तुलना करें तो खुद से
तुलना करें तो खुद से
जहाँ तुलना की बात आती है तो अर्थ , मकान , गाड़ी , गहने , कपड़े आदि - आदि का चिन्तन आता है । हम जानते है यह सब नश्वर है फिर भी हम अपना चिन्तन सही से नहीं कर पाते है । क्यों ? क्योंकि हम भौतिकता की इस अंधी दौड़ में सही की और अग्रसर नहीं हो पाते है । जबकि सही में तुलना खुद की खुद से यानि अपने आज की अपने कल से कि करनी चाहिए ।
हम कल कैसे थे और आज कैसे हैं। कितना नकारात्मक कल सोचते थे और कितना सकारात्मक आज हो गए हैं। कितने दु:खी और अवसाद में कल थे और कितना आनंद और सुखी आज महसूस करते हैं। ये ही वास्तविक बिंदु जीवन में वास्तविक उन्नति के आत्मिक प्रगति के हैं । इसलिये जीवन की दिशा को मोड़ना सीखे , कुछ अपनाना और कुछ छोड़ना सीखे ।
सबका स्वभाव अलग - अलग होता है ।ऐसे में तुलना का परिहार करे तथा किसी की देखादेखी नही हो ऐसी भावना का मन में संचार करे । उम्र के साथ परिवर्तन घटित हो जाता हैं इसलिये भूलों की आलोचना हर क्षण करे ।जीवन में उम्मीदों व आकांक्षाओं को अधिक महत्व न दे व न ही बढ़ाये ।
यदि जीवन जीना प्रसन्नता से हो तो अनासक्त बन खुशी से जीते जाओ। सबके कर्म अपने -अपने होते हैं,जिससे वह पुण्याई का उदय हो तो सब कुछ अच्छा भोगता है और जिसके पुण्याई का उदय न हो तो चाहते हुए भी वह शुभ का भोग नहीं कर सकता,दूसरे की देखा - देखी में जाकर तो दोबारा नए सिरे से द्वेष भाव से और ज्यादा कर्मों के बंधन को बढ़ा सकते हैं इसलिये हम तो विवेकपूर्वक अपने को मिले में संतुष्ट होकर हलुकर्मी बनते हुए अपने कर्मों को खपाने का लक्ष्य रखें,जिससे अतिशीघ्र मुक्तिश्री को प्राप्त कर पाएं।
प्रतिस्पर्धा को छोड़कर हम प्रतिक्रिया विरति के द्वारा अपना आत्मकल्याण करें। अतः जीवन में कभी किसी से अपनी तुलना मत करो आप जैसे हैं सर्वश्रेष्ठ हैं ईश्वर की प्रत्येक रचना सर्वोत्तम है। कहा भी गया हैं MONEY CAN BRING COMFORT, BUT IT IS THE CONTENTMENT THAT BRINGS HAPPINESS.
प्रदीप छाजेड़