करें बोझ हल्का
करें बोझ हल्का
मन और मस्तिष्क ऐसे घोड़े है जो बेलगाम दौड़ते जाते है।जब भी मन कुछ कहता है तो दिल कुछ चाहता है । दिमाग कुछ सोचता है तो पेट कुछ मांगता है और तो और विचार कुछ उठते हैं ,ज़ुबाँ कुछ कह जाती है , कभी कभी तो ज़मीर सच बोलता है, काम कुछ और कर जाते हैं आदि - आदि ये विचारों की भीड़ कहाँ कैसे कितना सामंजस्य रखे? प्रस्थान से पूर्व, मंजिल की सम्यक् दिशा का अवबोध जरूरी है।
दृढ़ संकल्प शक्ति और गतिमान चरणों के बिना जीत अधूरी है।जो अपनी जीवन यात्रा के पथ पर बढ़ते हैं, प्रबल मनोबल के साथ निश्चित ही उनकी मनोकामना सही समय पर पूरी होती है।ज़िंदगी एक अनुभव हैं , एहसास है , ह्रदय का भाव है ।शब्दों से बयां नहीं होने वाले अल्फाज़ हैं।
आँधी भी है तो कहीं शीतल पवन का झोंका ।ख़ुशबूदार गुलाब के फूलों के साथ काँटों की चुभन भी है ।पर्वतों से बहती नदी का उफान कही तेज़ तो कहीं शांत भी है ।बस ज़िंदगी भी कुछ यूँ ही है ।प्रक्रति के भाँति ज़िंदगी के भी अनेक रंग और रूप होते हैं ।जिस प्रकार प्रक्रति भी प्रभावित होती है अनेक तत्वों से ।उसी प्रकार ज़िंदगी भी प्रभावित होती मन , वचन और काया से ।सुख-दुख,लाभ-अलाभ , यश - अपयश ये तो ज़िंदगी के पैमाने ।
इन पैमानों को मापने का शक्तिशाली तरीक़ा है केवल मन रूपी यंत्र ।मन ही तो भरता है ज़िंदगी में मनचाहा रंग । हम नए सिरे से और कर्म बन्धन से बचें ,जागरूकता बरतते हुए और बंधे हुए को समतापूर्वक सहन करें आत्मविश्वास और मनोबल को मजबूत बनाते हुए। गतिशीलता ही जीवन है ।मन के हारे हार है,मन के जीते जीत।हमारे होंसले हमेशा बुलन्द रहे,चट्टान की तरह किसी भी परिस्थिति में हम कायर न बनें ।
जिंदगी परिस्थितियों से लड़ने का नाम है,डरने का नहीं।कर्म के गहन बन्ध करने से डरें, बंधे हुए को भोगने में नहीं,क्योंकि हम कर्मबांधने में स्वतंत्र है,भोगने में नहीं ,ये हमेशा हमारा चिंतन चलता रहे तो हम जागरूक रहते हुए कर्मबन्ध से काफी हद तक बच सकते हैं और विचारों के बोझ से हल्का रहकर सदा ख़ुश रह सकते है। यहीं हमारे लिए काम्य है। प्रदीप छाजेड़