जीवन’ की दो बात’

Jul 25, 2024 - 08:58
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जीवन’ की दो बात’
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‘जीवन’ की दो बात’

जिन्दगी की दो सारगर्भित बात जो जीवन की सौगात हैं | हमारा जीवन साइकिल की सवारी की तरह ही है जो चलते-चलते कभी ठोकर से या कभी कुछ कारण से संतुलन से डगमगा ही जाता हैं । उस स्थिति में पार वही पाता है जो सावधानीपूर्वक जीवन का संतुलन बना उसको गतिमान रखता है ।

मानव जीवन में अनेक बार ऐसी परिस्थितियां आती है जब मनुष्य समझ नहीं पाता की उसे किस तरह उस परिस्थिति का सामना करना है । उस समय परिस्थितिवश उत्पन्न स्थिति स्वयं में इतनी उलझी होती है की अगर सूझ बूझ और दूर दृष्टि का सहारा न लिया जाये तो निर्णय गलत होने की पूरी सम्भावना रहती है ।

अनेको बार छोटी छोटी बातें हमें गहरे तक प्रभावित करती हैं । ऐसी स्थिति उत्पन्न होने पर बेहतर तो यह है की हम शांति और धैर्य से उस परिस्थिति का विश्लेषण करें तथा उस स्थिति के पक्ष विपक्ष दोनों के बारे में सोंचे क्योंकि प्रत्येक स्थिति के दो पहलू होते है , एक अगर सकारात्मक है तो दूसरा नकारात्मक अवश्य होगा । हमें सही से परिस्थिति के अनुसार गुण दोष के आधार पर निर्णय लेना चाहिए न की घबराकर कोई कदम उठाना चाहिए जिससे की हमारे पक्ष में होने वाली बात का भी विपरीत असर हो जाये ।

सबसे बड़ी बात हमें किसी भी विपरीत स्थिति में धैर्य , समता , सहनशीलता और शांति आदि से निर्णय लेने की आदत डालनी चाहिए । अतः अगर ऐसा हुआ तो हम अपने जीवन में अवश्य सफल होंगे । दूसरी मुख्य बात जीवन में बुद्धिमान वही है जो कभी नहीं भूलता कि जन्म के साथ मृत्यु अवश्यंभावी है पर वह कब, कहॉं, कैसे आएगी यह कोई नहीं जानता। वह घबराता नहीं है बल्कि जब भी मृत्यु आती है तो उसका स्वागत करता है और पंडित मरण का आलिंगन कर आगे का पथ लेता है ।

संसार को असार समझ कर आगे के भव की चिंता करते हैं और नश्वर काया का मोह त्याग कर सहर्ष देह त्याग का प्रण लेते हैं। कष्टों से घबरा कर व हताश होकर ऐसा नहीं करते हैं बल्कि वह आत्मकल्याण के लिए शुद्ध भावों से सचेत अवस्था मेंकरते है ।मृत्यु तो शरीर की होती है, आत्मा की नहीं, आत्मा तोअजर -अमरहै ।

आत्मा हमारें कर्मो के हिसाब से एक शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर को धारण कर लेती है । शरीर की मृत्यु तो एक पड़ाव है जिस प्रकार मनुष्य पुराने वस्त्र को त्यागकर नये वस्त्रों को ग्रहण कर लेता है ।

प्रदीप छाजेड़ ( बोरावड़ )