इन पांच पॉइंट्स से समझिए बीजेपी ने कैसे दर्ज की ऐतिहासिक विजय?कांग्रेस की रूझानी जीत हार में बदली

Oct 8, 2024 - 17:30
Oct 16, 2024 - 07:22
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इन पांच पॉइंट्स से समझिए बीजेपी ने कैसे दर्ज की ऐतिहासिक विजय?कांग्रेस की रूझानी जीत हार में बदली
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इस ऐतिहासिक जीत के बारे में खुद बीजेपी ने नहीं सोचा होगा। पहली बार हरियाणा में बीजेपी ने 50 के आंकड़े को छुआ है। मतगणना के पहले जो कांग्रेस एग्जिट पोल के सहारे बड़े - बड़े दावे कर रही थी अब वही, चुनाव आयोग पर आरोप लगाती नजर आ रही है। इसका मतलब साफ है कि हरियाणा में जवान - पहलवान और किसान आंदोलन काम नहीं आया और न ही जाट, दलित, एंटी इनकंबेंसी काम की तो फिर आखिर बीजेपी के इस ऐतिहासिक जीत के क्या कारण रहें, आइए इन पांच पॉइंट्स से समझते हैं...

मुख्यमंत्री को बदलने से हुआ फायदा

चुनाव का बिगुल बजने से जस्ट पहले बीजेपी का सीएम बदलने की योजना काम कर गई। इससे बीजेपी ने न सिर्फ ओबीसी वोटर्स को साधा बल्कि जाट एंटी इनकंबेंसी को भी कम किया। नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाने का बीजेपी फार्मुला काम कर गया। सैनी सौम्य व्यक्तित्व वाले नेता हैं। उन्होंने सीएम बनने के बाद कई योजनाएं ओबीसी वोटरों को साधने के लिए बनाईं।

जहां मुकाबला त्रिकोणीय, वहां बीजेपी ने बनाई स्पेशल रणनीति

इस चुनाव में बीजेपी का आंतरिक सर्वे भी काम कर गया। बीजेपी ने आंतरिक सर्वे के आधार पर उन सीटों को ज्यादा फोकस किया जहां मुकाबला त्रिकोणीय दिख रहा था। इतना ही नहीं राजनीतिक जानकारों की माने तो बीजेपी ने पहले ही थर्ड पार्टियों से बात कर रखी थी। यही कारण है कि सीएम सैनी ने हाल ही में बयान भी दिया था कि यदि गठबंधन की जरूरत पड़ी तो सारी व्यवस्थाएं तय कर ली गई हैं।

एंटी जाट वोटों को साधा

हरियाणा में पिछले दो विधानसभा चुनाव में बीजेपी को जाटों वोट न के बराबर मिले थे। 2014 विधानसभा चुनाव में कुछ प्रतिशत जाट वोटों को छोड़ दें तो अधिकतर कांग्रेस और इनेलो को ही मिला था। 2019 विधानसभा चुनाव परिणाम ने भी कुछ इसी प्रकार का इसारा किया। जिसके बाद बीजेपी ने जाट वोटों की जगह एंटी जाट वोटों के ध्रुवीकरण के लिए योजना बनाई। जो कि सफल रही। बीजेपी ने केंद्र से लेकर राज्य तक हर जगह से जाट वोट बैंक की ओर ध्यान देना बंद कर दिया उसकी जगह पंजाबी हिंदू, ओबीसी और ब्राह्मण दांव खेला।

किसानों और पहलवानों के आंदोलन को बीजेपी ने कैसे बनाया निष्प्रभावी?

पिछले कुछ सालों में अगर हरियाणा सरकार को किसी चीज ने सबसे ज्यादा परेशान किया था तो वो है किसानों और महिला पहलवानों का आंदोलन। जिसका कांग्रेस और बाकी विपक्षी पार्टियों ने भी खूब फायदा उठाना चाहा। कांग्रेस ने तो महिला पहलवान आंदोलन की नींव रखने वाली बबिता फोगाट को चुनाव भी लड़ा दिया। इसके बावजूद बीजेपी की सूझबूझ काम कर गई। बीजेपी ने किसानों और महिला पहलवानों के आंदोलन की ओर ध्यान न देने की जगह इन्हें और बढ़ने दिया। और ये आंदोलन इतना बढ़ गया कि इनके विरोध में बाकी वर्ग उठ खड़े हुए। किसान आंदोलन में ज्यादातर जाट शामिल थे, जिस वोट बैंक से बीजेपी ने पहले ही पल्ला झाड़ लिया था। यही कारण है कि इन आंदोलनों का असर भी हरियाणा विधानसभा चुनाव में नहीं पड़ा।

कांग्रेस की गुटबाजी को दिया बढ़ावा

अपनी रणनीति में बीजेपी ने एक और बढ़िया चीज शामिल की वो थी विपक्षी पार्टी की कमजोरियों को बढ़ावा देना। हम सबने देखा कैसे हरियाणा कि मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस में आपसी फूट तेज हो गई थी। सैलजा कुमारी और सुरजेवाला दोनों सीएम पद के लिए दावा ठोकने लगे थे। यही नहीं भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनके बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा दोनों के खिलाफ कांग्रेस नेताओं ने ही कैंपेन चला दिया। इन सबको बीजेपी ने बढ़ावा दिया। हाल ही में बीजेपी ने कांग्रेस से नाराज चल रही कुमारी शैलजा को पार्टी में शामिल होने का ऑफर तक दे दिया।