क्या घर पर सुरक्षित हैं बेटियां? इज्जत और रिश्ते होते तार तार, मैं रोती रही भैया नहीं माने ...?
क्या घर पर सुरक्षित हैं बेटियां? इज्जत और रिश्ते होते तार तार, मैं रोती रही भैया नहीं माने ...?
ओ री चिरैया, अंगना में फिर आजा रे...' क्या आप यह लाइन उस बेटी को कह सकते हैं जो अपने ही घर में हैवानियत से गुजरी हो? एक बेटी जिसे लक्ष्मी, सरस्वती और दुर्गा बनाकर पूजते हैं, उसके साथ दुष्कर्म करने के बारे में कोई भी...खासतौर से कोई अपना कैसे सोच सकता है?
कहते हैं कि एक लड़की के लिए बाहर निकलना सेफ नहीं है। एक लड़की को बचपन से बताया गया है कि उसके लिए सबसे महफूज जगह उसका घर है। यहां उसे सुकून मिलने के साथ-साथ सुरक्षा की गारंटी भी दी जाती है। वह अपने होते हैं, तमाम रिश्तों में पलती-बढ़ती है, लेकिन सोचिए जरा क्या बीतती होगी उस लड़की पर जिसे अपने ही घर में दरिंदगी से गुजरना पड़े। महिलाओं के साथ दुष्कर्म के मामले तो हम रोजाना सुनते और अखबारों में पढ़ते हैं।
उनमें से अधिकतर मामले वे आते हैं, जहां पर एक बच्ची या लड़की के साथ दुष्कर्म करने वाले उसके परिवार, दोस्त या पड़ोसी होते हैं। ऐसे तमाम मामले हैं, जहां पर लड़की को उसके चाचा, भाई, पिता, पड़ोसी, आदि ने प्रताड़ित किया होता है। ये आंकड़े उन लोगों के मुंह में तमाचे की तरह है, जो अक्सर महिलाओं को घर से बाहर निकलने की नसीहत देते हैं। ये आंकड़े सवाल खड़ा करते हैं कि क्या बेटियां अपने ही घर में सुरक्षित हैं? मैं कल की ही एक खबर पड़ रही थी, जहां राजस्थान के कोटा में एक 13 वर्षीया बच्ची के साथ उसके पड़ोसी ने रेप किया। बच्ची अपने घर पर दादी के साथ सो रही थी और 4 पड़ोसी ने आकर उसका रेप कर दिया।
अगले दिन जब बच्ची दर्द में कहराहने लगी, तो पता चला कि उसके साथ दुष्कर्म हुआ है। इसी साल मई में एक खबर आई थी कि एक मामा ने अपनी नाबालिग भांजी के साथ रेप किया। 21 अगस्त को चाचा ने अपनी नाबालिग भतीजी के साथ दुष्कर्म किया था। अमेठी में 13 साल की एक लड़की को उसके पिता ने ही नहीं छोड़ा। चतरा और बिजनौर में भी ऐसा ही एक मामला आया था, जहां एक पिता ने अपनी बेटी को डरा-धमका कर उसके साथ लंबे समय तक रेप किया। यह मामले तो इसी साल के हैं, मगर सालों से हमने न जाने कितनी खबरें पढ़ी और सुनी होंगी, जहां रेप करने वाला विक्टिम के परिवार का या आसपास रहने वाला होता है।
पालोमर कॉलेज पुलिस विभाग के अनुसार, 70% से ज्यादा रेप किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा किए जाते हैं जिसे पीड़ित महिला जानती है। घर को अक्सर ऐसी जगह माना जाता है, जो हर इंसान के लिए सुरक्षा की गारंटी होती है। यहां प्यार, विश्वास और सुरक्षा को सर्वोच्च माना जाता है। मगर ऐसे तमाम मामले इस छवि को अक्सर अस्पष्ट कर देती है कि परिचितता खतरे को भी जन्म दे सकती है। हमें लगता है कि घर पर तो सब अपने हैं। सब अच्छे हैं, तो गलत कोई नहीं कर सकता लेकिन ऊपर के आंकड़ों के मुताबिक, एक बिटिया को आखिर उसके ही घरवालों से खतरा रहता है। 31 वर्षीया अनामिका (बदला हुआ नाम) एक बड़े मीडिया हाउस में एक पत्रकार के रूप में कार्यरत है।
