मोबाईल मर्ज

Oct 23, 2024 - 07:56
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मोबाईल मर्ज

आवश्यकता अविष्कार की जननी है । समय के हिसाब से मानव के चिन्तन से मोबाईल की आवश्यकता ने बल दिया व उसका अविष्कार किया है जों वर्तमान में सभी के लिए आवशयक हैं या यों कहे किसी के पास ,किसी भी वक़्त , किसी भी विषय पर आदि जल्दी से पहुँचने का सबसे सुगम्य रास्ता मोबाईल हैं । मैं इसको सदुपयोग के नज़रिये से मेरे साथ में घटित घटना से बता रहा हुँ ।

मेरे को पाँव के ओपरेशन के समय व देखते आदि समय डॉक्टरों ने मेरे पाँव की बीमारी की गहराई से एक एक बात बिमारी की जो वर्तमान में भी है मेरे दोनो पाँव में को मोबाईल से दिखाया समझाया और कहा ऐसे ही जीवन में मज़बूत मनोबल से निरन्तर प्रमाणिकता से सतत चलते रहना और डाक्टरों ने कहा दूसरे रोगीयो को की यह 2 -2 ओपरेशन अकेले करवा लिया हैं और राजस्थान से निरन्तर अकेले आते ,रुकते और ईलाज भी करवा रहे है। मुझे दिखाने जाने से पहले मोबाईल में , मोबाईल से काफ़ी काम अग्रिम में काफी सहयोग हो जाता है । यह तो मोबाईल के सदुपयोग का नज़रिया हो गया है ।

इसके विपरीत जब किसी चीज़ का अविष्कार होता है तो अच्छा के साथ बुरा भी आता है या हम यूँ कह सकते हैं की सिक्के के दोनो पहलु होते है । हम देखते है जब बच्चा छोटा होता हैं तो परिवार वाले बच्चे को मोबाईल देकर गाने , फ़िल्म आदि चला कर उसका मन इस और मोड़कर दूध पिलाते आदि हैं जिससे बच्चा भी ख़ुश और परिवार भी ख़ुश परन्तु इसी ख़ुशी के साथ बुराई के बीज बोना व इसको सींचना आदि भी हम शुरु कर देते है । बच्चा जैसे जैसे उम्र में आगे बढ़ता है तो मोबाईल से परछाईं की तरह जुडा़व भी उसका बढ़ता जाता है । यह जुड़ाव उसको और परिवार को अनचाहे गर्त की और भी ले जाता है जिसका अंदेशा स्वयं व परिवार किसी को नहीं होता और परिणाम आने पर ही ध्यान आता हैं ।एक उदाहरण यह हैं कीं दुनिया जगती हैं तब वो सोता हैं और जब दुनिया सोती है तब वह शाम के खाने की तैयारी करते है या यूँ कहे की जगता है । उस समय कहना , सुनना , मानना आदि कहावतें हो जाती है । इसका ज़िम्मेदार कौन? अब पछताये क्या हो जब चिडीया चुँग गयी खैत ।वैसे मोबाईल निःसंदेह बहुत उपयोगी उपकरण है पर इसे उपयोगिता तक ही सीमित रखना जरुरी है।

 इसको एक नशे या लत के रूप में उपयोग करना तो मोबाईल का दोष नहीं है। इसके इस तरह दुरुपयोग से तो पारिवारिक व अन्य सामंजस्यता समाप्त हो रही है। यह चिन्तन ही नहीं बहुत गहरी चिंता का विषय है।हमने इस प्रवृत्ति पर अगर ब्रेक लगाने की ओर ठोस चिन्तन नहीं किया तो वह दिन दूर नहीं जब आपसी वार्तालाप पर ही एकदम विराम लग जाएगा।यह स्थिति हम सबका गहन चिन्तन माँगती है । अतः सही से सीमित और कार्यवश उपयोग तक तो कोई हर्ज नहीं है पर चिन्ता इस बात की है कि अनियंत्रित रूप से यह मोबाईल मर्ज बढ़ रहा है । प्रदीप छाजेड़ ( बोरावड़ )