बचपन का गाँव
बचपन का गाँव ठण्डी-ठण्डी छांव में
उस बचपन के गाँव में मैं-जाना चाहती हूँ।
तोडऩा चाहती हूँ बंदिश चारों पहर की।
नफरत भरी ये जिन्दगी शहर की॥
अपनेपन की छाया मैं पाना चाहती हूँ।
उस बचपन के गाँव में मैं-जाना चाहती हँ हूँ॥
घुट-सी गयी हूँ इस अकेलेपन में
खुशियों के पल ढूँढ रही निर्दयी से सूनेपन में
इस उजड़े गुलशन को मैं महकाना चाहती हूँ।
उस बचपन के गाँव में मैं-जाना चाहती हूँ।
प्रेम और भाईचारे का जहाँ न संगम हो।
भागे एक-दूजे से दूर न मिलन की सरगम हो॥
उस संसार से अब मैं छुटकारा चाहती हूँ।
उस बचपन के गाँव में मैं-जाना चाहती हूँ।
—प्रियंका 'सौरभ'