पीर पर्वत सी पराई हो गई अब तो पिघलनी चाहिए, कोई गंगा निकलनी चाहिए
पीर पर्वत सी पराई हो गई अब तो पिघलनी चाहिए, कोई गंगा निकलनी चाहिए - हिन्दी गजल को नई दिशा और दशा दे प्रख्यात ग़ज़लकार दुष्यंत ने उसे आम आदमी के सरोकारों से जोड़ा
कायमगंज / फर्रुखाबाद। साहित्यिक संस्था साधना निकुंज एवं अनुगूंज के संयुक्त तत्वावधान में हिंदी गजल के बेताज बादशाह दुष्यंत कुमार के जन्म जयंती पर कृष्णा प्रेस परिसर कायमगंज में संगोष्ठी का आयोजन किया गया । जिसकी अध्यक्षता फतेहगढ़ बार एसोसिएशन के अध्यक्ष जवाहर सिंह गंगवार ने की ,मुख्य अतिथि बार एसोसिएशन के महासचिव नरेश सिंह यादव रहे ।
गोष्ठी का संचालन आर्य प्रतिनिधि सभा उत्तर प्रदेश के उप मंत्री मुन्ना यादव एडवोकेट ने किया। इस अवसर पर मुख्य वक्ता प्रोफे.रामबाबू मिश्र रत्नेश ने कहा कि दुष्यंत ने कविता को हुस्न और इश्क के दायरे से निकालकर आम आदमी के सरोकारों से जोड़ा। सत्ता के मद में डूबे राजनेताओं पर भी व्यंग्य बाण छोड़े । कहा कि : – मत कहो आकाश पर कोहरा घना है , यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है ।
दुष्यंत कुमार ने एक सोई हुई चेतना को जगा कर उसके तेवरों को स्वर दिए। उनकी हर गजल आधुनिक भारत के पुनर्जागरण का महामंत्र सिद्ध हुई । प्रख्यात गीतकार पवन बाथम ने दुष्यंत कुमार की बेहद लोकप्रिय गजलें सुनाईऔर कहा कि उन्होंने अपने अल्प जीवन काल में गजल की दशा और दिशा बदल दी ।उनकी लोकप्रिय गजलों में एक गजल के कुछ शेर देखें… हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए , इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए ।
मेरे सीने में न सही तेरे सीने में सही , हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए ।अनुपम मिश्रा ने कहा …. रहे हमें झकझोरते वे जीवन पर्यंत । नायक अपनी सदी के , थे कविवर दुष्यंत ।। अध्यक्षीय भाषण में एडवोकेट जवाहर सिंह गंगवार ने कहा कि दुष्यंत ने दबी कुचली मूक जनता की वेदना को शब्द दिए ,बगावत के तेवर दिखाये .बिलासी साहित्यकारों को आइना दिखाया ।
गोष्ठी में शायर बहार और राशिद अली राशिद ने दिलकश अंदाज में गजलें प्रस्तुत कीं ।कार्यक्रम के अंत में संयोजक परम मिश्रा ने सभी को धन्यवाद ज्ञापित किया।