बाल दिवस - मुस्कान तेरी ओ नन्हें

Nov 14, 2024 - 09:16
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बाल दिवस -   मुस्कान तेरी ओ नन्हें
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बाल दिवस - मुस्कान तेरी ओ नन्हें !

 यह हम सबको सम्मोहित कर लेती है क्योकि फूल सा कोमल ,निश्छल ,मासूम , निस्वार्थ ! उसके कोई भेद भाव नहीं है ! वह भूतकाल से दूर रहता है ! उसको बस वर्तमान से प्रियता है ! उसकी हँसी अनमोल है ! वह इस जगत में अद्भुत ! प्यारा ! आदि - आदि है क्योकि मासूम बच्चे सी मुस्कान उसकी आँखों मे है इसलिए उसको पूरी दुनियां प्यार करती है । वह हमारे संग आसमान से अपना स्वर मिलाता है क्योकि उसके उङने की चाहत पाँखो में है।हमारी यादों में इन वादियों का नैसर्गिक सौंदर्य अमिट हिस्सा बन जाता है | वह मुश्किल कैसी भी हो अगर दृढ़ इच्छाशक्ति हमारी सांसों मे हो तो वह दम तोङ देती है । वह उसका पल में ही हँसना, पल में ही रोना और रूठ जाना होता है ।वह हर पल को अपने ढंग से जीता है ।

वह लम्बी डोर कभी किसी बात की नहीं खिंचता है ।वह भूत को भूल वर्तमान में ही जीता है क्योकि वह दुश्मनी की परिभाषा को नहीं जानता है । वह उसे सब अपने से ही प्यारे -प्यारे लगते है । अपना पराया क्या होता ? वह मिल बाँटकर सबके साथ खाता -पीता व खेला आदि करता है । वह किस्सा रोने रूठने का जल्द ही भूल जाता है ।वह निश्चिन्त हो आराम से सोता है और उसको जब भूख सताती है तो आहार मिल जाता है । उसको पेट भर जाने के बाद लोभ और खाने की आदत नहीं होती है । वह सरल ह्रदय से शरारत करता है , सबको दिल से हँसाता है जिससे किसी का दिल न टूटे । वह गलत भाव कभी भी किसी के लियें मन में नहीं लाता है औरों को हँसता देख वह भी हंस पड़ता है वह किसी को रोते देख कुछ समझ नहीं पाता है और वह भी उदास हो या उसके संग रो पड़ता है इसीलिए शायद सही कहते हैं की बच्चों में रब्ब बसता है । बच्चे हम सबको प्यारे लगते है । हम भी बच्चे से बन जाये जिससे हमारा जीवन जटिल नहीं आसान बन जायें । हमने ये वाक्य बहुत बार सुने व पढे जाते है पर फल वही देते जो बचपन में बोये जाते है क्योकि बचपन एकदम ताजी उपजाऊ भूमि है । स्वयं माली बन फूल या कांटे उगाने के कार्य का हकदार है ।

यह फुलवारी आँधी हो या तुफान कभी न उखड़े तभी तो वह कुशल माली कहलाता है क्योकि आँधी और तुफान असफलता पर है लेकिन वही मानव आनंद की फुलवारी महकाता है जिसे कुशल माली ने स्वयं प्यार और सकरात्मक सोच के साथ सींचा है , उस पर उँची-उँची उम्मीदों को नही लादा है , वह प्रतिस्पर्धा का रसायन नही डाला है । वह असफल होने पर और अधिक खुशी से उसको सींचा है व उस बीज से ही तो उसने हर हाल में हँसना सीखा है ।

 बच्चें नन्ही पौध है । हम उन पर सफलता का बोझ नहीं डाले क्योकि सफलता और असफलता तो मात्र शब्दों का जोड़ है । अतः हम इसकी डोर बच्चों पर नहीं बाँधे । हम सकरात्मक सोच से उनकी जिन्दगी की पौध भरें जिससे फिर चाहे उनकी जिन्दगी में कितनी भी असफलता की घनघोर बरसात आए उससे उतनी ही साहस और पुरुषार्थ से वह जीवन की हर नूतन भोर शुरु करेंगे । वह उसके जीवन का प्रकाश कभी मंद नहीं पड़ेगा ।यही हमारे लिए काम्य है । प्रदीप छाजेड़ ( बोरावड़)