डिजिटल माध्यमों का बढ़ता दुष्प्रभाव
 
                                डिजिटल माध्यमों का बढ़ता दुष्प्रभाव
विजय गर्ग
डिजिटल क्रांति के वर्तमान दौर में डिजिटल उपकरणों के बढ़ते उपयोग ने मानव जीवन को बेहद सुविधाजनक और आसान बना दिया है, परंतु इनके अंधाधुंध उपयोग ने इंसान के समक्ष समस्याओं का अंबार खड़ा कर दिया है। वस्तुतः स्मार्टफोन का उपयोग निरंतर बढ़ रहा है। जिसने स्वास्थ्य समस्याएं भी पैदा की हैं। बीते दिनों हुए अध्ययन समाज विज्ञानियों की चिंता के जीते-जागते सबूत हैं। कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के विज्ञानियों द्वारा किया गया एक हालिया अध्ययन जो 'जर्नल आफ जनरल इंटरनल मेडिसीन' में प्रकाशित हुआ है, उसमें विज्ञानियों ने चेतावनी दी है कि कम उम्र या 20 साल की आयु तक ज्यादा स्मार्टफोन या टीवी देखने से दिल कमजोर हो जाता और दिल का दौरा पड़ने के खतरे की आशंका काफी बढ़ जाती है।
अधिक समय तक स्क्रीन देखने से नींद और शारीरिक गतिविधियां प्रभावित होती हैं। इसके अलावा ब्रिटेन के किंग्स कालेज और लंदन के मनोविज्ञान और तंत्रिका विज्ञान संस्थान के विज्ञानियों के शोध अध्ययन के अनुसार, हर पांच में से एक किशोर में अधिक समय तक स्मार्टफोन इस्तेमाल करने से चिंता, अवसाद और अनिद्रा जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं। पर्यावरण पर हो रहे दुष्प्रभाव के बारे में इंग्लैंड के लाफबोरो यूनिवर्सिटी के विज्ञानियों के अध्ययन के प्रमुख प्रोफेसर आयान हाकिंसन का मानना है कि डिजिटल डाटा का पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यह सही है कि डिजिटल माध्यम से भेजी जाने वाली एक तस्वीर बहुत बड़ा प्रभाव नहीं डालती, लेकिन यदि आप अपने फोन में मौजूद सभी तस्वीरों, मीम्स आदि को देखते हैं तो इससे ऊर्जा खपत में वृद्धि होती है। क्लाउड आपरेटर आपसे जंक डाटा डिलीट करने को कहते हैं, क्योंकि जितना डाटा संग्रहित किया जाता है, उतने ही ज्यादा लोग उनके सिस्टम का उपयोग करने के लिए भुगतान करते हैं। यहां यह जान लेना जरूरी है कि ग्रीन हाउस उत्सर्जन से जलवायु का संकट निरंतर बढ़ता जा रहा है। तेल, गैस और कोयला से तो यह हो ही रहा है, जंक डाटा भी उसमें से एक है जो इसका एक अहम कारक बनता जा रहा है।
आने वाले समय में यह संकट और बढ़ेगा। जंक डाटा से निपटना जलवायु संकट का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। वस्तुतः गूगल, माइक्रोसाफ्ट्स जैसी इंटरनेट आधारित कंपनियों के बड़े-बड़े डाटा सेंटर हजारों की संख्या में सर्वर का इस्तेमाल करते हैं। ये बड़ी मात्रा ऊर्जा की खपत करते हैं जिससे वातावरण में गर्मी पैदा होती है। उसे नियंत्रित करने के लिए बड़े- बड़े एयरकंडीशनर उपयोग में लाए जाते हैं जो डाटा सेंटर को तो ठंडा रखते हैं, लेकिन बाहर ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जित करते हैं। इससे पर्यावरण को काफी नुकसान होता है।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कौर चंद एमएचआर मलोट पंजाब
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 







 
                                                                                                                                                     
                                                                                                                                                     
                                                                                                                                                     
                                                                                                                                                     
                                                                                                                                                     
                                                                                                                                                     
                                             
                                             
                                             
                                             
                                            