। जैसे-जैसे सूरज चढ़ता गया, संगम क्षेत्र भक्ति के केंद्र बिंदु में बदल गया।

आध्यात्मिकता और आस्था का महापर्व
महाकुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता का जीवंत प्रतिबिंब है। मकर संक्रांति पर अमृत स्नान को जीवन में सकारात्मकता और आशीर्वाद लाने का माध्यम माना जाता है। संगम के पवित्र जल में डुबकी लगाने से पापों का नाश और मोक्ष की प्राप्ति का विश्वास भक्तों के मन में गहराई तक बैठा हुआ है।

सांझ के अलौकिक दृश्य
दिन ढलने के बाद भी संगम तट पर भक्तों की भीड़ कम नहीं हुई। दीप जलाकर उन्हें नदी की धाराओं में प्रवाहित किया गया। इन टिमटिमाते दीपों की रोशनी ने गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम को एक स्वर्गीय रूप दे दिया। यह दृश्य मानो धरती पर स्वर्ग उतरने जैसा था।

महाकुंभ: एक अद्वितीय अनुभव
महाकुंभ में शामिल होना केवल एक यात्रा नहीं, बल्कि एक आत्मीय अनुभव है। यहां हर व्यक्ति सांसारिकता से परे जाकर एक गहरे आध्यात्मिक बंधन का अनुभव करता है। जैसा कि एक संत ने कहा, "महाकुंभ केवल एक पर्व नहीं, यह हमारे शाश्वत संबंध का स्मरण कराता है। यह वह स्थान है, जहां मानवता के अनगिनत धागे देवत्व और एकता के ताने-बाने में बुने जाते हैं।"

महाकुंभ 2025 की यह अद्भुत यात्रा आस्था, संस्कृति और भारतीयता के भावों को एक नई ऊर्जा प्रदान करती है। जो भी इस संगम के साक्षी बने, उनके लिए यह अनुभव जीवनभर यादगार बन गया।