हिमाचल में दल बदलू विधायकों को नहीं मिलेगी पेंशन, CM सुक्खू
हिमाचल में दल बदलू विधायकों को नहीं मिलेगी पेंशन, CM सुक्खू
हिमाचल प्रदेश में विधायकों के लिए जल्द ही पार्टी बदलना मुश्किल हो सकता है। इसे लेकर विधानसभा में मंगलवार को नया विधेयक पेश किया गया है।
नए विधेयक का उद्देश्य दलबदल विरोधी कानून के तहत अयोग्य ठहराए गए विधायकों की पेंशन रोकना है। यह विधेयक उन छह कांग्रेस विधायकों पर भी असर डालेगा। जिन्होंने इस साल भाजपा में शामिल होकर सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार का विरोध किया था। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने हिमाचल प्रदेश विधानसभा संशोधन विधेयक 2024 पेश किया। जो अब चर्चा और मतदान के बाद राज्यपाल की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा।
यदि इसे मंजूरी मिलती है तो यह कानून बन जाएगा। इस विधेयक का उद्देश्य संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्य ठहराए गए विधायकों की पेंशन रोकना है। यदि विधेयक पारित हो जाता है तो दलबदल के लिए अयोग्य ठहराए गए किसी भी विधायक को पेंशन का अधिकार नहीं मिलेगा। यह प्रस्ताव उन छह कांग्रेस विधायकों को भी प्रभावित करेगा। जिन्हें इस साल की शुरुआत में पार्टी के निर्देशों का उल्लंघन करने के लिए अयोग्य ठहराया गया था।
आपको बता दें कि फरवरी में कांग्रेस के छह विधायक सुधीर शर्मा, रवि ठाकुर, राजिंदर राणा, इंदर दत्त लखनपाल, चेतन शर्मा, और देविंदर कुमार को एक महत्वपूर्ण बजट मतदान में अनुपस्थित रहने के कारण अयोग्य घोषित कर दिया गया था। हालांकि सुधीर शर्मा और इंदर दत्त लखनपाल ने बाद में उपचुनाव में अपनी सीटें वापस पा ली। जबकि अन्य चार हार गए।
सरकार का कहना है कि 1971 के अधिनियम में दलबदल को रोकने और लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखने के प्रावधान नहीं थे। यह संशोधन विधेयक संवैधानिक उल्लंघनों को रोकने और मतदाताओं के जनादेश की रक्षा के लिए लाया गया है। छह बागी विधायकों ने 27 फरवरी को राज्यसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवार हर्ष महाजन को वोट देकर पार्टी के आदेशों का उल्लंघन भी किया था। यदि नया विधेयक पारित होता है तो इन कार्यवाहियों पर भी असर पड़ेगा।
अभी हिमाचल प्रदेश की 68 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के पास 40 सीटें हैं। जबकि भाजपा के पास 28 सीटें हैं। नए विधेयक के पारित होने से प्रदेश की राजनीतिक संरचना में भविष्य में दलबदल और पार्टी निष्ठा पर महत्वपूर्ण असर पड़ सकता है। अगर राज्यपाल की मंजूरी मिल जाती है तो यह विधेयक हिमाचल प्रदेश में विधायकों के बीच दल-बदल को रोकने में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।