बच्चों में तनाव -
बच्चों में तनाव -
आज के समय में हम प्रायः देखते हैं कि बच्चों में तनाव ज्यादा देखने को मिलता हैं । हम सही से इसके कारण में जायें तो हमको बहुत कुछ देखने को मिल सकता है । अगर हमारे आचरण मे समता की सौरभ है तो निश्चित रूप से वह दूर तक जायेगी। मगर स्वार्थ युक्त धूल-धुएं के गुबार की हवा आदि वातावरण को ओर भी दूषित बनायेगी।
बच्चा उसी बात का अनुसरण करता है जो घटना प्रभावित करती है उसके अन्तस मन को , कोरे आदर्श और महानता की सारी शिक्षा तो ऊपर से ऊपर निकल जायेगी ।जैसे कुम्हार गीली मिट्टी से जो चाहे आकार दे सकता है ।चाहे वह सुराही बनाते या चिलम आदि लेकिन मिट्टी पकने के बाद उस पर कोई असर नहीं होता वह तो फिर नष्ट ही होती है ।वहीं हाल बच्चे के साथ भी है ।बचपन में कच्ची मिट्टी के समान बच्चे को अच्छै संस्कार से पाला जाए तो उसका भविष्य उज्जवल ही होगा ।
जीवन में बच्चों को आगे बढ़ाने के लिए दर्द भी सहना सिखाना चाहिये। पर विडमबना है कि कुछ दशक पहले परिवार संयुक्त और बड़े होते थे।घर में एशो आराम और नौकर चाकर की इतनी व्यवस्था भी नहीं होती थी।घर की माताएँ अपने बच्चों को ऐसे ही छोड़ देती और घर के काम में व्यस्त रहती।बच्चे गिरते,चोट लगती पर कोई पूछने वाला नहीं होता।थोड़ी देर दर्द सहन करके अपने जीवन में मस्त हो जाता।वो दर्द सहना ही उनके भावी जीवन में आने वाली समस्याओं की ताक़त होती थी। सृष्टि के प्रारंभ से ही माता- पिता तो अपने बच्चे से प्यार करते थे और आज भी करते हैं।
पहले परिश्रम करना सबसे पहले सिखाते थे या स्वयं ही बच्चे परिश्रम करना सीख जाते ऐसा माहौल होता था। भौतिक सुख सुविधाएं राजा महाराजाओं के उस समय भी होती थी। गुरु तो राज महल में आकर भी राजकुमारों को सही से शिक्षा प्रदान कर सकते थे पर राजकुमारों को गुरुकुल भेजा जाता था । क्यों? महलों की सुख सुविधाओं को छोड़कर कठिन परिश्रम हो सके, कष्ट सह सके ।सहनशील बन वीर बन सके।वहीं आजकल के माता-पिता अपने बच्चों को इतना अधिक लाड प्यार करते हैं जो शायद लाड प्यार नहीं, बच्चों के विकास में उनका वह प्यार बाधक बनता है ।
एक उदाहरण गाय अपने बछड़े से इतना प्यार करती है उससे बार-बार जीभ से सहलाती है लेकिन एक समय ऐसा आता है कि उसके चमड़ी के ऊपर के रोम घस जाते हैं चमड़ी से खून निकलने लगता है तब उसे एहसास होता होगा कि मैंने तो अपने बच्चे को और अधिक खुश करने के लिए ऐसा किया और वही उसकी तकलीफ का कारण बन गया ठीक इसी तरह हमारे अति मोह का दुष्परिणाम आने वाले समय में हमारे बच्चों को भुगतना न पड़े ।
बच्चे को किसी भी कार्य वश घर से बाहर निकलना होता है तो सबसे पहले उसके लिए अपनी क्षमता अनुसार conveyance की सुविधा उपलब्ध करवाते हैं ताकि उसे 10:15 मिनट भी पैदल ना चलना पड़े , हमारे बच्चों को कोई तकलीफ न सहनी पड़े...क्यों ? ऐ, बच्चों के पहले गुरू अनुशासन, समय का सदुपयोग,विनय आदि सिखाने के साथ सहनशील बन वीर बनें इस पर भी अपनी दृष्टि गड़ाएं। शारीरिक और मानसिक हर संघर्ष के लिए हों तैयार ऐसी परवरिश देकर सच्चा प्यार जताएं। यह सम्भव कैसे हो ?
क्योंकि आज के माहौल ठीक उसके विपरीत है।एकल परिवार,एक या दो बच्चों का परिवार।जब बच्चे कम होते हैं तो उनकी देखभाल इस तरह की जाती है कि जैसे वो कोई पौधे के फूल हों।उनके अगर छींक भी आये तो दवाइयों का ढेर लग जाता है।वो ऐसे पाले जाते हैं जैसे किसी राज्य के राजकुमार।एक तो वो दर्द समझ नहीं पाते और दूसरा किसी का टोका हुआ उनको बर्दाश्त नहीं होगा।जब कभी उन बच्चों के जीवन में कोई अति विषम परिस्तिथियों का सामना होता है तो वो उसे झेल नहीं पाते और कोई भी ख़तरनाक निर्णय लेने में संकोच नहीं करते।चाहे बाद में उसका परिणाम कुछ भी हो।
अगर अपने बच्चों का भविष्य उज्जवल और हर परिस्तिथि में जीवन जीने के लायक़ बनाना हम बच्चों का चाहते हैं तो उनको थोड़ा रफ़-टफ़ भी होने दो।जब जीवन में दर्द सहना सीख जाएँगे तो जीवन में हर परिस्तिथि में जीवन जीना सीख जाएँगे। कुछ पंक्तियाँ - शरीर स्वस्थ है , शरीर से जीना सीख लिया । विद्या परिपूर्ण है , प्रज्ञा से जीना सीख लिया । विवेक समर्थ है , विवेक से जीना सीख लिया । कर्म स्वयं के है ,कर्म से जीना सीख लिया । इस तरह से और भी उपाय से हम बच्चों को तनाव से मुक्त कर सकते हैं ।
प्रदीप छाजेड़