केंद्रीय विद्यालय का कोर्स अधिकतम 700 और पब्लिक स्कूल का 8600, ये कैसी खुलेआम लूट
गाजियाबाद। अधिकांश पब्लिक, कॉन्वेंट स्कूलों में पूरा कोर्स जहां सात से नौ हजार रुपये में मिल रहा है। वहीं, सीबीएसई के केंद्रीय विद्यालयों में पूरा कोर्स चार सौ से सात सौ रुपये में मिल रहा है।
कक्षा छह, सात और आठ की दस किताबों का सेट करीब छह सौ रुपये में है। ये सभी किताबें एनसीईआरटी की हैं। केंद्रीय विद्यालय में पुरानी किताबें लेकर पढ़ाई करने से भी किसी को कोई आपत्ति नहीं है। दुकानदार इन किताबों पर दस रुपये जिल्द, कवर चढ़ाने के नाम के अतिरिक्त भी ले लेते हैं।
खास बात यह है कि बाहर से खरीदने की वजह से केंद्रीय विद्यालयों के बच्चों को स्टेशनरी, यूनिफार्म, जूते, कॉपी आदि भी कई गुना सस्ते में मिल रही हैं। जबकि, निजी स्कूलों में अभिभावकों पर कोर्स के साथ स्टेशनरी, जूते, यूनिफाॅर्म खरीदने का भी दबाव है। आपत्ति जताने पर स्कूल प्रबंधन का तर्क है कि समानता और अनुशासन बनाने के लिए वह ऐसा कर रहे हैं।
अभिभावकों की लगातार शिकायत के बावजूद भी सरकारी स्तर से कोई कार्रवाई स्कूलों के प्रबंधन के खिलाफ नहीं हो पा रही है। हर स्कूल के रेट और किताबों के नाम अलग-अलग, गाजियाबाद पैरेंट्स एसोसिएशन की अध्यक्ष सीमा त्यागी ने बताया कि निजी स्कूलों में 95 फीसदी किताब की कीमत 400-500 के करीब है। आर्ट जैसे विषय की किताब भी तीन सौ के करीब है।
किसी भी पब्लिक स्कूल में पूरा कोर्स सात-नौ हजार से कम नहीं है। पैसा बढ़ाने के लिए स्कूलों ने निजी प्रकाशकों की किताबें लगाई हैं। इसलिए इन किताबों के नाम भी अलग-अलग हैं। इसमें हिंदी, अंग्रेजी, कंप्यूटर जैसे विषय की दो-दो किताबें लगा दी गई हैं। जिनकी कीमत ढाई हजार से ज्यादा बन जाती है।
स्कूल प्रबंधन को निजी प्रकाशकों की किताबों पर 70-80 फीसदी तक की छूट मिल रही है, लेकिन अभिभावकों को प्रिंट रेट पर ही पूरा कोर्स, काॅपी, स्टेशनरी बेची जा रही हैं। कोर्स, कॉपी, स्टेशनरी, जूते, यूनिफार्म आदि सामग्री कोई भी अभिभावक या छात्र कहीं से भी खरीद सकता है, यदि किसी स्कूल प्रबंधन द्वारा नियम का उल्लंघन किया जा रहा है तो जिम्मेदार पर कार्रवाई होगी।
ओपी यादव, बीएसए, गाजियाबाद -हो रही जीएसटी की भी चोरी : अभिभावक मनीष चौधरी ने बताया कि किसी भी पब्लिक व कॉन्वैंट स्कूल में अभिभावकों को कोर्स, स्टेशनरी, जूते, कॉपी आदि के पक्के बिल नहीं दिए जा रहे हैं।
कच्चे बिल पर प्रिंट निकालकर अभिभावकों के हाथ में पर्चा थमा दिया जा रहा है। अधिकांश स्कूल तो इसका पैसा खाते में लेने से परहेज कर रहे हैं। ऐसे में निजी स्कूल न केवल अभिभावकों की जेब खाली कर रहे हैं बल्कि सरकारी टैक्स की भी चोरी की जा रही है।