बचपन में हुई एक घटना ने उसे अपने ही घर से दूर कर दिया। आज भी वह घर जाने के नाम से घबराती है। अनामिका के मुताबिक, "मैं 10-12 साल की थी। ताऊ जी का परिवार अक्सर गर्मियों की छुट्टियों में घर आता था। भाइयों के साथ जहां एक बहन को सुरक्षित महसूस होता है, वहां मैं अक्सर डरी रहती थी। छोटे भैया अक्सर हमारे साथ छुप्पन छुपाई खेला करते थे। वह मुझे अपनी ओर खींच लेते थे और कहते थे हम साथ में छुपेंगे तो कई हमें नहीं पकड़ पाएगा। खेल के बहाने भैया मुझे गलत जगहों पर छूते और मेरे साथ गंदा काम करते थे। मुझे इस बात का एहसास बाद में हुआ कि वह गलत काम करते हैं। मगर मैं कभी किसी से कह नहीं पाई। अक्सर बाथरूम में जाकर नहा लिया करती थी या खुद को गीला कर लेती थी ताकि मां को पता न ले।
मेरे जेहन में उनकी छुअन आज भी जज्ब है। याद है मुझे वह दिन जब मैं रो रही थी और वह छत पर मेरे प्राइवेट पार्ट को चोट पहुंचा रहे थे। मुझे दर्द हो रहा था। मैं रो रही थी, लेकिन वह नहीं रुके। उसे दिन मैं काफी देर तक रोती रही और फिर उन्होंने मुझे धमकी दी कि मैं किसी से न कहूं।" "बड़े होते-होते एक गंदी फीलिंग मेरे अंदर बैठ गई। वह जब भी घर आते थे, मैं छुप जाती थी या उन्हें इग्नोर करती थी। यह ट्रॉमा ऐसा था कि मैंने लंबे समय तक खुद को ही दोषी माना। वह अब घर नहीं आते, लेकिन आज भी मुझे घर काटने को दौड़ता है। यह धारणा कि भाई या कोई करीबी रिश्तेदार इस तरह के अत्याचार करने में सक्षम नहीं हो सकता, ने बहुत लंबे समय तक दुर्व्यवहार को छिपाए रखा। यह एक दर्दनीय रिमाइंडर है सभी के लिए कि घर भी किसी बेटी के लिए एक खतरनाक जगह हो सकती है।
ऊपर जो मामले आप पढ़ रहे हैं, वो तो अभी हाल के हैं, लेकिन ऐसी कितनी खबरें हैं, जो हमारे सामने भी नहीं आती हैं। कई परिवारों में घर की इज्जत पर इतना जोर दिया जाता है कि यह पीड़ता को चुप करा देता है, तब भी जब उनकी सुरक्षा दांव पर लगी हो। पंजाब का एक मामला इस दुखद वास्तविकता को उजागर करता है- एक 16 साल की लड़की, जिसका उसके परिवार के दोस्त ने रेप किया, अपने परिवार की प्रतिष्ठा को बर्बाद करने के डर से चुप रही। वह तो जब उसके स्कूल ने उसके व्यवहार में बदलाव देखा, तब उसके साथ हुए दुर्व्यवहार का पता चला। परिवार की छवि बरकरार रहे इसके लिए कितनी बेटियां कुर्बान हुई हैं। इससे साबित होता है कि घर भले ही बाहर से सुरक्षित दिखाई दे, लेकिन वह बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं हो सकता।
हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि खतरा उन जगहों पर भी हो सकता है, जहां हमें इसकी कम से कम उम्मीद होती है और जिन लोगों पर हम सबसे ज्यागा भरोसा करते हैं, वे कभी-कभी सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि हमें लगातार डर में रहना चाहिए, बल्कि हमें सतर्क, जागरूक और कुछ गलत होने पर बोलने के लिए तैयार रहना चाहिए। इस संबंध में शिक्षा बहुत जरूरी है। जरूरी है कि हम अपनी बेटियों को चुप रहना नहीं बल्कि उनके खुद के लिए स्टैंड लेना सिखाएं। हमें बच्चों को दुर्व्यवहार के संकेतों को पहचानना और यह समझना सिखाना चाहिए कि उनकी सुरक्षा से कभी समझौता नहीं किया जा सकता है।
यह सोचकर ही मुझे अफसोस होता है कि हम महिलाएं आज अपने घर पर भी महफूज नहीं हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के मुताबिक, हर 16 मिनट में देश में एक रेप होता है। यह सवाल खड़े करता है कि जिस देश की आजादी की 78वीं सालगिरह हमने कुछ दिन पहले मनाई है वहां औरत ही सुरक्षित और स्वतंत्र नहीं है। आज सिर्फ महिलाओं की ही सुरक्षा का पाठ पढ़ाना जरूरी नहीं है, बल्कि बेटों को भी सिखाना जरूरी है कि उन्हें अपनी मानसिकता बदलना कितना जरूरी है।